मधेश आंदोलन-नेता इसे सफल नहीं होने दे रहे और जनता इसे मरने नहीं दे रही
मुरलीमनोहर तिवारी,सिपू :हिन्दी चलचित्र अभिनेता अजित ९ लायन ० का मश्हूर डायलॉग है इसे लिक्विड आक्सीजन में डाल दो, पानी इसे जीने नहीं देगी और आक्सीजन इसे मरने नहीं देगा। मधेश आंदोलन भी इसी तरह चल रहा है, नेता इसे सफल नहीं होने दे रहे और जनता इसे मरने नहीं दे रही है।
बंद, हड़ताल और नाकाबंदी का एकमात्र उद्देश्य था, काठमांडू की आपूर्ति ठप्प करके मधेश की मांग पूरा करने को बाध्य कराना। अगर सम्पूर्ण बंदी होता, तो पंद्रह दिन में सरकार को बाध्य किया जा सकता था। मधेश की मांग को सरकार नकार चुकी थी। सरकार को बाध्य करने की चुनौती मोर्चा ने लिया, लेकिन अभी तक बाध्य करने में असफल रहा। अब दोष किसका होता है रु
सरकार ऐसा मान रही है की किसी कारण से बिरगंज नाका का मितेरी पुल टूट गया हो, नया पुल बनने में दो साल लगेंगे, तब तक अन्य नाका, छोटे नाका, सुखा बंदरगाह और तस्करी के माध्यम से आपूर्ति की जाए। ये हो रहा है। यहाँ सरकार सफल है। ये दायित्व आंदोलनकर्ता का बनता है की किसी भी तरीके से आपूर्ति ना हो पाए। यहाँ मोर्चा असफल है।
संबिधान बनने से लेकर अभी तक, सरकार और पहाड़ी दल के सोच में रत्ती भर अंतर नहीं आया है। उन्हें मधेश को कुछ नहीं देना है, इस पर वे हरेक दबाव के वावजूद अड़े है। बिचलन तो मोर्चा में दिखता है, कभी वार्ता नहीं करना है, कभी बिना बुलाए वार्ता करना है, कभी २२ और ८ बूंदे का राग अलापना। कभी भारत से गुहार करना, कभी भारत से आने पर दम्भ दिखाना। ये सब इनके विचलन( भटकाव और ढुल(मूल निति के कारण ही है। इनके विचलन( भटकाव और ढुल(मूल निति के कारण क्या है रु

जब सुषमा स्वराज और मोदी नेपाल आएं थे तो मधेसी दल को कोई भाव नहीं दिया था। यहाँ तक की मधेश कहने पर फटकार भी लगाई थी। उस समय का फटकार और आज के दुलार का एकमात्र कारण है, मधेशी जनता का साथ। चुनाव में मधेश ने साथ नहीं दिया तो भारत ने भी साथ नहीं दिया। आंदोलन में मधेश साथ है तो भारत साथ है। इसका अर्थ हुआ भारत मधेशी जनता के साथ है, नेता के नहीं। अगर मधेशी नेता जनता के उम्मीदों पर खड़े उतरे तो भारत क्या सारी दुनिया साथ देगी। ये जानते हुए भी मधेशी नेता मधेश की उम्मीदों पर खड़े नहीं उतरते, सभी नेता एक साथ नहीं आते, ऐसा क्यों रु
अगर सभी एक साथ आए, तो ताकत बढ़ेगी, कार्यकर्त्ता बढ़ेंगे, सारे नाके बंद होंगे। तस्करी बंद होगी, आपूर्ति ठप्प होगा। सरकार बात मानने को मजबूर होगी। आंदोलन सफल तो होगा मगर फिर किसी एक का एकाधिकार नहीं रहेगा। फिर कोई अकेले मशीहा, कोई अकेले संत, कोई अकेले क्रन्तिकारी नहीं रहेंगे। फिर मनमाफिक सहमति नहीं होंगी, खरीद( बिक्री नहीं होगी, सत्ता में हिस्सेदारी नहीं होगी। फिर उपलब्धि सीधे मधेश को मिलेगी, फिर इनकी दुकान कैसे चलेगी रु
अंतरास्ट्रीय जगत और भारत कहता है, मधेश का मांग जायज है। आंदोलन को समर्थन है। ये कैसा समर्थन है की कूटनीतिक मर्यादा के नाम पर दूसरे नाका से सारा माल(सामान भेजा जा रहा है। तस्करी कराइ जा रही है। सरकार हत्याए कर रही है, निर्दोष बालक तक को नहीं बक्शा जा रहा है। क्या कमजोर के जीवन का कोई मोल नहीं है रु क्यों सिर्फ पर्सा को मुर्ख बनाकर बिरगंज नाका पर बैठाया गया है रु जब प्रचंड प्रधानमंत्री बने थे, भारत को पसंद नहीं आया और नतीजतन बॉर्डर से एक किलो चीनी तक नहीं आ रहा था। एस।एस।बी ने प्रचंड का गुस्सा निर्दोष मधेशियों पर निकाला। क्या वही भारत आज चाहे तो तस्करी नहीं रोक सकता रु क्या विश्व शक्ति को नेपाल की आर्थिक मदद रोकनी नहीं चाहिए रु
भारत अपने मर्यादा में रहते हुए मधेश का पुरजोर समर्थन तो कर ही रहा है। हमारी लड़ाई का कोई देश केवल समर्थन ही कर सकता है, लेकिन हमारी लड़ाई हमें ही लड़नी होगी। आंदोलन के शुरुआत से बात आ रही है, अब मधेश हिंसक हो जायेगा, फिर खून की नदिया बहेंगी, मगर डीज़ल( पेट्रोल बह रहा है। अब अलग देश की बात होगी।।। अब आंदोलन और सशक्त होगा रु पर हुआ कुछ नहीं, वही धाक के तिन पात। लड़ने वाले, संघर्ष करने वाले, संघर्ष के लिए ज्ञापन नहीं देते। संघर्ष के लिए बन्दुक के लाइसेंस का फॉर्म नहीं भरते। लड़ने वाले लड़ते है और लड़ कर अपना हक़ लेते है, गिदर भभकिया नहीं देते। हमलोग कागज के शेर है। हम बरसने वाले नहीं गरजने वाले बादल है। हिंदी चलचित्र में ही गब्बर ने कहा है ूजो डर गया समझो मर गया।ू