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गंगेश मिश्र, कपिलबस्तु,६ जून |
सपनों में आती,
सपनें दिखाती,
पथ से भटकाती,
पथ-भ्रष्ट बनाती,
दाँव-पेच सिखाती,
ये कुर्सी।
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वैसे तो प्रथम संविधानसभा निर्वाचन के पश्चात् ही, प्रचण्ड जी प्रधानमन्त्री बन गए थे।
किन्तु, अधिक दिनों तक कुर्सी उनके पास टिक न पाई और हाथों से फिसल गई। पर एक बार फ़िर, अरमान मचलने लगा है; कुर्सी मोह जाग उठी है, यही वज़ह है प्रचण्ड जी, ओली जी को जल्द से जल्द कुर्सी मुक्त देखना चाहते हैं।

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हाय रे कुर्सी !
” जो हाल इधर है, वही हाल उधर है,” इधर कुर्सी के लिए प्रचण्ड जी मरे जा रहे हैं, तो उधर ओली जी ” ऐन केन प्रकारेण ” कुर्सी को बचाए रखना चाहते हैं।
माओवादी जनयुद्ध के ग़ुमनामी बाबा, श्री श्री 1008 खड़मण्डलेश्वर, छद्मभेषधारी बाबा पुष्प कमल जी; सत्तासुख के लिए लड़ते रहे।
जन आन्दोलन के दौरान, एक हव्वा बने हुए थे प्रचण्ड जी; भूमिगत अवस्था में।उनकी एक झलक पाने को पूरी नेपाल की जनता उत्सुक थी, पर बेचारे, डर के मारे छुपे हुए थे।छुपे भी थे उसी देश में, जिसको कोसते रहने में, बड़ा आनन्द आता है;अब इन्हें।
पर हाय रे कुर्सी !
ओली जी पर हमला दो तरफ़ा है, पार्टी के भीतर और बाहर दोनों तरफ़ से; अन्दर साँपनाथ और नागनाथ ( पूर्वप्रधानमन्त्री द्वय ) हाथ धोकर बेचारे के पीछे पड़े हैं, प्रचण्ड जी अपने ज़िद पर अड़े हैं।सत्ता समीकरण बदलने के काफ़ी आसार नज़र आ रहे हैं। बड़े विचित्र होते हैं, कम्युनिस्ट ; खास कर नेपाल के छद्मभेषधारी;  जिन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्तासुख की चाहत होती है। अब याद कीजिए झलनाथ जी की कारस्तानी, जिन्होंने माधव कुमार नेपाल जी को अयोग्य प्रधानमन्त्री कहते हुए कुर्सी हथिया ली थी। और फ़िर आज देखिए,  दोनों मिलकर ओली जी का विरोध कर रहे हैं। कुछ भी हो एक बात तो तय है, अब अधिक दिनों तक ओली सरकार टिकने वाली नहीं है।



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