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औरत बच्चे पैदा करने की मशीन और युवा विदेश जाकर रेमिट्यान्स भेजने की मशीन : श्वेता दीप्ति

डॉ श्वेता दीप्ति, 

बहुविवाह मसौदा: क्या नारी आज भी सिर्फ शरीर या वस्तु है ?

सम्पादकीय, हिमालिनी अंक अगस्त ०२५। सरकार द्वारा बहुविवाह को वैध बनाने के लिए एक मसौदा कानून तैयार करने की खबर सार्वजनिक होने के बाद से पूरे देश में गरमागरम बहस छिड़ गई है । महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों से लेकर आम जनता तक ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है । विश्लेषकों का मानना है कि यह मसौदा लैंगिक न्याय और समानता की अवधारणा के विरुद्ध है । पहले भी कुछ शर्तों के साथ बहुविवाह का प्रावधान था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें लैंगिक भेदभाव मानते हुए उन शर्तों को हटाने का आदेश दिया था । २०७२ में संविधान लागू होने के बाद से बहुविवाह को स्पष्ट रूप से अवैध घोषित किया गया है । संविधान, सर्वोच्च न्यायालय के फÞैसलों और अंतरराष्ट्रीय संधियों ने बहुविवाह जैसी भेदभावपूर्ण प्रथाओं पर रोक लगाई है, लेकिन अब सरकार इसे उलटने की कोशिश कर रही है ।

कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री ओली ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि शादी २० की उम्र में करो और ३० की उम्र तक तीन बच्चे पैदा करो । यानि औरत बच्चे पैदा करने की मशीन और युवा विदेश जाकर रेमिट्यान्स भेजने की मशीन ताकि देश के नेताओं को सारी सुख सुविधाएँ प्राप्त होती रहें । एक छोटे से देश में मंत्रियों की भरमार, मंत्रालयों की भरमार, आयोग की भरमार, हर एक मुद्दे को सुलझाने के लिए एक नए आयोग का गठन । अधिकारियों की नियुक्ति और फिर उनका वेतन, उनके भत्ते, उनकी सुविधाएँ, बस यही खेल जारी है । बने हुए आयोग से सालों साल परिणाम सामने नहीं आते, किन्तु नियुक्त अधिकारी उस सुख सुविधा का उपयोग करते रहते हैं ।

इसी नीति के तहत एक और कड़ी जुड़ रही है बहुविवाह मसौदे के रूप में । कभी–कभी तो लगता है कि कहीं ये उन प्रतिनिधियों के लिए तो नहीं है जिनके अपनी पत्नी के अलावा भी गुप्त रिश्ते हैं जिसे अब वैध स्वरूप प्रदान करना करना चाह रहे हैं । सरकार बहुविवाह के कारण महिलाओं की सुरक्षा का तर्क देने की कोशिश कर रही है । लेकिन यह तर्क स्वयं पितृसत्तात्मक सोच से प्रेरित है । ऐसा कानून बनाना उचित नहीं है जो एक महिला की सुरक्षा के नाम पर दूसरी महिला के आत्मसम्मान और अधिकारों पर हमला करे ।

बहुविवाह को वैध बनाने वाला कनून महिलाओं के खिलाफÞ हिंसा, घरेलू कलह, यौन शोषण और समाज में असमानता को बढ़ाएगा । यह कÞानून पुरुषों के सभी अपराधों को कÞानूनी जाल में फँसा देगा, महिलाओं की आवाजÞ को दबाएगा और उन्हें और भी कमजर बना देगा । कानून का प्रारंभिक मसौदा तैयार है फिलहाल, चरम विरोध के बाद सुधार करने की कोशिश की जा रही है । किन्तु, यह सवाल तो सामने है कि इसकी आवश्यकता ही क्यों पड़ी ? पहले क्या कम शोषित हैं नारी ? यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है । लैंगिक समानता, न्याय और संवेदनशीलता की गहरी समझ के बिना ऐसा कानून महिलाओं के साथ बहुत बड़ा अन्याय है । आवश्यकता इस बात की है कि इस मसौदे को सार्वजनिक किया जाना चाहिए और इस पर व्यापक रूप से चर्चा की जानी चाहिए । प्रस्तावित कानून ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अन्याय का रास्ता खोल दिया है ।
कई महिलाएँ हैं जो पति के अवैध सम्बन्ध से पीडि़त होंगी और कानूनी लड़ाई लड़ रही होंगी । उनका क्या होगा ? अगर यह कानून पारित हो जाता है, तो पहली पत्नी को पति के दूसरी पत्नी को स्वीकार करना पड़ेगा । यह तो नारी हिंसा का एक नया रूप है ।

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महिलाओं के शरीर और भावनाओं का इस्तेमाल करने वाली कÞानूनी व्यवस्था लाना हिंसा को बढ़ावा देना है । महिलाएँ प्रयोगशाला नहीं हैं । सरकार बहुविवाह को दंडनीय अपराध से हटाने और इससे वंचित महिलाओं को ‘दूसरी पत्नी’ बनाने के उद्देश्य से कÞानून बनाने की कोशिश कर रही है । बहुविवाह कÞानून आत्महत्या, मानसिक पीड़ा, घरेलू हिंसा और अन्याय को बढ़ावा देगा । देश और देश की महिलाएँ ऐसे कÞानून को बर्दाश्त नहीं कर सकती ।

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पहले औरत को बच्चा पौदा करने की मशीन और फिर ‘दूसरी औरत’ को स्वीकार करने की बाध्यता आखिर हम किस दिशा की ओर जा रहे हैं ? मुद्दा चिन्तनीय ही नहीं अत्यन्त संवेदनशील है । इसपर गंभीर विमर्श की आवश्यकता है, नहीं तो हर घर रणभूमि बन जाएगा ।

डॉ श्वेता दीप्ति
सम्पादक, हिमालिनी

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