Fri. Mar 29th, 2024

राउत के साथ की समझौता मधेश के अस्तित्व को स्वीकारना है : अजयकुमार झा

अजयकुमार झा,जलेश्वर | ‘जन अभिमत’ का अर्थ `जनमत संग्रह´ नहीं है, तो सरकार को स्पष्ट रूप में ‘नहीं’ बोल देना चाहिए। और यदि इसका अर्थ ‘जनमत संग्रह’ ही है, तो कब, कैसे, क्यों, इन सारी बातों को भी स्पष्ट कर देना चाहिए। एमाले नेता भीम रावल का कहना है कि सरकार के द्वारा सी.के. राउत को दार्शनिक कहना हास्यास्पद है। लेकिन राउत ने गांधी, वुद्ध और मंडेला को अपना प्रेरक मानकर खुद को दार्शनिक के श्रेणी में पहले ही खड़ा कर लिया था। इसका वोध आम व्यक्ति के सोच से परे है।
कांग्रेस और एमाले के अधिकाँश नेताओं को यह समझौता पच नहीं रहा है। उधर फोरम, राजपा भी तनावग्रस्त नजर आ रहा है। एक विखंडनकारी नेता देसभक्त नहीं हो सकता; ऐसा अभिव्यक्ति देनेवाले यह भूल गए है कि राजतन्त्र में उन्हें भी देसद्रोही का संज्ञा मिला था। माओवादियों को यही कांग्रेस और एमाले के नेतागन आतंकवादी कहा करते थे।आज गले से गले मिलकर खुश नजर आते हैं। फिर राउत जैसे विद्वान् पर शंका क्यों ? राउत के साथ किया गया समझौता से एक बात स्पष्ट है की सरकार ने मधेश के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया है । प्रधान मंत्री ओली के एकल प्रयास से सुसंपन्न यह समझौता बहुमत सदस्यों के लिए शिरदर्द जरुर सावित हो रहा है, लेकिन भीतर से सबके सब खुश भी नजर आ रहे हैं। चाहे प्रकाशमान सिंह जी हों या रावल जी। द्विविधा जीस बिंदु पर किया जा रहा है, (जन अभिमत) और (जनमत संग्रह) यहाँ जन अभिमत और जनमत दोनों समानार्थी शब्द के रुपमे प्रयुक्त किया गया है। संग्रह शब्द, जो की अब पुराना होगया है; कोई ख़ास मायने नहीं रखता। अतः ‘जन अभिमत ही जनमत’ है। इस  रहश्य की पुष्टि स्वयं प्र.म. ओली जी ने कर दिया है। उन्होंने कहा है की सी के राउत संविधान को मानने के लिए तैयार हो गया है। अतः नेपाल के संविधान के अधीन में रहकर (जन अभिमत/जनमत) संग्रह करना कौन सी बड़ी बात है ! बड़ी बात यह है की राउत ने नेपाल के संविधान को सम्मान देने की प्रतिबद्धता अभिव्यक्त किया है। देश शान्ति की ओर अग्रसर है।
स्वतंत्र मधेस गठबंधन के संयोजक डा. सी के राउत और नेपाल सरकार बीच अप्रत्यासित रुपमे दिखने बाली यह समझौता वास्तव् में एक तीर से अनेक निशाना लागाए हुए है।
एक तरफ सी के राउत से रातोरात शान्ति समझौता कर सरकार खुदको शान्ति का संरक्षक सावित करना चाहती है, तो दूसरी ओर रेसम चौधारी को षडयंत्र में फसाकर मधेसी दल को कमजोर करना चाहती है। मधेसी दलों के जमते पैर को उखाड़ फेकना अब कांग्रेस-एमाले की बस की बात नहीं रही। इसके लिए सी. के. राउत ही एक ऐसा व्यक्तित्व है, जिसे मधेसी जनता एक मौका जरुर देना चाहेगी। इसमे यदि मधेसी दलों का अहंकार टकराया तो समझिए तीनो का हुआ सफाया। और एमाले का झंडा यहाँ भी फहराया। परन्तु खुदानखास्ता कही फोरम, राजपा और राउत बीच एकता कायम होगया तो समझिए मधेस का बेडापार हो गया।
सहमति के दूसरे बुँदा का आशय जनमत संग्रह ही है; एसा राउत और उनके समर्थक लोग बताते हैं। इस “जनअभिमत या जनमतसंग्रह” के बुंदा यदि पहले की तरह षडयंत्र में बदला तो समझिए नेपाल के तराई में नए कश्मिर का जन्म होने की संभावना बढ़ गया। और नेपाल में गृहकलह और अशान्ति के दीर्घकालीन बिज भी अंकुरण हो गया। विवाद सुनिश्चित है। सी.के. समर्थक और अन्य मधेसी दल, कांग्रेस और एमाले के समर्थकों के बीच एक वैचारिक संघर्ष का माहौल सृजना हो गया है। यह रक्तबीज की तरह बढ़ने के क्रम में रहेगा। अर्थात जितना इसे छेड़ा जाएगा उतनाही यह भयानक रूप धारण करेगा। इसकी वास्तविकता और आधार जनता के मौलिक अधिकार से जुडी हुई है। जो समय सापेक्ष है। आवश्यक है। सर्वस्वीकार्य है। यह लोगो को सोचने पर मजबूर कर देगा। अतः जिस प्रकार यह समझौता देश में शान्ति और अमन चैन स्थापित करने के उद्देश्य से किया गया है; उसका पालन भी उतनी ही गंभीरता और हार्दिकता के साथ किया जाना आवश्यक है।
पूर्व प्रधानमन्त्री तथा नयाँ शक्ति पार्टी के संयोजक डा. बाबुराम भट्टराई ने सिके राउत, रेशम चौधरी और विप्लवप्रति सरकार से समान व्यवहार करने की माग किए है। गृह जिल्ला गोरखा में शनिबार पत्रकार के साथ बातचीत में भट्टराई ने देश विखण्डन की माग करने बाले सि के राउत के साथ बड़ी उदारता के साथ समझौता करना
परन्तु कैलाली १ से निर्वाचित रेशम चौधरी को न्यायपालिका के साथ सेटिङ मिलाकर जेल में डालना शोभा नहीं देता।
सी के राउत को हम धन्यवाद देते हैं। उन्होंने मधेसी युवाओं को सामूहिक घात से बचाया है। जिस नारा को वो बुलंद करना चाहते थे, सम्पूर्ण मधेसी उसके पक्ष में नहीं था। मधेस के आम लोग शान्ति प्रिय जीवन के पक्षधर हैं। राउत जी अमेरिका में बैठे बैठे माओवादी के हिंशक तथा दानवी आन्दोलन से प्रभावित होकर मधेस को अलग करने का खुनी आन्दोलन को बल देना सुरु कर दिए। लेकिन मधेसी जनता में इसके प्रति रुझान न दिख पाने के कारण आज परंपरागत राजनीतिक शैली को अपनाने की घोषणा कर आत्म रक्षा के साथ साथ भोलेभाले मधेसी युवाओं के जीवन का भी रक्षा हो गया है। जनमत संग्रह में मधेश के बच्चा बच्चा उनके साथ होंगे। यही शुभकामनाओं के साथ!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: