Sun. Feb 9th, 2025

ललित निबन्ध

समकालीन राजनीति में स्टेटोडायनामिक प्रोग्रेसिविज़्म की प्रासंगिकता : डॉ. विधुप्रकाश कायस्थ

डॉ. विधुप्रकाश कायस्थ, काठमांडू । स्टेटोडायनामिक प्रोग्रेसिविज़्म, जो शब्द “स्टेटो” (राज्य या स्थिरता) और “डायनेमिक”

“संघ का विजयादशमी उद्बोधन 2024- निहितार्थ” : प्रवीण गुगनानी

प्रवीण गुगनानी, विदेश मंत्रालय में सलाहका। आज भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का माप, ताप, व्याप,

एकात्म मानववाद – एक दिव्य सिद्धांत (दीनदयाल जी की जयंती पर विशेष) : प्रवीण गुगनानी

प्रवीण गुगनानी, सलाहकार, विदेश मंत्रालय । महान दार्शनिक प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु

भारतीय ज्ञान परंपरा – भारतीय शिक्षा प्रणाली : नई शिक्षा नीति

प्रवीण गुगनानी, इसे युगांतरकारी कदम कहा जाना चाहिये या अपनी भूमि, अपनी मिट्टी से जुड़ने का

संघ शिक्षावर्ग – राष्ट्रसाधना के प्रशिक्षण का प्रसंग : प्रवीण गुगनानी

प्रवीण गुगनानी, सलाहकार, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार । ग्रीष्म की छूट्टियों में जब कि सामान्यतः

नारी स्रष्टा किरण आचार्य की वर्तमान साहित्य गतिविधि तथा उनके द्वारा रचित परसुराम उपन्यास

नेपालगञ्ज/(बाँके) पवन जायसवाल । कृति समालोचक लेक प्रसाद प्याकुरेल द्वारा प्रस्तुत शिक्षण पेशा में कुशल

श्रीगुरुजी की शक्तिशाली राष्ट्र की अवधारणा : प्रवीण गुगनानी

प्रवीण गुगनानी, ग्वालियर । श्री गुरुजी, माधव सदाशिव राव गोलवलकर शक्तिशाली भारत की अवधारणा के

सरल नहीं होता हैं मोहन, विष्णु और भजनलाल हो जाना : प्रवीण गुगनानी

प्रवीण गुगनानी, ग्वालियर । भारतीय जनता पार्टी में एक टर्म या शब्द चलता है, “देवतुल्य कार्यकर्ता”

सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद : मुरलीमनोहर तिवारी सीपू

मुरलीमनोहर तिवारी (सीपू), बीरगंज । धनतेरस यानी की धनत्रयोदशी, हर साल कार्तिक माह के कृष्ण

धर्म का धर्म एवं जीवन धर्म vs धर्म युद्ध और जीवन युद्ध : कैलाश महतो

कैलाश महतो, परासी । नेपोलियन हिल कहते हैं, “ईसाई धर्म आज दुनिया में सबसे क्षमतावान

ईमानदार कलमकार- मुंशी प्रेमचंद : लक्ष्मी प्रसाद चौधरी

ईमानदार कलमकार : मुंशी प्रेमचंद साहित्य में यथार्थवादी परंपरा की आधारशिला रखने वाले मुंशी प्रेमचंद

जानिए क्यों रह गयी माँ नर्मदा कुंवारी…?? : डॉ शशि कला लढ़िया

जानिए क्यों रह गयी माँ नर्मदा कुंवारी…?? कहते हैं नर्मदा ने अपने प्रेमी शोणभद्र से

नवलपरासी का प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थल रामग्राम : डॉ. कौशलेन्द्र श्रीवास्तव

हिमालिनी,5 अप्रैल, 2023 | नेपाल के पश्चिमी भूभाग में अवस्थित तराई के तीन जिले कपिलवस्तु,

प्रजातांत्रिक प्रशिक्षण,मनुष्य जन्म से ही परतंत्र है : डा.अशोक माहासेठ

 डा. अशोक माहासेठ, काठमांडू । चौरासी लाख जीवधारी के बीचमे मनुष्य उत्कृष्ट जीव है ।

एकादश विश्व हिंदी सम्मेलन–एक अद्यतन रिपोट -: रघुवीर शर्मा

विश्व हिंदी सम्मेलन हिंदी भाषा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सबसे बड़ा अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन है जिसमें

अंतरास्ट्रीय जगत में हिंदी का बढ़ता आकाश : मुरली मनोहर तिवारी (सीपू)

मुरली मनोहर तिवारी (सीपू), बीरगंज । निस्सन्देह हिन्दी आज सारे विश्व में ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’ के

कठोर परिश्रम सफ़लता की कुंजी है : एडवोकेट किशन भावनानी

अलसस्य कुतो विद्या,अविद्यस्य कुतो धनम्। अधनस्य कुतो मित्रं,अमित्रस्य कुतः सुखम् –योगवासिष्ठ आओ नए वर्ष में

महामहिम भारत के राष्ट्रपति को  ग्रंथ ‘जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम” की प्रथम प्रति भेंट

मुंबई विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय ने अपना सद्य: प्रकाशित ग्रंथ जयशंकर प्रसाद महानता

म.प्र. ने जलाई हिंदी की मशाल : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

*डॉ. वेदप्रताप वैदिक*केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु के क्रमशः मुख्यमंत्री, मंत्री और नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र

मुसलमानों ने बॉलीवुड को बिगाड़ा है ,बनाया नहीं : राजेश झा

राजेश झा, मुम्बई।’राष्ट्रद्रोही मुसलमान’ जब अपने समाज में भी दुत्कारे जाने लगे हैं , राष्ट्रवादी

“लिव इन रिलेशनशिप” भारतीय संस्कृति में सहजीवन : डाॅ0 कामिनी वर्मा

*डाॅ0 कामिनी वर्मा* आत्मसंयम, इन्द्रियनिग्रह, परोपकार, सहनशीलता, उदारता, अपरिग्रह आदि वैयक्तिक गुण भारतीय संस्कृति में

समाज में आपसी-भाईचारे, मेल-मिलाप, कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है रामलीला. 

एस.एस.डोगरा,दिल्ली,पुरषोतम भगवान राम का नाम ही एक ऐसा व्यक्तित्व का आईना है जिसे हर व्यक्ति को अनुसरण करना चाहिए. पौराणिक ग्रन्थ रामायण में राम एक ऐसा चरित्र है जिसने अपने जीवन काल में पहले पुत्र, भाई,पति, पिता एवं प्रजा के प्रति एक अयोध्या राज्य के शासक के रूप आदर्श जीवन जिया. इन्ही सद्गुणों की बदौलत ही, भगवान राम को देश-विदेशों में बड़ी श्रधा पूर्वक पूजा जाता है.  उन्ही के व्यक्तित्व को लेकर उन पर बायोपिक बोले तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी-जगह जगह रामलीला मंचन किया जाता है. रामानंद सागर ने तो उन “रामायण” नामक टीवी सीरियल बना डाला था. और उस सीरियल की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस समय वह सीरियल टीवी पर प्रसारित होता था तो लोग सारे अपने जरुरी काम एवं व्यस्तता छोड़कर इस सीरियल को देखने के लिए टीवी से चिपक जाया करते थे. इन दिनों यानि नवरात्रों में अक्सर हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी रामलीलाओं का मंचन बड़ी धूमधाम से किया जाता है. जहाँ तक इस रामलीला के मंचन की बात की जाए तो अधिकतर रामलीला आयोजकों का मानना है कि आज समाज में भगवान राम जैसे आज्ञा-पालक पुत्र, भाई, पति, एवं आदर्श शासक के संस्कारों को जिन्दा रखने के लिए रामलीला मंचन अत्यंत जरुरी है. रामलीला में आदर्श राम तथा अन्य चरित्रों से बहुत कुछ सीखने समझने को मिलता है. फिर चाहे लक्ष्मण की अपने भाई भगवान राम एवं सीता मैया के प्रति आदर हो, या संकट मोचन भगवान हनुमान. अपने पति भगवान राम के प्रति अपार श्रधा का अनुपम उदहारण है सीता-माता का बलिदान. प्रत्येक वर्ष,  लगभग दस दिनों तक चलने वाले रामलीला मंचन में सभी बड़े क्रमबद्दता के आधार पर प्रतिदिन अनेक चरित्रों द्वारा बड़े सुन्दर ढंग से रामलीला को दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है. रामलीला, भगवान राम के पूरे जीवन की एक नाटकीय प्रस्तुति है, जो अपने युवा काल के राम के इतिहास से शुरू होती है और भगवान राम और रावण के बीच 10 दिनों के लिए युद्ध के साथ समाप्त होती है। महान हिंदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, राम लीला एक पुरानी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जो हर साल 10 रातों के लिए मंच पर खेलती है। लीला के अंत में आरती होती है। इस अवधि के दौरान एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है ताकि हर कोई राम लीला नाटक का भरपूर आनंद ले सकें। रामलीला की शुरुआत : रामलीला की ऐतिहासिकता पर नजर डाले तो एक किंवदंति का संकेत है कि त्रेता युग में श्री रामचंद्र के वनगमनोपरांत अयोध्यावासियों ने चौदह वर्ष की वियोगावधि राम की बाल लीलाओं का अभिनय कर बिताई थी। तभी से इसकी परंपरा का प्रचलन हुआ। एक अन्य जनश्रुति से यह प्रमाणित होता है कि इसके आदि प्रवर्तक मेघा भगत थे जो काशी के कतुआपुर महल्ले में स्थित फुटहे हनुमान के निकट के निवासी माने जाते हैं। एक बार पुरुषोत्तम रामचंद्र जी ने इन्हें स्वप्न में दर्शन देकर लीला करने का आदेश दिया ताकि भक्त जनों को भगवान के चाक्षुष दर्शन हो सकें। इससे सत्प्रेरणा पाकर इन्होंने रामलीला संपन्न कराई। तत्परिणामस्वरूप ठीक भरत मिलाप के मंगल अवसर पर आराध्य देव ने अपनी झलक देकर इनकी कामना पूर्ण की। कुछ लोगों के मतानुसार रामलीला की अभिनय परंपरा के प्रतिष्ठापक गोस्वामी तुलसीदास हैं, इन्होंने हिंदी में जन मनोरंजनकारी नाटकों का अभाव पाकर इसका श्रीगणेश किया। इनकी प्रेरणा से अयोध्या और काशी के तुलसी घाट पर प्रथम बार रामलीला हुई थी। सूत्रों के मुताबिक रामनगर वाराणसी में राम लीला एक महीने के लिए रामलीला मैदान पर विशाल मेले के साथ आयोजित की जाती है। दशहरा त्यौहार शरद नवरात्रों से शुरू होता है। विजयादशमी के दिन, राम ने रावण को हरा दिया और मार डाला तो जमीन पटाखों और आतिशबाजी की आवाज से भरा हो गया। इस दिन हर कोई बुराई  पर सच्चाई की जीत के लिए आनंद लेता है और नृत्य करता है। रावण के भाई कुंभकरन और पुत्र मेघनाथ भी भगवान राम द्वारा युद्ध में मारे गये। लंबे समय से युद्ध की जीत के बाद, राम घर आये जहां अभिषेक का आयोजन किया गया, ताकि अयोध्या नगरी में उनका स्वागत किया जा सके। राम अवतार भगवान विष्णु के 7 वें जीवित रूप अवतार के रूप में माना जाता है। पूरी रामायण भगवान राम के साथ अपनी पत्नी और भाई के इतिहास पर आधारित है। भारतीय संस्कृति में राम लीला का अधिक महत्व है। भारत में अधिकतर स्थानों पर, रामलीला के रामायण, रामचरितमानस के अवधियों के संस्करण में आयोजित किया गया था दशहरा के दौरान रामलीला ने लोगों