मेहमान (कहानी) : मौसमी सिंह (तिवारी)
मौसमी सिंह, हिमालिनी अंक फरवरी 2024। खट–खट की आवाज से रजनी बार–बार परेशान हो रही
मौसमी सिंह, हिमालिनी अंक फरवरी 2024। खट–खट की आवाज से रजनी बार–बार परेशान हो रही
स्मिता श्रीवास्तव । राहुल सुबह-सुबह दौड़ने जाता था। आते-जाते वह रोज़ एक वृद्ध महिला को
निक्की शर्मा रश्मि खिड़की से झांकती मुग्धा आज सुकून महसूस कर रही थी कभी इन्हीं
कहानी किसी ने कहा वो सुन्दर नही है, किसी ने कहा वो वेल एजुकेटेड नही
नुक्कड़ नाटक प्रियांशी ——————- पात्र- 0 सुनिए सुनिए सुनिए पात्र- 1 आए हैं हम सब
*जिरा मिर्च* तब हम गाँव में रहा करते थे। उस समय मेरी उम्र 6 या
सरोज दहिया हरदेवा को ईश्वर ने माँ की बजाय उसकी दादी की गोद में दे
डा बिना, पुस्तक समीक्षा, हिमालिनी, अंक फरवरी ।साहित्य आम आदमी की जुबां बोलता है ।
कबीरदास जी एक गांव से दूसरे गांव में घूमते रहते थे। एक गांव में कबीरदास
न छोड़ना अपनी डोर को कभी लघुकथा आप सभी को मकर सक्रांति की ढेर सारी
मुकेश भटनागर, होली का पर्व समीप आ रहा था पर विजय का मन कुछ अनमना
एक कहानी गौरतलब है ……… एक अंधेरी रात में एक काफिला एक रेगिस्तानी सराय में
जब सच सामने आया तो बड़े भाई के आंसू आ गए और अपने छोटे भाई
पितृपक्ष “क्या दादी! जब देखो पुरातन जमाने की रीति-रिवाजों में व्यस्त रहती हैं! मम्मी को
आस “हेलो डॉक्टर शशांक!” “हेलो! क्या हम कहीं मिल चुके है?” दोनों एक पार्टी में
शीर्षक : – निश्चय हर व्यक्ति के अंदर क्षमता होती है । जरुरत है समय
पढ़ाई वीरेन्द्र बहादुर सिंह । मार्कशीट और सर्टिफिकेट को फैलाए उसके ढेर के बीच बैठी
डॉ. हंसराज ‘सुमन’ । लख्मीचंद पिछले ही साल जुलाई माह में प्रशासनिक अधिकारी के पद
वीरेन्द्र बहादुर सिंह । वर्दी और दर्दी को समझना आसान नहीं है। एक बच्चे ने
जीवन के सत्य को उद्घाटित करती कहानियां जीवन की कसौटी सत्य की अग्नि में जलकर
भूख गांव के बाहर बड़ा सा तालाब, उसके बाद श्मशान और श्मशान के बगल ही
लघुकथा मानव मेरा प्रेम था, जिसे मैं बहुत चाहती थी। पर प्रेम कब-कहां किसका पूरा
जैकब बेंगलूर की कम्पनी में पियन है ..मात्र पंद्रह हजार मासिक वेतन और इतना बड़ा
हमेशा की तरह हाथ में कपड़ो से भरा हुआ पुराना बैग लिए राजू के पड़ोस
वीरेन्द्र बहादुर सिंह । मयूर कालेज में पढ़ने वाला युवक था। वह काफी स्मार्ट और
अंतरराष्ट्रीय कन्या दिवस के उपलक्ष् में – मुकेश भटनागर, दिल्ली । विजय एक सरकारी उपक्रम
गाजियाबाद के सरकारी स्कूल मैं पढ़ रहा राजू बड़ी ही मेहनत से अपनी पढ़ाई
पत्थर दिल वीरेन्द्र बहादुर सिंह । मैंने मोबाइल में समय देखा, छह बजने में पांच
लघुकथा – 15 अगस्त पर माँ की आश पंकज की दादी 15 अगस्त की
-वीरेन्द्र बहादुर सिंह | अमन बालकनी में खड़ा आराम से सिगरेट के कश पर कश
जानते हो वह बोर्डर मैं ही हूं. बोर्डर पर बोर्डर खडा है..कहो तो और परिचय
सुनलो जरा सरकार …. राजधानी के पथिक जरा सा ठहरो मेरी सुन लो । लेलो
वीरेंद्र बहादुर सिंह, नोएडा | एक गहरी सांस लेकर रजनीकांतजी ने करवट बदली । मन
आँखों में कहीं ख़्वाब रह गया तवील रास्तों का सफ़र कब खत्म हुआ साहिब! आप
लघुकथा महाकाली मठ में एक सुप्रसिद्ध साधक बहुत काल तक भगवती की सेवा में लीन
थप्पड़ उस बस स्टैण्ड में तीन दयालु व्यक्ति, और एक कहीं से भी दयालु
संत्रास (कहानी) संजय सिंह उसे लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा है।उसे कुछ बेचैनी