नए प्रधानसेनापति की चुनौती !
इतिहास रहे नेपाली सेना के सर्वोच्च पद पर जनरल गौरव शमशेर जंगबहादुर राना ने प्रधान सेनापति के रूप में अपनी जिम्मेवारी सम्भाल ली है। इस नई जिम्मेवारी सम्भालने के साथ ही प्रधानसेनापति के सामने कई नई चुनौतियाँ होंगी। जिनका सामना अपने तीन वर्षों के कार्यकाल में गौरव शमशेर राना को करना होगा।
प्रधानसेनापति के रूप में राना को सैन्य संगठन के आधुनिकीकरण और सुदृढÞीकरण तो करना ही होगा। साथ ही सेना के भीतर उठ रहे आन्तरिक लोकतान्त्रीकरण व समावेशीकरण नए सेनापति के लिए सबसे बडी चुनौती होगी। इसके अलावा सेना के भीतर पनप रहे राजनीतिक लाँविंग पर अंकुश लगाना और सेना को राजनीतिकरण करने से भी बचाने की जिम्मेवारी नए प्रधानसेनापति के कंधे पर है।
हाल ही मे नेपाली सेना द्वारा कैडेट पद के लिए गए प्रवेश परीक्षा में धाँधली किए जाने का मामला अदालत में पहुुँच गया था। इससे सेना की काफी किरकिरी हर्ुइ थी। दरअसल सेना के अधिकृत पद पर भर्ती के लिए सरकारी नियमों के मुताबिक कुछ पद मेधशी कोटा के लिए आरक्षित किया गया था। लेकिन सेना ने मधेशी कोटा के लिए आरक्षित पद के लिए बिना प्रवेश परीक्षा लिए ही परिणाम घोषित कर दिया था। बाद में सेना के इस कदम को अदालत में चुनौती दी गई थी।
सर्वोच्च अदालत ने भी मामले को गम्भीरता से लेते हुए परीक्षा परिणाम को ही रद्द कर दिया और समावेशी कोटा के लिए तय की गई सीट पर फिलहाल अन्य किसी को भी भर्ती देने पर रोक लगा दी। वैसे तो यह मामला अभी भी सर्वोच्च अदालत में लम्बित है और इस पर फैसला आने के बाद ही यह तय हो पाएगा कि आखिर मधेशी कोटा की परीक्षा लिए बिना ही परिणाम घोषित करने के पीछे क्या कारण रहा होगा।
फैसला जो भी आए लेकिन सेना को लोकतान्त्रीकरण और समावेशीकरण करने के सरकार के प्रयास के लिए यह एक तगडÞा झटका था। और साथ ही सेना के भीतर समावेशी नहीं चाहनेवाला सोच के हाबी होने का भी संकेत इससे मिलता है। यदि अदालती फैसले में दोष सेना के ऊपर आता है तो यह एक कलंक जैसा होगा। और इसकी पूरी जिम्मेदारी सेना के मुखिया के तौर पर रहे प्रधानसेनापति को ही लेनी होगी। अदालत का फैसला आए उससे पहले ही नवनियुक्त प्रधानसेनापति को चाहिए कि वो इसकी विभागीय जाँच करा कर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाही करें। ताकि समय रहते सेना के मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पर इसकी आँच ना आने पाए।
प्रधानसेनापति पर सेना की व्यावसायिक छवि में आँच नहीं आने देने के लिए राजनीतिकरण के कोपभाजन से संगठन को मुक्त रखने की जिम्मेदारी भी है। सेना प्रमुख खुद भी राजनीतिक दबाव में ना पडÞें और अन्य अधिकारियों को भी राजनीतिक संरक्षण से दूर रखना होगा। सेना के इतिहास में चार साल पहले ही एक बडÞा कलंक लग चुका है, जब प्रचण्ड नेतृत्व की सरकार ने अवैधानिक तरीके से तत्कालीन प्रधान सेनापति रुक्मांगद कटुवाल को बर्खास्त कर उनके स्थान पर दूसरे नम्बर के अपने करीबी अधिकारी को सेनापति के पद पर नियुक्त कर दिया था। सेना के भीतर राजनीति किस कदर घुस गई है और सैन्य अधिकारी पद पाने की लालसा में किस कदर नेताओं के चाकरी करते है, यह बात जगजाहिर हो चुकी थी। उस एक घटना से ना सिर्फसेना के भीतर बल्कि पूरे देश की राजनीति में भूचाल आ गया था। एक प्रधानसेनापति के प्रकरण से देश में सत्ता परिवर्तन तक की नौबत आ गई थी। र्
वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता एवं राज्य व्यवस्था में दिशाहीनता के परिवेश में सैन्य नेतृत्व का कार्य सम्पादन सहज नहीं है। शान्ति प्रक्रिया को तार्किक निष्कर्षमें पहुँचाने के क्रम में माओवादी के पर्ूव लडÞाकुओं के समायोजन की बडÞी जिम्मेवारी प्रधानसेनापति पर ही होगी।
शिविरों में रहे ३ हजार एक सौ २३ पर्ूवलडÞाकुओं ने समायोजन का चयन किया था। लेकिन लगता है कि इससे आधी संख्या ही अन्तिम चरण को पार करने में सक्षम होगी। लेकिन अन्तिम चरण में भी आनेवाले लडÞाकू बखेडÞा नही करेंगे, इसकी कोई गारेन्टी नहीं है। लडÞाकू के समायोजन की प्रक्रिया से लेकर उसके पूरे होने तक तथा अलग महानिर्देशनालय बनाने के बाद भी सेना और पर्ूव व्रि्रोही पक्ष के बीच सामंजस्य बनाना, एक दूसरे के प्रति विश्वास बनाए रखना और सेना के मनोबल को भी बरकरार रखने की पूरी जिम्मेवारी नए प्रधानसेनापति के कंधो पर ही है।
सैनिक संगठन के आधुनिकीकरण और दक्ष जनशक्ति तथा क्षमता अभिवृद्धि पर भी जोडÞ देना होगा। इसके अलावा सेना के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी प्रधानसेनापति की जिम्मेवारी है। यदाकदा अखबारों में सेना के टेण्डर और ठेक्का प्रथा पर सवालिया निशान लगाए जाते रहे है। टेण्डर में करोडÞो की अनियमितता की खबर भी बाहर आती है। इन सभी पर ध्यान देकर सेना के इन कामों को पारदर्शी बनाने की चुनौती नए प्रधानसेनापति गौरव शमशेर राना के ऊपर है।