के वैश्विक ध्यान को आकर्षित किया ऐसा माना जाता है कि प्राचीन रामलीला शो, तुलसीदास के अनुयायी मेघा भगत,  द्वारा आयोजित किया गया था मुगल सम्राट अकबर के समय, अकबर ने यह प्रदर्शन देखा था और वह बहुत खुश हुए थे। आजकल, उत्तर प्रदेश में कई क्षेत्रीय रीति-रिवाजों के अनुसार रामलीला को विभिन्न शैलियों में किया जाता है। सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख रामलीला मेला राजा काशी नरेश के किले में रामनगर, वाराणसी में आयोजित किया जाता है विशेष रूप से, रामलीला को चित्रकूट में पांच वर्ष के लिए उत्सुक भक्तों द्वारा सालाना किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि रामलीला मेला का पारंपरिक मंचन रामनगर, बनारस (काशी नरेश का किला) गंगा नदी के तट पर स्थित है जिसे वर्ष 1830 में काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह द्वारा शुरू किया गया था। जिसकी वजह से ही इसे रामनगर और वाराणसी के सभी क्षेत्रों और वाराणसी के आस-पास के इलाकों में प्रसिद्धि मिली मेले तथा रामलीला को  देखने के लिए यहां बहुसंख्या में तीर्थयात्री आते है पूरा रामनगर शहर अशोक वाटिका, पंचवटी, जनकपुरी, लंका आदि के लिए विभिन्न दृश्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक सेट के रूप में कार्य करता है। रामनगर के स्थानीय अभिनेता रामायण के विभिन्न पात्रों की  महत्वपूर्ण भूमिकाएं राम, रावण, जानकी, हनुमान, लक्ष्मण, जटायू, दशरथ, और जनक को खेलते हैं दशहरा त्यौहार काशी नरेश की परेड द्वारा रंगीन हाथी की  चढ़ाई से शुरू किया जाता है। सैकड़ों पुजारी वहाँ रामचरितमानस के पाठ को बताने के लिए वहाँ रहते हैं। रामलीला के प्रकार: रंगमंचीय दृष्टि से रामलीला तीन प्रकार की हैं – सचल लीला, अचल लीला तथा स्टेज़ लीला। काशी नगरी के चार स्थानों में अचल लीलाएँ होती हैं। गो. तुलसीदास द्वारा स्थापित रंगमंच की कई विशेषताओं में से एक यह भी है कि स्वाभाविकता, प्रभावोत्पादकता और मनोहरता की सृष्टि के लिए, अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, लंका आदि अलग-अलग स्थान बना दिए गए थे और एक स्थान पर उसी से संबंधित सब लीलाएँ दिखाई जाती थीं। यह ज्ञातव्य है कि रंगशाला खुली होती थी और पात्रों को संवाद जोड़ने घटाने में स्वतंत्रता थी। इस तरह हिंदी रंगमंच की प्रतिष्ठा का श्रेय गो. तुलसीदास को और इनके कार्यक्षेत्र काशी को प्राप्त है। गोपीगंज आदि में भरतमिलाप के दिन विमान,  इलाहाबाद के दशहरे के अवसर पर रामलीला के सिलसिले में जो विमान और चौकियाँ निकलती है, उनका दृश्य बड़ा भव्य होता है। जबकि रामायण के प्रथम रचियता महर्षि बाल्मीकि जी  के आधार पर भी रामलीला मंचन किया जाता है. रामलीला में कलाकार: लीला के पात्र, नवजात,  किशोर, युवा, प्रौढ़ सभी होते हैं। पात्रों का चुनाव करते समय रावण की कायिक विराटता, सीता की प्रकृतिगत कोमलता और वाणीगत मृदुता, शूर्पणखा की शारीरिक लंबाई आदि पर विशेष ध्यान रखा जाता है। पहले रामलीला मंचन केवल ब्राह्मण जाति वाले  ही किया करता थे लेकिन आजकल हिन्दुओं के अलावा अन्य धर्मों के अनुयायी भी   रामलीलाओं में अपनी-अपनी भूमिका निभाकर चर्चा में भी बने रहते हैं. लीलाभिनेता चौपाइयों, दोहों को कंठस्थ किए रहते हैं और यथावसर कथोपकथनों में उपयोग कर देते हैं। इस कड़ी में आमतौर पर, शिव-पार्वती संवाद, नारद मोह, रावण तपस्या, पृथ्वी पर अत्याचार, राम-सीता जन्म, तकड़ा वध, अहिल्या उद्धार, ग्रुप वाटिका, सीता स्वंयवर, राम-राज तिलक घोषणा, मंत्र कैकेयी संवाद, राम वनवास, राम-निषादराज मिलन, खेवट प्रसंग, दशरथ मरण, भारत-कैकयी संवाद, राम-भरत मिलाप, पंचवटी प्रवेश, सुरपर्णखा  प्रसंग, खर-दूषण वध, रावन-मारीच संवाद, सीता-हरण, जटायु वध, शवरी प्रसंग, हनुमान मिलन, राम-सुग्रीव मैत्री, बाली वध, रावण-सीता संवाद, हनुमान-सीता संवाद, रावण-हनुमान संवाद, लंका दहन, विभीषण शरणागत, सेतु बंधन, अंगद-रावण संवाद, लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, लक्ष्मण मूर्छा, हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेकर आना, रावण कुम्भकरण संवाद, कुम्भकरण विभीषण संवाद, कुम्भकरण वध, मेघनाथ-रावण संवाद, मेघनाथ वध, सुलोचना प्रसंग, अहिरावण शक्ति प्रदर्शन, अहिरावण वध, और सबसे अंत में राम की शक्ति पूजा, रावण का अन्तर्द्वन्द, राम-रावण युद्ध, रावण वध, दशहरा महोत्सव-रावण,कुम्भकरण,मेघनाथ के विशाल पुतलों का दहन,भव्य आतिशबाजी, राम अयोध्या वापिसी और भगवान राम का राजतिलक के द्रश्यों के माध्यम से पूरी रामलीला को मंचित किया जाता है. लोकनायक राम की लीला भारत के अनेक प्रान्तों-जिलों

