संस्कृति का हृदय : डा. राशि सिन्हा
संस्कृति का हृदय मानवानुभूति की कल्पना में जीवन-दृष्टि से जनित सरित-प्रवाह सी गतिशील संस्कृति संपूर्ण
संस्कृति का हृदय मानवानुभूति की कल्पना में जीवन-दृष्टि से जनित सरित-प्रवाह सी गतिशील संस्कृति संपूर्ण
जारी हैं हलवाहे को कुछ मिलता है वह उसका परिश्रम है मिट्टी के साथ घुलमिल
14 सितम्बर 23 हिन्दी तो बस हिन्दी ही है अनमोल चमकती बिंदी है । भाषाओं
14 सितम्बर —- प्रियांशी, मुंबई भारत जहाँ हमारा वास थी सोने की चिड़िया खास बोली
प्रेम का बन्धन जगत में जोड़ना आसाँ। किन्तु उसको निभाना है नहीँ आसाँ।।१।। प्रेम के
“स्वयं को दें अच्छे मित्र का तोहफ़ा” “मित्रता” मित्रता ये शब्द, सुनने में होता कर्ण
यूं तो दोस्तों के लिए हर दिन खास है, पर हर रिश्ते के लिए एक
नसीब वालों को मिलते हैं खास साँच रिश्ते, मद में पड़ मत तोडना ,नही टुटे
मित्र आखिर मित्र है ,हर दिन है खास बैठाए उन्हें पलको पे ,चाहे दूर हो
दोस्त जिसका औकात ना हो और समझता है अपने आप को सिकंदर तब सब से
“अज्ञात” ———— अज्ञात सी दुनिया में अज्ञात से सहारे जैसे अज्ञात से इक वन
मनभावन सावन श्यामल मेघ संदेश दे गई दामिनी की चमक छा गई काले काले घूंघट
मौत का वह सफर लगता था अब करीब हैं उसकी मंजिल खूब सजी थी सफर
मैं नेपाली मिट्टी की खुसबु, सुवास व मिठास भरा आम जिल्ला सिरहा, लहान मेरा प्यारा
बेचारा ! आपकी हुकूमत, आपकी सल्तनत बेचारा वह क्या हैं? कुछ भी नहीं न
माँ तेरी याद देह की गलने लगी हिम चोटियां हैं सांस पर संकट खड़ा है
अवकाश क्यों नहीं??? ***************** धरती कहना चाह रही है, एक भूली बिसरी, दर्द और टीस
एकाकीपन भोगा है कभी एकांत ! संवादहीन, विचारों का मौन या ज्वालामुखी का दहकता, पिघलता
*””माँ”””* मां तू पर्वत बन जाती है जब मेरे इरादों में बाधा आती हैं मां
*मॉं* मां है ममता त्याग बलिदान का नाम। कर दे जो जिंदगी अपने बच्चों के
#मातृदिवस #मेरी_प्यारी_माँ अनदेखा, अनजाना सा प्यार। बिन शर्तो पर, पलता जो खुमार। कलेजे की,
ममता, प्यार और दुलार मां के नाम से आती है यही फुहार। गुजरा बचपन मां
माता तीर्थ औंसी विशेष मां अंतर्मन की पीड़ा को, बिन कहे समझ जो जाती है
भावना की चादर आज सुन लिया था मैंने, वाे तेरी अनकही बाताें काे, अवाक् हाे
सारा आकाश डा कृष्णजंग राणा सारा आकाश समेटो अपनी मुठ्ठी में जो भी हो, लेकर
“कौन अपना कौन पराया” रूपा झा जिंदगी की दौड़ में ,संघर्षों की होड़ में गिरकर
वक्त गुजर चुका है अब बचा कुछ नही राह विलुप्त हो चुकी लेकिन मैं ढूंढ
नवरात्रा चारो ओर धुप -गुगुल से महक उठा है कण -कण सारा घर -मंदिर सब
कर्म पथ रुपा झा कुछ सोच मत, बस चलते चल अपने कर्म पथ पर बढ़ते
अलवर। नेपाल में 17मार्च को नेपाल -भारत साहित्य महोत्सव विराटनगर, नेपाल में आयोजित अलवर निवासी
सदा तुम्हारी जय हो प्रियांशी भक्तों का मन रखने वाले अर्द्ध सिंह रूप धरने वाले
प्रतिभा राजहंस की कविता बसंत गीत और अन्य बसंत गीत ——-प्रतिभा राजहंस आओ हे ऋतुराज
“एक चादर मैली सी “ माँ ने रक्त से सींचा मुझको, उंगली पकड़ के चलाया
तुम हर लो मेरा तम ! दीप हो तुम तुम हो गौतम तुम हर
गुलाब दिवस आज है गुलाब दिवस, तोडकर गुलाब नही जनाब, दे सको तो, सभी को
*_इश्क का महीना_ ” _फरवरी_ “* मंद- मंद सी हवा चली , खिली-खिली सी धूप
नमन मधेस! कहाँ गया वह महतो जिसने सिने में गोली खाई? कहाँ गया वह ठाकुर
एक है दिल तो दुजी धडकन, हिन्दी और नेपाली है दोनों बहनें भोजन करती, प्रेम
अजय कुमार झा, जलेश्वर । भाषा हृदय की अभिव्यक्ति के साथ ही संस्कृति और सभ्यता
प्यारी हिंदी : संदर्भ हिंदी दिवस मैं मिथिला का वो बेटा हूं, जिसे हिंदी से
जय हिंद जय हिंदी भाषा विश्व की है यह महान भाषा दिलों को जोड़ने वाली
नये साल का “नववधु” की तरह तुम हृदय से स्वागत करना। नवसंकल्प के साथ बुलंद
मंगल हो नववर्ष मिटे सभी की दूरियाँ, रहे न अब तकरार। नया साल जोड़े रहे,
काश बचपन लौट आए…. … करूणा झा….. चलो फिर से बच्चे हो जाएं,
भले ही वर्तमान में प्रेम के मायने बदल गए हैं, इसकी परिभाषा बदल गई है
मृगतृष्णा एक स्नेह पिपासु, भटकता रहा, स्नेह पाने इधर-उधर । कभी जंगलाें में गिरे सूखे-
बूँद – बूँद बहुत सम्हालकर रखा था मैंने, मेरे इस अनमाेल रतन काे, मेरे इस
खिड़की आज भी दाैड़ते हुए वहीं, उसी खिड़की पर, जा रूकी थी, एक जिज्ञासा के
कविता-दरिद्रता : दस प्रकरण कवि-विनोदविक्रम केसी १. मेरी मां का एक छोटा सा नाम सिसकारी
ए औरत कब तक छली जाएगी तू, डॉ कामिनी वर्मा कभी राधा बनकर, कभी
पुरानी काॅपी एक बरसों पुरानी कॉपी में अनेक आकार बने हुए थे टेढ़े मेढ़े, खुद
प्रधानमंत्री का पचासिवां व्यञ्जन नेपाली से हिंदी अनुवाद: बिम्मी कालिन्दी शर्मा “प्रधानमंत्री की रसोई” कभी
पांचाली ———— प्रियांशी हूॅं शकुनि की कपट और आग की लपट
नेपाली राजनीति के निर्देशक, नेपाली कांग्रेस के संस्थापक, नेपाली जनता के आदर्श, विश्वपुरुष, प्रखर चेतना,
गुरुवर जलते दीप से दूर तिमिर को जो करें, बांटे सच्चा ज्ञान। मिट्टी को जीवित
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की कृति ‘दुई मुटु याैटा बाटो’ प्रकाशित हो
कविता “संकल्प”, कवि-डा. भिष्म कुमार भुषाल, अनुवादक : बिम्मी कालिन्दी शर्मा मैं कहता हूं सत्य
“पिता के साथ विलाप” कवि- भिष्म कुमार भुषाल अनुवादक: बिम्मी कालिन्दी शर्मा पापा, आपने कमिसन
“जिद्दी इस दिलसे हार गए” मुझे इनसे शिकायत थी इन्हें बताई ये मान गए। मुझे
केदारनाथ सिंह हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि और साहित्यकार थे. वे अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक
सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा… तमाम उम्र मैं इक अजनबी
१ उन रेशों को मत उधेडना” उन रेशों को मत उधेडना जो बारीकी से गुंथे
१ उन रेशों को मत उधेङना” उन रेशों को मत उधेङना जो बारीकी से गुंथे
डाॅ पल्लवी कुमारी”पाम “की कविताएँ 1 “उन रेशों को मत उधेङना” उन