मधेश प्रति भारत की सोच पूर्ववत कहा, मधेश अपनी लड़ाई जारी रखे : श्वेता दीप्ति
श्वेता दीप्ति, काठमाण्डू,23 दिसम्बर ।
आखिर किस दिशा की ओर जा रही है नेपाल की राजनीति ? हमारे सत्ताधारी नेता सिर्फ वो क्यों देखना चाहते हैं, जो उनकी आँखें देखना चाहती हैं । क्या सामने वाले की सोच या समझ को समझने की ताकत या तर्क शक्ति गवाँ दी है उन्होंने ? नेपाली मीडिया और नेपाल के नेता भ्रम की खेती करने में माहिर हैं यह तो समझ में शायद यहाँ की जनता को भी आ गया होगा, किन्तु अफसोस इस बात का है कि यह सच एक खास समुदाय स्वीकार नहीं करना चाह रहा । आखिर राष्ट्रवादिता का सवाल है । चाहे अनचाहे साथ तो देना ही है । हर बार हमारे कमल थापा जी नाकाबन्दी और भारत की नीति को लेकर एक नया शगुफा सामने लाते हैं और चंद घड़ियों के ही लिए सही जनता को खुशी दे जाते हैं और जब यह गलत साबित होता है तो, जनता उन्हें या सरकार को कोई दोष न देकर भारत के विरुद्ध खड़ी हो जाती है । अगर कुछ देखना ही है तो हमें अपने सरकार की उपलब्धियों या नाकामियों को देखना चाहिए क्योंकि वो हमारे पोषक हैं, पड़ोसी राष्ट्र नहीं । आखिर क्यों इनकी कूटनीति या विदेश नीति विफल हो रही है ? क्या यह आत्मविश्लेषण इन्हें नहीं करना चाहिए ? किन्तु इन्हें दोषारोपण और बड़बोलेपन से फुरसत मिले तब तो ।

मधेश के प्रति सत्ता की सकारात्मकता देखकर भारत ने इनके विचारों का स्वागत क्या किया सत्ताधारी खेमे में खुशी की लहर फैल गई । तुरन्त मीडिया ने यह प्रचार प्रसार कर दिया कि भारत नाकाबन्दी खोलने की तैयारी में है । सरकार समर्थक कुछलोग तो यहां तक कहने लगे कि ज्वाइंट सेक्रेटरी अभय ठाकुर (भारतीय विदेश मंत्रालय) जो कल्ह तक मधेशी समर्थक थे वे अब मधेशी विरोधी हो गये हैं । अब तो मधेश आंदोलन बन्द करना ही पड़ेगा । अरे जनाब जरा अपने ही देश के उन नागरिकों से भी तो पूछ लिया होता जो सीमापर मुस्तैदी से इस शीतलहर में भी जमे हुए हैं । जो आज भी जान की बाजी लगाए हुए हैं और जहाँ आज भी सत्ता जान लेने से नहीं हिचक रही है । एक ओर बर्बरता और दूसरी ओर उसी जनता से नम्रता की आकांक्षा । क्या बात है । मानो मधेश की मिट्टी ने मधेश के जवानों में खून नहीं, पानी से सींचा है, जिसे जब चाहो बहा दो और उनकी जुबान से उफ तक ना निकले ।
मधेश आन्दोलन को कमजोर करने की हर चाल चली जा रही है । भारत ने स्वागत किया है सत्ता के उन विचारों का जो थोड़ी ही सही किन्तु यह उम्मीद जगाती है कि यह मधेश के हक में है । किन्तु इस बात से यह तो जाहिर नहीं होता कि मधेश ने आन्दोलन वापस ले लिया और अब सब सहज हो जाएगा । हमारे उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री कमल थापा ने मंत्री परिषद की जो जानकारी भारत को भेजी है उसमें सीमांकन के लिए सहमति शब्द का प्रयोग है जिसका भारत ने स्वागत किया क्योंकि आजतक सत्ता बहुमत के दम्भ में बहुमतीय आधार को कायम करती आ रही थी और आगे भी वही करने के पक्ष में थी । अगर इस सोच में सुधार हुआ है तो निःसन्देह यह स्वागतयोग्य है और भारत ने भी वही किया है ।