हिन्दू अर्थशास्त्र’ को पुनर्जीवन देनेवाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय : राजेश झा

राजेश झापं, मुंबई ।  पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज १०९वीं जयन्ती है।समाज के निर्धनतम व्यक्ति

नकटौरा: नारी अस्मिता-बोध का प्रतीकात्मक अनुप्रयोग : डाॅ.करुणाशंकर उपाध्याय

चित्रामुद्गल समकालीन हिंदी साहित्‍य की शिखर साहित्‍यकार हैं।आपने गुण और परिमाण दोनों ही दृष्टियों से

बड़वा में हैं अंग्रेजों के जमाने की शानदार चीजें : डॉo सत्यवान सौरभ,

(गगनचुंबी हवेलियां, मनमोहक चित्रकारी, कुंड रुपी जलाशय, हाथीखाने, खजाना गृह, कवच रुपी मुख्य ठोस द्वार

डिजिटल शासन के नए युग में परास्त होते गरीब : प्रियंका ‘सौरभ’

-प्रियंका ‘सौरभ’सम्मान के साथ जीने का अधिकार एक संवैधानिक अनिवार्यता है। हालाँकि, यह आज शासन

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के मायने!

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट हिन्दी और उर्दू के चिरायु भारतीय  साहित्यकारों में सबसे अग्रणी हैं

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