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मेैथिल, भोजपुरी, अवधी क्षेत्र में छठ पर्व के प्रति आस्था व विश्वास पर विशेष : विजेता चौधरी

विजेता चौधरी, जनकपुर, कार्तिक २१ ।
जल थल पानियां, हे दीनानाथ पवनैतिन ठाढ
उगह उगह हे दीनानाथ आहे भोरे भिनसर….
तराइ–मधेश तथा मिथिला लागायत के क्षेत्र का अभिन्न अंग बन चूका छठ पर्व आज विशेष भव्यता के साथ मनाया जा रहा है ।
आज कार्तिक शुक्ल पष्ठी के दिन मिथिलाञ्चल सहित तराइमधेश लगायत देश की राजधानी काठमांडू में भी छठ पर्व की चहल पहल दिख रही है ।
संस्कृतिविद् डा. रेवतीरमण लाल बताते हैं राजा जनक के समय से ही छठ पर्व मनाया जाने का किंवदन्ती विद्यमान है । यद्यपि पौराणीक काल से ही ये पर्व विद्यमान है । उन्होंने बताया मेैथिल, भोजपुरी, अवधी लगायत के भाषाभाषी व क्षेत्र में छठ पर्व प्रति के आस्था तथा विश्वास की वजह से ही ये आज भी उतनी ही निष्ठा के साथ मनाया जाता है, तथा इस पर्व की निरन्तरता बनी हुई है ।

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यद्यपि छठ पर्व ने राष्ट्रीय पर्व की मान्यता प्राप्त कर चूकि है । इस दिन तराइ मधेश में छुटिट दी जाती है ।
छठ पर्व की ऐतिहासिकता ः
सांस्कृतिविद–साहित्यकार डा. राजेन्द्र विमल बताते हैं– छठ ब्रत जीवनशक्ति का श्रोत सूर्य उपासना का एक मोहक अध्यात्मिक पद्धति है । विमल कहते हैं– छठ आर्यों के सूर्य उपासना परम्परा का एक अंग है । उन्होंने बताया सूर्य पुराण में इस पर्व का विषद वर्णन है ।
सूर्य पुराण के मुताविक सर्वप्रथम अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूया ने उक्त व्रत किया था । डा. विमल ने बताया सूर्य पष्ठी व्रत कथा के श्लोक २१ में अनुसूया ने इस व्रत के फलस्वरुप अटल सौभाग्य तथा पति प्रेम प्राप्त किया उल्लेख है । इस व्रत को करने से दुःख, दारिद्रय तथा चर्म रोग आदी सभी क्लेशों से मुक्ति किलती है ।
डा. लाल कहते हैं मिथिला–मधेशी समुदाय के बीच महान पर्व के रुप में बनाया जाने बाला ये पर्व कुछ वर्षै से देश के सभी समुदाय व भाषाभाषियों के बीच लोकप्रिय बनती जारही है ।

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वर्षेै से छठ व्रत करती आ रहीं जनकपुर ९ सरस्वतीटोल निवासी ६१ वर्षिया लिलादेवी बताती हैं– सूर्य उपासना के साथ आरोग्य के लिए मनाया जाने वाल छठ पर्व के मुख्य पष्ठी तिथि के दिन सवेरे स्नान कर दिनभर निराहार व्रत रखकर शाम को अस्त होते सूर्य को अर्घ दिया जाता है । इस विधि को संझा वा सझुका अरग(अघर्य) कहा जाता है ।
उन्होंने बताया छठ माता को अर्पण किया जाने वाल विशेष प्रसाद तथा नैवेद्य बनाकर पोखर, नदी, तालाव लगायत के जलाशयों के घाट पर विधिवत रखने के बाद सूर्यअस्त होने से पूर्व उक्त विधि पूर्ण की जाती है ।
संस्कृतिविद डा. लाल बताते हैं पूजा के लिए ही विशेष सजाया गाया घाट पर ही रातभर जाग्राम बैठ कर प्रातः सवेरे सूर्योदय से पूर्व जलाशय में खडा हो कर उगते सूरज को पुनः वहीं अर्घ अर्पण करते हुए पर्व की समाप्त होता है । जनवोली में इसे भोरका या भिनुसरका अरग भी कहा जाता है ।
छठ व्रत किस लिए
पष्ठी की माता अर्थात सूर्य देवता में निहित उनकी आह्लादिका शक्ति, जीवन की आदिशक्ति हैं । जनमान्यता के मुताविक छठ पर्व करने से सन्तान की प्राप्ति, पुत्र की प्राप्ति के साथ पति–पत्नी प्रेम, पारिवारिक आरोग्य व चर्म रोग जैसे रोगों से निजात मिलती है ।
सांस्कृतिविद डा. रामदयाल राकेश बताते हैं– सूर्य के रोशनी में रोग के किटाणु तथा जिवाणु को नष्ट करने की क्षमता होती है । शाम के वक्त से भी अधिक सुवह के ब्रम्ह् बेला में उगते सूर्य के रोशनी से व्यक्ति के जिर्ण व रोगी शरिर स्फूर्त तथा नया उष्मा प्रवेश होती है तथा इस से लोग आरोग्य प्राप्त करता है । ये बात वैज्ञानिक खोज से प्रमाणीत हो चुका है ।
जनकपुर ११ निवासी मिनादेवी कर्ण को छठ पर्व प्रति पूर्ण आस्था व विश्वास है । वे बताती हैं– अत्यन्त सावधानीपूर्वक निष्ठा से मनाया जाने वाल इस व्रत के प्रभाव से फल प्राप्त होने का घटना से ही इस की प्रमाणिकता सावित होती है ।
सूर्य देव या छठ मात ः
डा. रामदयाल राकेश बताते हैं छठ पर्व में सूर्य के उपासना एवम् आराधाना किया जाता है फिर भी इस व्रत की लोकप्रियत व व्यापकता छठ परमेश्वरी या छठ माता के पूजा के रुप में प्रचलित है । वेद में कहागया है उषा को ही छठ परमेश्वरी कहा जाता है ।
डा. विमल के मुताविक पष्ठी की माता अर्थात सूर्य देवता में निहित उनकी आह्लादिका शक्ति, जीवन की आदिशक्ति हैं । अर्थात छठ पर्व में सूर्य उपासना या उषा रुपी छठ परमेश्वरी की पूजा सूर्य व किराण के पुरक के रुप में विद्यमान है ।
अर्घ की सामाग्री में लच्छेदार(झुप्पा) फल क्यों ?
इस पर्व में खास तौर पर चक्की तथा खल में परम्परागत तौर से पिसा व कुटा हुआ गेहुँ तथा चावल से निर्मित ठकुवा, भुसुवा अर्थात कसार आदी पकवान चढाया जाता है ।
अर्घ में प्रयः नारियल, संतरा, केरा, ऊँख, निम्बु, मौसम, अंगुर जैसे लच्छेदार फ चढाने का प्रचलन दिखता है । संस्कृतिविद डा. राजेन्द्र विमल बताते हैं झुप्पा तथा लच्छे में फलनेवाली फल चढाने से सूर्य देवता प्रसन्न हों व्रती को कुटुम्बसहित सभी सन्तान फलनेफूलने व प्रगति होने का आस्था प्रचलित है ।
इस प्रकार चार दिन मनाया जानेवाल छठ पर्व के अन्तिम दिन पारण अर्थात पार्वण में प्रातःकालीन सूर्य को अर्घ दिया जात है । उसके बाद परिक्रमा कर सूर्य पुराण श्रवण किया जाता है तथा प्रसाद वितरण किया जात है ।

 



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