Fri. Mar 29th, 2024
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अन्जानी राह में

( सरस्वती शर्मा सुबेदी )



बस में बैठी खिडकी से बाहर झांक रही हूँ । आकाश की ओर देखा तो बादल छोटे–छोटे टुकडो में बंटे है । पता नहीं मै किस राह पर किसे ढूँढने जा रही हुँ । बढ़ती हुई धड़कन और चलते हुए कदम को बहुत बार रोकने की कोशिश की दिल ने । मेरी बात अनसुनी कर दी मेरे ही मन ने ।
लाखों में वही चेहरा नजर में बसा हुआ है । फिर उसी को ढुँढने चली मैं अन्जानी राहो में । तलाश है इन आँखो को उसी डगर की । निकली हुँ मैं घर से उसी मन्जिल को पाने के लिए ।
जिसके नाम से हमने अपनी पूरी जिन्दगी तमन्नाओं में काटी थी । वही अन्जानी तमन्ना कब फिर मेरे सामने आकर खड़ी हो गई पता ही नही. चला ।
माँ की लाखों दुआओं और तमन्नाओं को जला दिया था मैंने । अपनी शादी से बेखबर रहकर । मैं हवा की तरह बिखर गयी थी उनके नाम से । जिस नाम को मैंने कभी अपनी साँसों से दूर किया ही नहीं । इस हालात में मैं कैसे किसी के साथ खुद को बाँध सकती थी ।
कई सालाें के बाद फेसबुक पर मिला वो । फिर हाय , हेलो से उस प्यार का एहसास किया दिल ने । फिर उनहीं वादियो मे लौट गया दिल । जो इन्सान पहला प्यार पाते हैं वो बहुत खुशनसीब होते हैं । मैं उन्हीं में से हूँ । सच मे वो मिल गया । अब बहुत सारी खुशिया लाने वाली है जिन्दगी ।
वो इन्डिया से नेपाल आ रहा । मेरी चाहताें के बगीचे में ढेर सारे फूलो की खुश्बु लेकर । इन दिनो उनकी याद मे अश्रु धारा बहाना भूल गई हैं अँखियाँ । अब थोड़ी देर में उनसे मिल रही हुँ मैं ।
कल शाम को माँ ने पुछा रौनक है तुम्हारे चेहरे पर आजकल । बहुत खुश लग रही हो । क्या बात है ज्योती ? वो माँ मेरा दीपक नेपाल आ रहा है मैने धीरे से कहा । क्या बोल रही हो ? तुम होश में तो हो ? मैने कहा माँ से अक्सर लोग प्यार मे बेहोश ही रहते हैं माँ । हे भगवान ये लड़की क्या बोल रही है माँ के होठाें से अचानक ही आवाज निकल गयी ।
लम्बा सा बदन । चौदहबीं की चाँद की तरह रोशनी भरा चेहरा । छोटी छोटी चमक भरी आँखे । ऐसा ही था वो । उनका प्यार इन हाथों में रचाया हुआ मेहन्दी की तरह रच गया मेरे तनमन में । कैसे छूटा वो पल । मुझे एहसास होता तबतक मै बहुत दूर जा चुकी थी उन से ।
पहली बार हम उन से इस तरह मिले । उस वक्त नवरात्रि पूजा चल रही थी । सूर्य अपनी रोशनी खोकर अँधेरे के दामन मे जाने ही वाला था । पन्डित जी की आवाज मेरे कानों में सुनाई दे रही थी ।
प्रथम शैलपुत्री । द्धितीय ब्रह्मचारिणी । तृतीय चन्द्रघन्टा । चतुर्थ कुष्मान्डा । उसके बाद क्या हुआ मुझे पता ही नहीं चला । मेरे नयन उनकी नजर में खो रहे थे । कितनों की नजरें मेरी नजर से टकराती मैं मुँह बिगाड कर दूसरी ओर मोड़ लेती थी । जब पहली बार उनके आँखो से नजरें मिली । पता ही नहीं चला कितने समय से हमदोनों एक दूसरे को देख रहे थे । रेशमी ने पूछा पन्ध्रह मिनट से उधर देख रही हो क्या है वहाँ ?
