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नेपाल भारत सम्बन्ध की नई सोच : उपेन्द्र झा

हिमालिनी अंक जुन २०१९ |भारत में प्रधानमन्त्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का पुनरागमन नेपाल के लिये अप्रत्याशित घटना तो है ही, मन्त्री मण्डल में एस. जयशंकर, अमित शाह आदि नये चेहरे के पदार्पण से नेपाली राजनीति में त्रास का वातावरण सृजित हुआ है । राजनीति शास्त्र के जानकार आये दिन भारत के सम्बन्ध को लेकर अनेक नकारात्मक विश्लेषण कर पत्र पत्रिका को भरते आ रहे हैं । विगत पाँच वर्षों का भारत के साथ तनाव के वातावरण ने नेपाली राजनीति में भारत के प्रति नकारात्मक सोच को जन्म दिया है । एक प्रकार का डर का माहोल जेहन में समाया हुआ है जिसका निदान चीन से हुए पारवहन सन्धि भी नहीं कर सकता है । भारत फिर से आक्रामक भूमिका में न आ जाये, इसी बात से यहाँ का वातावरण भय मिश्रित धारणाओं से ओतप्रोत है ।

इसके विपरित भारत ने १ सौ ७६ करोड की धनराशि नेपाल के पुनर्निर्माण के लिए प्रदान कर नये सम्बन्ध का सुखद श्री गणेश कर के नेपाल को फिर से विश्वास में लेने का जो उदाहरण दिया है, प्रशंसनीय है । नेपाल भारत की परम्परागत सोच को अब परिवर्तित परिवेश में नईं उँचाई में ले जाने की आवश्यकता दोनो तरफ महसूस हो रही है । नेपाल में विकसित राजनीतिक अवस्था को ध्यान में रख कर पारस्परिक सम्बन्ध को सुधार की दिशा में ले जाना ही श्रेयस्कर है ।

यूँ तो गलतफहमियों का शिकार होकर नेपाल सरकार ने भारत का जिस कदर बखिया उधेड़ कर भारत विरोधी भावना से नेपाली जनता को सराबोर कर मत लिया है, इतनी आसानी से भावनात्मक सम्बन्ध स्थापित होना मुश्किल है । भारत विरोधी भावना, घृणा को इस कदर बढ़ा दिया है कि शासक वर्ग अपने देश के मधेशी से भी भावनात्मक सम्बन्ध नहीं बना पाया है । भारत के प्राण न्यौछावर करने पर भी उग्र राष्ट्रवाद के जेहन में सहानुभूति पनप नहीं सकती । किन्तु भारत इसी को मुद्दा बनाकर नेपाल के साथ रूखा व्यवहार नहीं कर सकता ।
मोदी के पहले कार्यकाल में नेपाल सरकार का विरोध विभिन्न कारणों से अभिप्रेरित है । मधेश आन्दोलन के प्रति भारत की सहानुभूति को फूटी आँख से भी नहीं देखने वाली नेपाल सरकार नाकाबन्दी को बेझिझक भारत के ऊपर मढ़ दिया और भारत की विस्तारवादी नीति का इस कदर प्रचार किया कि राष्ट्रवादी शक्ति एक हो सके और तत्कालीन एमाले सरकार को चुनाव में बहुमत मिल सके । एक तीर से दो निशाना साधने वाले तत्कालीन प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली इस चाल में कामयाब हुए । उन्हें दो तिहाई बहुमत मिली और शक्तिशाली सरकार बनाकर तत्कालीन माओवादी पार्टी को एमाले पार्टी में विलय करवाने में भी सफल रहे ।

चीन से बढ़ रही घनिष्टता नेपाल के लिए फलदायी साबित होने की आस में यहाँ की सरकार उसे पल्लवित और पुष्पित करने में लगी थी । इस कार्य में भारत के संस्थापन पक्ष का समर्थन प्राप्त रहने के कारण नेपाल सरकार भारत मेंं नरेन्द्र मोदी के सत्तारोहण और मधेश आन्दोलन को समर्थन करने से नाखुश हो गयी और भारत सरकार को संयुक्त राष्ट्रसंघ तक बदनाम करने तक का प्रयास जारी रहा । भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी नेपाल सरकार के विरोध का आशय समझ नहीं पाये और यह विरोध मोदी के कार्यकाल तक बना रहा ।
मोदी का पुनरागमन नेपाल सरकार की कल्पना से बाहर की बात थी । अपने किये का लेखाजोखा कर नेपाल की राजनीति में भय मिश्रित धारणाओं का होना लाजिमी था । नेपाल भारत के सम्बन्ध का प्राकृतिक स्वरूप यथावत् तो है किन्तु भावनात्मक सम्बन्ध में जो परिवर्तन आया है, यह सम्बन्ध असन्तुलन का प्रमुख कारण है । थोडी सी चूक पर विद्रोह की स्थिति पैदा करने में इसकी भूमिका बनी रहती है ।
महाशक्ति देशों के साथ व्यापार नीति, प्रतिस्पर्धा तथा शक्ति प्रदर्शन की होडवाजी में सन्तुलन ढुँढने तथा भारत को आधुनिक विकास से जोड़ने की सोच लेकर आगे बढ़नेवाले नरेन्द्र मोदी नेपाल के साथ उदार भावनाओं का ही प्रदर्शन करेंगे । भारत के प्रति तनाव उत्पन्न करने वाले नेपाल के शासकवर्ग खुद हीनताबोध के शिकार बन रहे हैं । भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने की उत्कट अभिलाषा नेपाल सरकार में भी देखी गयी है । वैकल्पिक मार्ग खोजते हुवे भी भारत के साथ मधुर सम्बन्ध रखने की नेपाल सरकार की बाध्यता है ।

