Mon. Oct 2nd, 2023
मिथिला राज्य का उदय *
     रामबाबू नीरव

पुपरी अनुमंडल का सम्पूर्ण इतिहास को जानने से पूर्व मिथिला राज्य और तिरहुत प्रमंडल के साथ‌ साथ सीतामढ़ी जिला के इतिहास को भी समझना अत्यावश्यक है. क्योंकि पुपरी सीतामढ़ी जिला एवं तिरहुत प्रमंडल का ही भू- भाग है. सीतामढ़ी मिथिला राज्य के उद्भव काल से ही मिथिला का एक विकसित जनपद रहा है. यह सर्वविदित है कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की भार्या जगत जननी माँ जानकी का प्रादुर्भाव इसी पुण्य भूमि (पुनौरा धाम) पर धरती माँ के गर्भ से हुआ था. अतः देखा जाए तो मिथिला की महिमा माँ सीता के पुण्य प्रताप से ही है.



   सर्वप्रथम हमलोग मिथिला के सम्पूर्ण क्षेत्र को समझ लें. वर्तमान में मिथिला धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें बिहार राज्य के तिरहुत, दरभंगा, मुंगेर, कोशी, पूर्णिया और भागलपुर प्रमंडल तथा झारखंड राज्य के संथाल परगना के साथ साथ नेपाल के तराई क्षेत्र के भी महत्वपूर्ण भूभाग शामिल हैं. इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा हिन्दी, मैथिली, बज्जिका तथा नेपाली है. हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में इस क्षेत्र का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण के बाद विस्तृत उल्लेख बाल्मिकि रामायण में मिलता है. मिथिला राज्य का उल्लेख महामुनि वेद व्यास कृत महाभारत में भी देखा जा सकता है. इसके अतिरिक्त अन्य पुराणों तथा गोस्वामी तुलसी दास रचित रामचरितमानस के साथ साथ जैन और बौद्ध धर्म ग्रंथों में भी देखने को मिलता है. पुराणों के अध्ययन करने से यह भी ज्ञात होता है कि मिथिला का दूसरा नाम विदेह भी था. इसके अतिरिक्त इसे कहीं कहीं तिरभुक्ति अथवा तिरहुत के नाम से भी सम्बोधित किया गया है.
   बाल्मीकि रामायण तथा अन्य पुराणों में मिथिला को राजा निमि के पुत्र मिथि से जोड़ा गया है. रामायण के अनुसार राजा निमि के मृत शरीर को मथानी से मथने के पश्चात जिस दिव्य पुरुष का इस धरा पर अवतरण हुआ उसे मिथि के नाम से जाना गया. उसी राजा मिथि ने इस भूभाग पर मिथिला राज्य की स्थापना की तथा अपने मिथिला राज्य की राजधानी जनकपुर नगर को बनाया. वर्तमान में यह नगर हमारे पड़ोसी राष्ट्र नेपाल का प्रमुख धार्मिक तथा तथा व्यवसायिक केन्द्र है. इस नगर को नेपाल राष्ट्र की दूसरी राजधानी भी कहा जाता है. राजा मिथि के बारे में यह भी प्रचलित है कि स्वत: जन्म लेने के कारण उनका नाम जनक पड़ा. तथा विदेह ( देह रहित ) पिता से जन्म लेने के कारण वे वैदेह (देह रहित) कहलाए. महाभारत काल में भी इस क्षेत्र को मिथिला कहकर ही सम्बोधित किया गया है तथा यहाँ के राजाओं को विदेह वंशीय (विदेहा:) कहा गया है.
  वृहद् विष्णुपुराण के मिथिला महात्म्य में मिथिला तथा तीरभुक्ति (तिरहुत) दोनों नामों का उल्लेख मिलता है. इस पुराण के अनुसार बहुत सारे नदियों के तीर (तट) पर स्थित होने के कारण इसका नाम तीरभुक्ति पड़ा, जो बाद में तिरहुत हो गया. गंगा से लेकर हिमालय तक 15 नदियों के अस्तित्व को माना गया है. धर्मग्रंथों में उल्लिखित है कि यह तीरभुक्ति मिथिला सीता का नीमी कानन है, ज्ञान का क्षेत्र है और कृपा का पीठ है. जानकी की यह जन्मभूमि निष्पापा और निर्पेक्षा है. यह राम को आनंद देने वाली तथा मंगल दायिनी है.
महाभारत के अनुसार मगध के उत्तर दिशा में मिथिला की स्थिति मानी गयी है. श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन की मगध यात्रा का वर्णन करते हुए महर्षि वेदव्यास ने कहा है कि वे लोग पहले सरयू नदी पार करके पूर्वी कौशल प्रदेश फिर महाशोण (सोन नदी), गंडकी तथा सदानीरा को पार करके मिथिला में गये. पुन: गंगा तथा महाशोण को पार करके मगध पहुंचे. उस समय मगध के राजा जरासंध थे. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उस काल में मगध के‌ उत्तर मिथिला प्रदेश था तथा बज्जी प्रदेश मिथिला राज्य के ही अधीन था.
