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प्रभा सिंह कुंवर:आज के मनुष्य की मनस्थिति भयानक है। पुरुष अपनी राह से भटक कर बहुत दूर निकल गया है। मनुष्य वासना का जीता जागता-पुतला बन चुका है। वह राह चलते भी नारी को गलत भावना से देखता है। उसकी दृष्टि में तो काम का स्थायी वास है। काँलेज में जाने वाले कई लडÞके, लडकियों से छेडछाड किया करते हैं। काँलेज के नये वर्षशुरु होने पर वे छोटे शहरों से आई छात्राओं से छेडÞखानी किया करते हैं।
समाचारपत्रों में लडके लडÞकियों के साथ ऐसा दर्ुर्व्यहार होने की खबर छपती रहती है। रौतहट के सदरमुकाम गौर में पढÞने- पढÞाने की बजाय कुछ छात्र-छात्रा को जाल में फंसाकर ‘ब्लू फिल्म’ बनाकर बाजार मे कैसेट वितरण करके उनकी जिदंगी को बर्वाद करनेवाला सेक्स स्क्यान्डल प्रकाश में आया था।
कितनी ही लडÞकियां तो परेशानी और बेइज्जती के डर से मन का दुःखडÞा नहीं बता पातीं। कम्प्यूटर में नंगी तस्वीरे दिखाकर लडÞके-लडÞकियों को भडकाया जाता है। और प्यार के झूठे जाल में फंसाया जाता है। परन्तु हालत ऐसी है कि इस बढÞी हर्ुइ गुण्डागर्दी के विरुद्ध कोई आवाज भी नहीं उठा सकता। क्योंकि हरेक को अपनी रक्षा की चिन्ता रहती है।
आज के दिनों में गाडÞी चलाते बक्त भी सचेत रहना जरुरी है। इसी वर्षकी एक घटना है। रौतहट जिला के औरैया गांव के एक पुलिस की पत्नी को गौर से लेजाने के क्रम में एक टेम्पु-चालक ने बलात्कार कर नदी में फेंक दिया। आज के मनुष्य की दृष्टि, वृत्ति और कृत्ति कामवासना के रंग मे पूरी रंग चुकी है। विद्यालय के छात्रों से ब्रहृमचर्य पालन की आशा की जाती है, जो आज के माहौल मंे असम्भव है।
पडÞोसी देश भारत से पर्यटक हमारे देश में आते हैं, उन में से महिलाएँ प्रायः यह कहती हर्ुइ सुनी जाती हैं कि यहाँ के लोग कामसुख के भूखे हंै। अभी पिछले दिनों ही ट्याक्सी चालक द्वारा बलात्कार किए जाने की घटना हर्ुइ। इससे हम लोगों के नैतिक पतन का अन्दाजा लगाया जा सकता है। घर-घर विषय-वासना की वैतरणी नदी वह रही है। पुरुष तो पशुओं से भी गया-गुजरा बन चुका है।
फिर अब पश्चिम देशों की तरह यहाँ नग्न नृत्यों का भी रिवाज जोर पकडÞ रही है। पहले तो मनुष्य फिल्म देखने विशेष रुपसे जाता था। अब घर मे केवल टि.वि पर सारा परिवार ससुर, बहू, लडÞके, लडकी सभी साथ बैठकर कामविकार के दृश्यों और संवादो से भरी फिल्म देख लेते हैं। भारत की पर्ूवप्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने भी इस बात को स्वीकार की थी कि स्त्रियों से जो युवक छेडÞछाडÞ करते है, उसके लिए सिनेमा भी एकहद तक जिम्मेवार है।
यह कैसी अजीव कहानी है कि देश की लडÞकियाँ एवं महिलाएँ निर्वस्त्र होकर पुरुष के सामने नाचती है और इसे नाम दिया जाता है- मनोरंजन का। स्पष्ट है कि आज देश में महाभारत प्रसिद्ध चीरहरण खुलेआम हो रहा है। भरे हाँल मे दर्शकों के सामने नारी अंग पर््रदर्शन करती हैं और लोग इसे मन बहलाव का नाम देते हैं। देश के युवकों को इस प्रकार के दूषित वातावरण में उन्मुक्त प्रवेश मिलता है। और सरकार ऐसे मनोरंजनों पर प्रतबिन्ध लगाने के बजाय टैक्स बटोर कर ही खुश होती है। चलचित्रों में अभिनेत्रियां अभद्र पर््रदर्शन, नजाकत भरी अदाओं तथा कामोत्तेजक भाव भंगिमाओं से दर्शकों को उत्तेजित करती हैं। और लोग घरों में ऐसे अदाकारों के चित्र बडे शौक से लगाते है तथा अपनी बहू-बेटियों को फिल्म देखने साथ ले जाते हैं। शर्मकी बात है, कहाँ गई इस देशकी सात्विकता और पवित्रता – काम ने तो सबको पछाडÞ डÞाला है और ऐसा अन्धा बना दिया है कि उन्हे मालूम ही नहीं पडÞता कि बुरी तरह से लूट रहे हैं।





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2 thoughts on “नारी को भोग्या समझने से समाज की दुर्दासा

    1. नारी ही हमारी माता नारी ही हमारी गुरु है नारी ही हमारी पत्नी है नारी ही हमारी बहिन है, नारी ही हमारी बेटी है। अगर नारी न हो तो यह संसार ही नसीर है ?

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