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ढकी-छुपी सी तुम हो मुझमें काया में परछाई जैसे।’चला गया गीतों का एक मुस्कुराता हुआ चेहरा!

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
‘मन आवारा निश्छल जैसे
सुख-दुख में कुछ भेद न माने
वो सबको ही अपना समझे
भले-बुरे को क्या पहचाने
कपटी मन चतुराई जैसे
सागर में गहराई जैसे
ढकी-छुपी सी तुम हो मुझमें
काया में परछाई जैसे।’

सुप्रसिद्ध गीतकार राजेंद्र राजन की ये पंक्तियां ऐसे समय याद आ रही है ,जब गीतकार राजेंद्र राजन इस नश्वर संसार को हमेशा के लिए छोड़कर हमसे अलविदा हो चुके है।
कोरोना ने हमसे हमारा एक ओर प्यारा गीतकार छीन लिया है।हिंदी वाचिक परंपरा के महान गीतकार राजेन्द्र राजन का जाना हमारे लिए किसी कहर से कम नही है । उत्तर प्रदेश के काष्ठ नगरी सहारनपुर से एक परिपक्व कवि,एक परिपक्व गीतकार और एक परिपक्व साहित्यकार के रूप में राजेन्द्र राजन का अलविदा होना सावन में पतझर जैसा है।उनकी साहित्यिक कृतियों में ‘पतझर-पतझर सावन-सावन’ (काव्य संग्रह), ‘केवल दो गीत लिखे मैंने’ (गीत-संग्रह) शामिल हैं। विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर उनके गीत ,गज़ल, कविताएं प्रकाशित होती रही हैं। सन 1977 से शुरू हुआ उनका गीतों का सफ़र उन्हें गीतकार के रूप में लालकिले तक ले गया।उन्हें राष्ट्रपति भवन में भी काव्य पाठ का सौभाग्य मिला तो अनेक राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों, मुशायरों में उनके गीत गुंजायमान होते थे। आकाशवाणी-दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से उनके मधुर कण्ठ से निकले गीत श्रोताओं व दर्शको को मंत्रमुग्ध कर देते थे।मूलरूप से शामली के एलम निवासी 65 वर्षीय गीतकार राजेंद्र राजन सन 1980 में सहारनपुर में आकर बस गए थे।सहारनपुर ने ही उन्हें साहित्यिक पहचान देकर देश दुनिया तक पहुंचाया।तभी तो अंतर्राष्ट्रीय ¨हदी समिति यूएसए द्वारा अमेरिका के 16 शहरों में हुए कवि सम्मेलन में राजेंद्र राजन को काव्य पाठ करने का मौका मिला था। ¨हदी उर्दू एकेडमी ने उन्हें साहित्यश्री सम्मान, प्रसिद्ध साहित्यकार कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर स्मृति सम्मान, महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान आदि कई सम्मान उन्हें मिले हैं। साहित्य भूषण सम्मान मिलने पर उन्होंने कहा था कि यह उनके शुभचिंतको व प्रशंसकों की दुआओ का प्रतिफल है। चुनाव के दौर में उनके द्वारा गाया गया गीत ‘आने वाले हैं शिकारी मेरे गांव में’ काफी लोकप्रिय रहा है। हिंदी विद्वान प्रो. सदानंद गुप्त के शब्दों में, ‘ राजेन्द्र राजन की रचनाओं से गुज़रना संवेदनाओं की घनी अनुभूतियों का अहसास है, उनके गीतों में सहजता है। उनकी रचनाएं कवि और श्रोताओं के संबंध को चरितार्थ करती हैं। उन्होंने जायसी, निराला, निर्मल वर्मा व जिगर मुरादाबादी के उद्धरण के साथ राजेंद्र राजन के साहित्य और कविता पर उन्होंने कहा कि उनका साहित्य हमें उदार बनाता है, मनुष्य बनाता है।क्योंकि उनका साहित्य प्रेम का पैगाम है। उनकी कविता हृदय का हृदय से योग कराती नज़र आती है।जाने माने साहित्यकार उदय प्रताप सिंह ने राजेंद्र राजन को यादकर कहते है कि एक ही पंक्ति में संयोग और वियोग का जैसा सुंदर उपयोग राजन के गीत में देखने को मिलता है, वैसा दूसरी जगह नहीं मिलता। उन्होंने माना कि राजन के गीत की जो धारा भारत भूषण और किशन सरोज से होकर जाती है, राजन उसी धारा के गीतकार है। पूर्व कमिश्नर आर पी शुक्ल राजन की कविताओं में प्रेम ही नहीं सामाजिक सरोकार का होना भी मानते है।राजन ने रचना मुक्ति के लिए लिखा और रचना से आत्म मुक्ति के लिए भी। डॉ. वीरेन्द्र आज़म के संपादन में राजेन्द्र राजन पर शीतलवाणी अंक निकला था।जिसमे कहा गया कि राजेन्द्र राजन की रचनाओं से गुजरना यथार्थ के गलियारे से होकर गुजरना जैसा है। उनकी रचनाएं समय के सापेक्ष है तो समाज के भी सापेक्ष दृष्टिगत होती हैं। उनकी गज़लों में घर की दीवारों के दरकने की आवाज़ है तो सामाजिक विखंडन का दर्द भी। राजेन्द्र राजन मानते थे कि प्रेम पूरे जीवन का सूत्र है जो जीवन भर साथ चलता है।लेकिन जीवन मे प्रेम को वे मात्र 65 वर्ष तक ही साथ ले जा पाए और मौत के क्रूर हाथो ने उन्हें हमसे छीन लिया।(लेखक राजेंद्र राजन के साथी कवि है)

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