दूसरे दिन भी वही हुआ । क्या देख रही हो उधर रेशमी ने पुछा ? मैंने अपनी हाथाें की अँगुलियो से उनको दिखाया तो वो बोली वहाँ तो कोई नहीं । तीसरे रोज वो उन्हीं लोगों की भीड से दौडकर आए और मेरा हाथ पकडकर दुर्गा माँ के मन्दिर के पीछे ले गए ।
क्या नाम है तुम्हारा ? ज्योति मैने कापँते हुए होठों से कहा । वाह कितना सुन्दर नाम । आपका मैंने अपने शरीर के पूरी शक्ति को समेटकर कहा । दीपक वाह कितना सुन्दर नाम मैं उनकी तरह नहीं कह सकी ।
चौथी बार हम रेलवे की पटरी प। मिले । मन्दिर से आरती की आवाज आ रही थी । हम एक दुसरे में खोए हुए थे । पाँचवी बार हम जगन्नाथ के मन्दिर के पिछवाड़े मिले । छठी बार हम सब्जी मन्डी में मिले । मै निम्बु और इमली खरीद रही थी । अचानक से वो आए मेरा हाथ पकड़कर अपनी कार मे बैठाकर फूलो के शहर मे ले गए । वो समय सुबह का था । लगता है अब वो समय यादों का है ।
दिल कर रहा था मै उसी वक्त उनके साथ भाग लुँ । कह न सकी मुझको चुरा लो मुझी से । हमारे तनमन एकदुजे के प्यार मे रङने लगे थे । हवा की झोके की तरह हमारा प्यार फैल गया था चारो ओर ।
सातवीं बार हम मिलने के लिए जगन्नाथ की मन्दिर के सीढियोें पर चढ रहे थे । अचानक किसी ने मेरा हाथ पकडा । मैने पलटकर पीछे देखा । मेरे बाबा ने जोर से मेरे हाथों को पकड रखा था । मैंने मुड़कर दीपक की ओर देखा उनकी नजरें बरस रही थी सावन की बारिस की तरह । मेरी आँखों से भी आँसू बह रहे थे और अहम समझ रहे थेकि इस जन्म में हमारा मिलन कभी नहीं हो सकता । मेरे बाबा ने मुझे घर में ही कैद कर दिया । मैं बाहर नहीं निकल सकती थी । मैं दीपक की यादों में डूबी रही ।
सूरज ने अपनी रोशनी फैलाया । मैं नेपाल आने वाली बस की सीट पर बैठी थी बिना आत्मा के शरीर की तरह । पिता जी सामने ही बैठे थे मेरी आँखें बरस रही थी पर उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ।
देश अलग । भाषा अलग । जाति अलग । हमारा मिलन कैसे सम्भव था ? कहने को तो लोग कहते हैं । नेपाल छोटा सा देश है । पर इस छोटे से देश मे भी खोया हुआ प्यार कोई अजनबीकभी खोज नहीं सकता । उसके दो साल के बाद पिताजी का देहान्त हो गया था । मुझे शादी के लिए डाँटने वाला अब कोइ नहीं था इस दुनियाँ मे । माँ की शादी वाली सारी बाते मै अनसुनी करती रही अबतक ।
हजारों तमन्नाओं में बस वही है मेरे साथ । वाह कितना सुनहरा पल । सैकडों महफिल से अच्छी हैै उनकी याद । यही तो प्यार है । पर प्यार क्या है ? दिन में चमकता हुआ सूरज । रात के सन्नाटोँ मे उनकी याद की बरसात । महकती हुई सुबह की फिजाँ मे आकाश में बिखरे हुए सफेद बादल । क्या ये सब सच है ? दिल का वहम है या प्यार है ?
प्यार के नाम ढेर सारी किताबें लिखती रही दुनियाँ । प्रकृति की सारी शक्ति बोल रही प्रेम के बारे में । फिर भी किसी को समझ न आया ये प्यार क्या है ? फूलों की खुश्बु में । शीतल हवा में । चाँद या सूरज की रोशनी में । सच मे प्यार कहाँ है और क्या है ?
गाड़ी तेज गति मे बढ़ रही है मेरे दिल की धड़कन की तरह । अब कुछ ही पल में मैं मेरे दीपक से मिल रही हुँ ।
