औकात : विद्या मिश्र
औकात बैठ जाती हूं अक्सर मिट्टी की सतह पे क्योंकि मुझे पता है मेरी
औकात बैठ जाती हूं अक्सर मिट्टी की सतह पे क्योंकि मुझे पता है मेरी
काफ़िला लूटने वाले : वसन्त लोहनी शिकायत किसी से नहीं — न काफ़िला लूटने
बेटियाँ पराई थीं, बेटियाँ पराई हैं बेटियाँ पराई थीं, बेटियाँ पराई हैं आज तक ज़माने
शब्द ***** कविताओं में गढ़े हुए जो शब्द हैं रोते, गाते हैं सुनना तो सीखो।
राज परिवार के हत्यारे कौन? मिन्टु पटेल एक सुन्दर सा परिवार था सजा राज दरबार
वह पुराना गीत ……………… वह पुराना गीत मुझको याद है जो रहा दिल मे सदा
जन का नहीं रहा जनकपुर ! – चन्द्रकिशोर जब कोई श्रम का हल चलाता है
महाश्वेता देवी की चर्चित कविता आ गए तुम ? द्वार खुला है, अंदर आओ..! पर
न तन्हाई, न ग़म बोझिल आँखें, नाशाद चेहरा, भूलने की आदत से खोया सा मैं।
युवा शक्ति की प्रेरणा विश्व पटल पर आपसे, बढ़ा देश का मान। युवा विवेकानंद है,
आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥ ●●● खिली-खिली हो जिंदगी, महक उठे अरमान।
तुलसी है संजीवनी डॉ सत्यवान सौरभ तुलसी है संजीवनी, तुलसी रस की खान। तुलसी पूजन
पर्यावरण शिशुपाल कुमार सिंह यहाँ हरियाली है, वहाँ जल निराला, पर्यावरण है हम सबकी आशा।
एक औरत होने की व्यथा शालिनी बरनवाल मैं एक औरत, अधूरी नहीं, पर पूरी
भीगी हुई सुबह सिर्फ सोई हुई रात क्यों ? सुबह भी भीगती है जब बादलों
सावन की कुछ कविताएँ 1 रात सावन की / अज्ञेय रात सावन की कोयल
कम होती साँसों की कगार पर खड़ा सोचता हूँ… जिन्दगी ! तू एक उलझी
मानवता बेहाल ……………………………… घर के पीछे आम हो, और द्वार पर नीम एक
गंदगी देखा है मैंने गंदगी भोगा है मैंने गंदगी से गुज़रा हूं मैं खुद ही
काठमान्डू 15मई गीतकार डा.हेमन्त खतिवडा का हिन्दी गीत की किताब कैसा मन मस्ताना प्यारे प्रकाशित
#सब_साता_मोहका_खेला कोई चला गया, कोई जाएगा, कोई यहि डेरा जमाके बैठेगा । कोई गुलामीको गाला
कविता: ललकार दम्भ तेरा तब चूर होगा, काल क्रूर जब वर्षेगा । मुक्त होगी तब
स्मिता श्रीवास्तव । राहुल सुबह-सुबह दौड़ने जाता था। आते-जाते वह रोज़ एक वृद्ध महिला को
“होली” आया – आया, होली का त्योहार है आया, अपने साथ ढेर सारी खुशियाँ है
जय जगद्जननी ! तुमको नमन शतवार है । आज पावन पञ्चमी, शुभ दिवस मंगलवार
शिल्पकार कहूं, मूर्तिकार कहूं या कहूं कुशल कलाकार। पाषाण में प्राण फूंक अद्भुत,अलौकिक,अप्रीतम रूप गढ़ा
नव वर्ष की शुरूआत करना चाहती हूँ नए शब्दाें से, पर एक भी शब्द नया
नींद जी हां, निश्चित रूप से बहुत खुशकिस्मत हूं मैं माता की अपार कृपा है
9 दिसम्बर 23 दर्द की जब इंतहा हो जाती कुछ अक्षर किसी आले में आंसू
आप सबके लिए -हेमा अधिकारी बच्चे, आप तारे जमी के, आप प्यारे-दुलारे | बिन आप
विजयादशमी मंगलवारी, आज शुभद सबको हर्षावे। *दुख दारिद्र्य हरे सब संकट,* *ऋण भय रोग को
सिद्धिदात्री तू जग की माता। तुम्ही भवानी सिद्धि विधाता।। भक्तों की रक्षक सुखदाता। तूं जगपालक