हिमालिनी की भारत विदेश मंत्रालय के ज्वाइंट सेक्रेटरी अभय ठाकुर से हुई बातचीत में उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत ने नेपाल सरकार की सकारात्मकता का स्वागत किया है, इससे मधेश आन्दोलन पर कोई असर नहीं पड़ेगा । मधेश अपनी अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है और जब तक उसे यह अधिकार नहीं मिल जाता वह अपनी लड़ाई जारी रखे | भारत भी चाहता है कि मधेश को उसका अधिकार प्राप्त हो । भारत की सोच मधेश के लिए आज भी पूर्ववत है । नेपाली मीडिया शुरु से भ्रामक प्रचार करती आई है, जिसकी वजह से कभी भारत और पहाड़, तो कभी भारत और मधेश में गलतफहमी पैदा होती आई है । नाकाबन्दी भारत ने नहीं किया है, यह तो राज्यसभा के बहस में भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने स्पष्ट कर दिया है । अवरोध मधेश की जनता कर रही है और इसे दूर करना नेपाल सरकार की जिम्मेदारी है, जिसका समाधान उसे राजनीतिक तह से ही करना होगा । भारत अपने नागरिक की सुरक्षा चाहता है, ऐसे में वो उन नाकाओं से सामान नहीं भेज सकता जो संवेदनशील हैं और जहाँ आन्दोलनकर्ता अवरोध कर रहे हैं । यह प्रचार करना कि अब भारत नाका खोल रहा है यह सिर्फ एक शगूफा है और कुछ नहीं । इस भ्रामक प्रचार से मधेश की जनता को हतोत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है । मधेश ने अपनी लड़ाई जीतने के लिए शुरु की है और भारत को यह उम्मीद है कि उन्हें उनका अधिकार मिलेगा । जिस सीमांकन पर नेपाल सरकार बात तक करने की मानसिकता में नहीं थी आज अगर उसके लिए सहमति की बात कर रही है तो यह एक सही सोच है और भारत ने इसी सोच का स्वागत किया है । नेपाल सरकार की ओर से दो बार भ्रामक समाचार प्रेषित हो चुका है जिसकी वजह से मधेश में भारत के लिए विरोध की बातें शुरु हो जाती है किन्तु भारत मधेश के अधिकारों के प्रति सजग और सचेत है । साउथ ब्लाक मधेश और मधशियों के साथ है ।
इस स्पष्टीकरण से यह तो साबित हो गया कि भारत, नेपाल सरकार की सही सोच और सकारात्मकता के साथ है । पड़ोसी राष्ट्र भी चाह रहा है कि यथाशीघ्र यहाँ का वातावरण सही हो और आम जनजीवन सहज हो । पर हमारी सरकार जिस मंथर गति से आगे बढ़ रही है उससे तो लग ही नहीं रहा कि देश किसी असहजता को विगत चार महीने से झेल रहा है । जनता हर रोज एक नई उम्मीद के साथ जगती है, किन्तु उनका वक्त तेल, पेट्रोल, डीजल और गैस की समस्याओं में उलझ कर रह जाता है । पहाड़ की जनता इसका सारा दोष मधेश और भारत को दे रही है और सारा विष वमन इनके खिलाफ हो रहा है । दूसरी ओर वर्षों से उपेक्षित मधेश विगत चार महीने से जिस दंश को झेल रहा है और रोज जिस दमन का शिकार हो रहा है इससे वह कमजोर नहीं हो रहा बल्कि उससे उसका मनोबल और भी बढ़ रहा है । एक आग हर सीने में धधक रही है, जो आश्वासन से शांत होने वाली नहीं है । अब मधेश की जनता को कागजी कारवाही या वादों की फेहरिश्त नहीं चाहिए, उन्हें प्रतिफल चाहिए । आज तो हालात यह है कि सत्ता और मधेश की जनता के बीच बात इतनी आगे बढ़ गई है कि, अब नेता चाहें भी तो मधेश की जनता अपने कदम पीछे करने वाली नहीं है ।