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नेपाल में राजतंत्र की वापसी की साजिश या ओली का राजनीतिक आरोप ?

काठमांडू, हिमालिनी विश्लेषण । में राजशाही समर्थक समूहों की गतिविधियाँ हाल ही में चर्चा का विषय बनी हुई हैं। प्रधानमंत्री एवं सत्तारूढ़ पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले) के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने आरोप लगाया है कि पूर्वराजावादी समूह विदेशी शक्तियों, विशेष रूप से भारतीय राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उससे जुड़े हिंदूवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के समर्थन से नेपाल में राजतंत्र की बहाली और हिंदू राष्ट्र की घोषणा की योजना बना रहे हैं। उनके अनुसार, ये समूह सुनियोजित तरीके से गणतंत्र के खिलाफ “प्रतिगामी गतिविधियाँ” कर रहे हैं।

ओली का आरोप: विदेशी समर्थन से नेपाल में राजशाही की पुनर्स्थापना की कोशिश

प्रधानमंत्री ओली के अनुसार, इन समूहों को भाजपा के कुछ उच्च-स्तरीय नेताओं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि नेपाल में राजशाही समर्थक समूहों द्वारा भारतीय नेताओं की तस्वीरों और बयानों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।

ओली के इस आरोप के बाद सत्तारूढ़ एमाले पार्टी ने अन्य लोकतांत्रिक दलों—नेपाली कांग्रेस और माओवादी केंद्र—के साथ मिलकर इन “प्रतिगामी” तत्वों का संयुक्त रूप से विरोध करने का फैसला किया है। पार्टी ने घोषणा की है कि नेपाल के सभी 6,743 वॉर्डों में एक ही दिन में विरोध जुलूस और आम सभाओं का आयोजन किया जाएगा, ताकि जनता को इन गतिविधियों के प्रति सतर्क किया जा सके।

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क्या नेपाल में राजतंत्र की वापसी संभव है?

नेपाल 2008 में राजशाही को समाप्त कर एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बना था। इसके पीछे जनता का सात दशक लंबा संघर्ष था। संविधान सभा द्वारा पारित नेपाल का संविधान 2015 गणतंत्र को कानूनी रूप से मान्यता देता है, और इसमें किसी भी प्रकार की राजशाही की संभावना खत्म कर दी गई है।

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में पूर्वराजा ज्ञानेन्द्र शाह और उनके समर्थकों द्वारा कई बार नेपाल को पुनः हिंदू राष्ट्र घोषित करने की माँग उठाई गई है। नेपाल में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो हिंदू राष्ट्र के समर्थन में है, लेकिन राजतंत्र की वापसी का समर्थन करने वालों की संख्या अपेक्षाकृत कम है।

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ओली के आरोपों की पड़ताल: राजनीति या हकीकत?

ओली के इन बयानों को दो नजरियों से देखा जा सकता है:

  1. वास्तविक खतरा: अगर सच में भारत के कुछ दक्षिणपंथी संगठन नेपाल में राजतंत्र की बहाली के लिए मदद कर रहे हैं, तो यह नेपाल की संप्रभुता और लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती हो सकती है। भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध रहे हैं, लेकिन भारत की आधिकारिक नीति हमेशा नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की रही है।
  2. राजनीतिक रणनीति: नेपाल की आंतरिक राजनीति में अस्थिरता बनी हुई है। ओली पहले भी अपने राजनीतिक विरोधियों को घेरने के लिए “विदेशी हस्तक्षेप” का मुद्दा उठाते रहे हैं। उनकी पार्टी को हाल ही में कई राजनीतिक झटके लगे हैं, और यह भी संभव है कि वे राजशाही समर्थकों को विदेशी ताकतों से जोड़कर अपने विरोधियों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हों।

भविष्य की संभावना

नेपाल में लोकतंत्र समर्थक दल मजबूत स्थिति में हैं और संसद में उनका बहुमत है। किसी भी संवैधानिक संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, जो राजशाही समर्थकों के पास नहीं है। इसलिए, निकट भविष्य में राजतंत्र की वापसी की संभावना लगभग शून्य है।

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हालांकि, नेपाल में आर्थिक अस्थिरता, बढ़ती बेरोजगारी, और राजनीतिक दलों की आपसी खींचतान से जनता में असंतोष बढ़ रहा है। अगर सरकार जनता की समस्याओं का समाधान नहीं कर पाती, तो राजशाही समर्थक समूह जनता की नाराजगी का फायदा उठाकर अपनी मांगों को फिर से ज़ोर-शोर से उठा सकते हैं।

अंतमें

केपी शर्मा ओली द्वारा लगाए गए आरोपों को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक लाभ उठाने की मंशा भी हो सकती है। नेपाल में राजतंत्र की वापसी फिलहाल असंभव लगती है, लेकिन यह मुद्दा समय-समय पर राजनीतिक बहस और आंदोलनों में बना रहेगा। देश में राजनीतिक स्थिरता और सुशासन ही इस प्रकार की बहसों को हमेशा के लिए खत्म कर सकता है।

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