*महानिशा पूजन कर हमने, चरण शरण का आस लिया।* *सबकी झोली भर दे माता, सबने
कालरात्रि हे भद्रकाली मां, सब बलशाली तेरी जय हो। *राधाकान्त की अरज सुनो मां,* *हृदय
*कात्यायनी माता सुखदाई, सबके कारज शीघ्र बनाओ।* *त्वरित संबंध बना के माता, मंगल कार्य कराने
*कूष्मांडा माता शिव दानी।* सब पर दया करो महारानी॥ *नवरात्रि तुझको गोहरावें।* माता सब को
जय जय चन्द्रघण्टा सुख करनी। पूर्ण मनोरथ कर, दुख हरनी।। *राधाकान्त तव विनय सुनाए॥* *नवरात्र
ब्रह्माचारिणी जय जग माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।। ब्रह्म मंत्र जप ध्यान तुम्हारा। दिव्य
शैलपुत्री माँ बैल सवारी, करें तुम्हारी जय जयकारी। शिव शंकर की प्रिया भवानी, तेरी
संस्कृति का हृदय मानवानुभूति की कल्पना में जीवन-दृष्टि से जनित सरित-प्रवाह सी गतिशील संस्कृति संपूर्ण
जारी हैं हलवाहे को कुछ मिलता है वह उसका परिश्रम है मिट्टी के साथ घुलमिल
14 सितम्बर 23 हिन्दी तो बस हिन्दी ही है अनमोल चमकती बिंदी है । भाषाओं
14 सितम्बर —- प्रियांशी, मुंबई भारत जहाँ हमारा वास थी सोने की चिड़िया खास बोली
प्रेम का बन्धन जगत में जोड़ना आसाँ। किन्तु उसको निभाना है नहीँ आसाँ।।१।। प्रेम के
“स्वयं को दें अच्छे मित्र का तोहफ़ा” “मित्रता” मित्रता ये शब्द, सुनने में होता कर्ण
यूं तो दोस्तों के लिए हर दिन खास है, पर हर रिश्ते के लिए एक
नसीब वालों को मिलते हैं खास साँच रिश्ते, मद में पड़ मत तोडना ,नही टुटे
मित्र आखिर मित्र है ,हर दिन है खास बैठाए उन्हें पलको पे ,चाहे दूर हो
दोस्त जिसका औकात ना हो और समझता है अपने आप को सिकंदर तब सब से
“अज्ञात” ———— अज्ञात सी दुनिया में अज्ञात से सहारे जैसे अज्ञात से इक वन
मनभावन सावन श्यामल मेघ संदेश दे गई दामिनी की चमक छा गई काले काले घूंघट
मौत का वह सफर लगता था अब करीब हैं उसकी मंजिल खूब सजी थी सफर
मैं नेपाली मिट्टी की खुसबु, सुवास व मिठास भरा आम जिल्ला सिरहा, लहान मेरा प्यारा
बेचारा ! आपकी हुकूमत, आपकी सल्तनत बेचारा वह क्या हैं? कुछ भी नहीं न
माँ तेरी याद देह की गलने लगी हिम चोटियां हैं सांस पर संकट खड़ा है
अवकाश क्यों नहीं??? ***************** धरती कहना चाह रही है, एक भूली बिसरी, दर्द और टीस
एकाकीपन भोगा है कभी एकांत ! संवादहीन, विचारों का मौन या ज्वालामुखी का दहकता, पिघलता
*””माँ”””* मां तू पर्वत बन जाती है जब मेरे इरादों में बाधा आती हैं मां
*मॉं* मां है ममता त्याग बलिदान का नाम। कर दे जो जिंदगी अपने बच्चों के
#मातृदिवस #मेरी_प्यारी_माँ अनदेखा, अनजाना सा प्यार। बिन शर्तो पर, पलता जो खुमार। कलेजे की,
ममता, प्यार और दुलार मां के नाम से आती है यही फुहार। गुजरा बचपन मां
माता तीर्थ औंसी विशेष मां अंतर्मन की पीड़ा को, बिन कहे समझ जो जाती है
भावना की चादर आज सुन लिया था मैंने, वाे तेरी अनकही बाताें काे, अवाक् हाे
सारा आकाश डा कृष्णजंग राणा सारा आकाश समेटो अपनी मुठ्ठी में जो भी हो, लेकर