फिर पुछूँगी इतने दिन कहाँ थे ? आपकी यादो में हम बहुत रोए थे । आपकी याद ने हमें शादी करने नहीं दिया । जिन्दगी नीरस हो गई आपकी याद में । कितनी सारी बातें कहनी है उनसे । अब तो साथ ही रहना है । दिल की सारी बातें बताउँगी जो मैंने अबतक छुपा रखी है ।
बसपार्क आ गया । मै धीरे से उतर गयी । नजरें दीपक का चेहरा तलाश कर रही थी । पर सामने काई और था दीपक नहीं था । मेरे पैर वहीं रुक गए । दिल की धडकनें तेज हो रही थीं । भीतर कुछ जल रहा था जो मेरे अरमान थे ।
अचानक आवाज आई नमस्कार । नमस्कार मैंने धीरे से कहा । वो मेरा पहला प्यार नहीं था । कहना था आप दीपक नही हो । होठो पे आते ही आवाज रुक गई मेरी । मै चुपचाप उसके साथ चलती गई । कहाँ जा रहे हैं हम वो भी न पूछ सकी ।
मैने मेसेन्जर पर वादा किया था, उसके साथ चलने का । उससे मिलने का । वादा पुरा करना ही होगा । जान जाए वचन न जाए । वादा निभाने के लिए मै उसके साथ चलती गई ।
जब मैं वहाँ पहँुची । वो मेरा दीपक नही है । वो कौन है ? सुनसान उस रुम में मै क्या कर रही हुँ ? उसने मेरे होठों को चूमा । वो आग था और मै घी कैसे नही पिघलती । उसने जो किया वो मेरे शरीर के लिए आवश्यक था शायद । प्यार और आवश्यकता अलग चीज है । इसलिए मैं उसके सामने पिघलती गई मोम की तरह ।
आवश्यकता में लोग पिघलते हैं । शादी करते हैं और बच्चे पैदा करते हैं । प्यार सिर्फ प्यार ही होता है । प्यार में लेनदेन के सौदे नही होते । प्यार में एक दूसरे का सम्मान होता है ।
एक मिनट का ही तो समय है । जहाँ सबकुछ खतम हो चुका था । सतावन सेकेन्ड मे भूकम्प ने कितने ही बस्ती और धरहरा गिरा दिया था । कितने माँ बाप के गोद खाली हो गए थे । कितने बच्चे अनाथ बन गए थे ।
इसी सेकेन्ड भर मे मेरे कुमारीत्व का विनाश हो चुका था । मेरी सत्यता , मेरे प्यार का नाश हो चुका था । मै पूरी खाली हो चुकी थी । पता नहीं उसने क्या पाया मुझ से । खिडकी से एक हवा का झाेंका अन्दर प्रवेश किया । हवा के झोके ने फिर से दीपक की याद को अन्दर ले आयी ।
फिर बिखर गया । मेरा पहला प्यार दूसरी बार भी । वो कभी नहीं मिलते जो जिन्दगी की राहों में छूट जाते हैं । मेरा तन बिखर गया । मन बिखर गया । मेरे दीपक की वर्षों की याद बिखर गई । अपने ही नजर से बिखर गई मैं ।
किस दुनिया मे होगा वो । उसे तो पता तक नहीं । दीपक की याद में ज्योति किस तरह बिखर रही है हवा में धुँआ बनकर । फिर उसी की याद ने लूटा मुझे । एक बार नहीं कई बार लुट गयी मैं दीपक नाम के यादो में । इस बिखरे हुए सन्नाटों में घी बनकर पिघल गयी मैं दीपक के नाम से । आकाश की ओर झांका मैने वो चुपचाप था । हवा से बादलों से कहा मुझे भी बदलने का हुनर सिखा दो पर ये वादियाँ मौन हैं क्यों ?
वही दिवानापन । वही इन्तजार । वही एहसास । सबकुछ तो मेरे दिल में ही मौजुद है । पर बाहर कैसी तलाश ? । फिर क्यो ढुँढू ? मै अपने को बाहर ।
हमारा प्यार इसी खातिर बिखर गया था । हमारे देश अलग थे । अब तो उन से मिलना कभी मुमकिन नहीं इस जनम में । फिर क्यों तलाश ?

 

सरस्वती शर्मा सुबेदी 

 



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