” सीता की अग्निपरीक्षा ” : अलका ‘सोनी’
” सीता की अग्निपरीक्षा “
असाधारण जन्म पाकर भी
कहो क्या मैंने था पाया
पृथ्वी से निकली, पिता जनक
पति राम सा पाया
महलों में पली सुकुमारी थी
भाग्य जोगन का था पाया
जो धनु धुरंधर हिला ना पाये
उसको मैंने उंगली से उठाया
शील ,रूप और गुण से भरी
पतिव्रता धर्म सदा ही निभाया
थे विष्णु अवतार राम तो
मैं भी थी लक्ष्मी रूपा काया
चौदह वर्ष वनवास मिला जब
पति संग निज कदम बढ़ाया
क्या गलती थी इसमें मेरी
एक छली बली मुझे हर लाया
पति विलग हो राक्षस कुल में
बंदिनी बन समय बिताया
पत्नी विलग रहे तुम भी लेकिन
तुम पर किसी ने ना प्रश्न उठाया
देनी पड़ी केवल मुझ को ही क्यों
अग्निपरीक्षा समझ ना आया
कहो आर्य पति होने का तुमने
यह कैसा धर्म निभाया ??
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