नेपाल शक्ति केन्द्र के त्रिकोणात्मक रणनीति का शिकार बन रहा है । बीआरआई, इण्डोप्यासिफिक तथा बिमेस्टेक की रणनीति में नेपाल को अपने अपने ढंग से साझेदार बनाने की प्रतिस्पर्धात्मक चुनौती नेपाल के सामने है । नेपाल अपने विकास कार्य के लिए शक्तिकेन्द्र के साथ कमोवेश सम्बन्ध बना कर चल रहा है । यह प्रतिस्पर्धी नहीं बन सकता । किन्तु चीन अमेरिका का व्यापार युद्ध इस कदर विकसित हो रहा है कि अमेरिका बीआरआई से नेपाल को निकालने का हर सम्भव प्रयास में तल्लीन है । एक को छोड़ कर दूसरों से सम्बन्ध बनाना नेपाल के लिये हानिकारक है यह बात ज्ञात रहते हुवे भी नेपाल अमेरिका को कुछ जवाव नहीं दे पा रहा है । नेपाल में दीर्घकालीन विकास लक्ष्य अन्तर्गत ३०० कि.मी. दूरी का  विद्युतीय प्रसारण लाइन तथा ३०५ कि.मी. राजमार्ग सड़क मरम्मत में अमेरिका का ५० करोड़ डॉलर सहयोग है ।
भारत बिमेस्टेक को महत्व देकर आगे बढ़ाने के उद्देश्य से ही अपने शपथ कार्यक्रम में विमेस्टेक के सदस्य राष्ट्र को आमन्त्रित किया था । अध्यक्ष राष्ट्र की हैसियत से नेपाल को सार्क का वकालत करना लाजिमी है । सार्क की संजीवनी भारत के पास है । किन्तु भारत, पाकिस्तान सम्मिलित सार्क को जीवन नहीं देना चाहता है । इस परिस्थिति में नेपाल को सन्तुलन मिलाने में कड़ी कठिनाई महसूस हो रही है । यही सब बातें हैं जो सम्बन्ध की मधुरता में बाधक है ।
अमेरिका जिस ढंग से नेपाल के प्रति आक्रामक बन रहा है, भारत अभी दिखाई नहीं पड़ता है । किन्तु कार्ड प्ले की सक्रियता बढ़ाने पर सम्बन्ध में तनाव आने की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता । अमेरिका भी सार्क से कोई सहानुभूति नहीं रखता है । अपने इण्डोप्यासिफिक रणनीति में अमेरिका पाकिस्तान को शामिल नहीं किया है । संसार से बिल्कुल अलग थलग पड़ गया पाकिस्तान चीन के साथ है । चीन के साथ नेपाल का सम्बन्ध होने पर पाकिस्तान के साथ नेपाल का अन्तरंग सम्बन्ध होना स्वाभाविक है । भारत और अमेरिका से सम्बन्ध की मधुरता विकसित होने में यह कारण भी प्रमुख बाधक बन सकता है ।
परनिर्भरता का बढ़ता आँकड़ा भी भारत के साथ नेपाल का सम्बन्ध विस्तार करने को बाध्य कर रहा है । भारत विरोधी सेन्टीमेन्ट एक बार प्रयोग होकर निस्तेज बन गया है । हरेक क्षेत्र में पराश्रित रहने वाले लोग स्वतन्त्र विचार को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं । सहायता के एवज में शक्ति राष्ट्र नेपाल को अपने अपने स्वार्थ में प्रयोग करते आया है । चीन के  सहयोग से नेपाल में दो तिहाई की कम्युनिष्ट सरकार बन जाने के बाद नेपाल में चीन का प्रभाव तीब्र रूप में बढ़ा है, इस बात से लोकतान्त्रिक शक्ति केन्द्र चिन्तित दिखाई पड़ रही है । नेपाल की भूमि पर अमेरिका जो स्थान बना चुका है, उस में वह सिमटना नहीं चाहता है । भविष्य में यह प्रत्युत्पादक न बने इसलिये अपनी अपनी रणनीति लिये शक्ति केन्द्र नेपाल की राजनीति में प्रत्यक्ष दिखाई  देने लगी है ।

अमेरिका और चीन के बीच जहाँ व्यापार युद्ध शुरु हो चुका है, वहीं चीन भारत का मैत्री व्यापार सम्बन्ध बना हुआ है । शत्रुता पूर्ण मैत्री व्यापार के पाश में बँधा भारत चीन के साथ अमेरिका की भाँति युद्ध घोषणा नहीं कर सकता है । जबतक तनाव की स्थिति नहीं बनती है, भारत चीन के साथ सौहाद्र सम्बन्ध बना कर ही चलेगा । चीन के साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध ने नेपाल को भारत, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन से अलग कर दिया है, शक्ति राष्ट्र का ऐसा मानना है । और नेपाल के सन्दर्भ में कोई सिमट कर रहना पसन्द नहीं करता । अतः सिर्जित हो रहे तनाव को नेपाल कैसे सन्तुलन में लायेगा, उस के दूरदर्शिता पर निर्भर है ।



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1 thought on “नेपाल भारत सम्बन्ध की नई सोच : उपेन्द्र झा

  1. Do writer thought that China is leading Nepal no it’s not exact .Time automatically changes and relationship also with meaning of it also changeable
    India is Secularism country there is itself mistake ,hope India becomes Hindu nation soon .

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