वृहद् विष्णुपुराण के अनुसार पूर्व में कोशी से आरंभ होकर पश्चिम में गंडकी तक 24 योजन तथा दक्षिण में गंगा नदी से आरंभ होकर उत्तर में हिमालय वन (तराई प्रदेश) तक 16 योजन मिथिला राज्य का विस्तार था. इस प्रकार उल्लिखित सीमा के अन्तर्गत वर्तमान में नेपाल का तराई प्रदेश के साथ बिहार राज्य का पश्चिमी चम्पारण (बेतिया), पूर्वी चम्पारण (मोतिहारी), शिवहर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, वैशाली (हाजीपुर) समस्तीपुर, बेगूसराय, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा और खगड़िया जिले का प्राय: पूरा भूभाग तथा भागलपुर जिले का आंशिक भूभाग पड़ता है.
 मिथिला राज्य के संस्थापक राजा मिथि की 22 वीं पीढ़ी में (रामायण काल में) राजा सीरध्वज जनक का जन्म हुआ था. यही राजा सीरध्वज जनक जगत जननी माँ जानकी के पाल्य पिता थे. राजा सीरध्वज जनक द्वारा बर्षा के आह्वान हेतु भूमि पर हल चलाए जाने के दौरान माँ सीता का अवतरण धरती के गर्भ से हुआ था. (पूरी कहानी अगले अध्याय में दी जाएगी.)
रामायण काल के पश्चात अर्थात राजा सीरध्वज जनक पुत्र से लेकर अंतिम राजा कृति तक लगभग 32 राजाओं ने मिथिला पर शासन किया. इन राजाओं की सूची निम्नलिखित है –
1.मिथिला राज्य के संस्थापक महाराज मिथि, 2. प्रथम जनक, 3. उदावसु, 4, नन्दिवर्द्धन, 5. सच केतु, 6. देवरात, 7. बृहद्रथ, 8. महावीर. 9, सुधृति. 10. धृष्केतु, 11. हर्यश्व, 12, मरु, 13. प्रतीन्धक, 14. कीर्तिरथ, 15. देवमीढ़, 16. विवुध, 17. महीध्रक, 18. कीर्तिराज, 19. महारोमा, 20. स्वर्णरोमा, 21. ह्रस्वरोमा, 22. सीरध्वज जनक (माँ सीता के पिता)
रामायण काल के बाद के राजा –
1. भानुमान (राजा सीरध्वज जनक के पुत्र), 2. शत द्युम्न, 3. शूचि, 4. ऊर्जनामा, 5. शतध्वज, 6. कृति, 7. अंजन, 8. कुशहिं, 9. अरिष्टनेमि, 10. श्रुतायु, 11. सुपार्श्व, 12. संजय, 13. क्षेमावी, 14. अनेना, 15. भौमरथ, 16. सत्यरथ, 17. उपजु, 18. उपगुप्त, 19. स्वागत, 20. स्वानंद, 21. सुवर्चा 22. सुपार्श्व, 23. सुभाष, 24. सुश्रुत, 25. जय, 26. विजय, 27. ऋत, 28. सुनय, 29. बीतहृव्य, 30. धृति, 31. बहुलाश्व, 32. कृति.
राजा कृति के साथ ही विदेह राजवंश समाप्त हो गया. उसके बाद महाभारत काल का उदय हुआ. महाभारत काल के राजाओं का अधिक वर्णन नहीं मिलता. यहाँ के राजाओं को विदेह वंशीय कहा गया है. महाभारत काल के बाद लगभग 700 ईसा पूर्व में दुनिया के प्रथम गणतंत्र वैशाली गणराज्य की स्थापना हुई और मिथिला राज्य को उसी गणराज्य में शामिल कर लिया गया. उस गणराज्य को बज्जि महासंघ अथवा लिच्छवि गणराज्य के नाम से भी जाना जाता है. यह बज्जि महासंघ आठ गणतांत्रिक कुलों का संघ था, जो उत्तर बिहार में गंगा के उत्तर में (मुजफ्फरपुर/हाजीपुर) अवस्थित था. इस राज्य की राजधानी वैशाली थी. लगभग 468 ईसा पूर्व (भगवान् बुद्ध के प्रादुर्भाव के बाद) बौद्ध काल में मगध सम्राट बिम्बसार के पुत्र अजातशत्रु ने महा बज्जि संघ को जीतकर अपने मगध साम्राज्य में मिला लिया. 345 ईसा पूर्व के आसपास मगध पर नंदवंश का शासन हो गया. इस वंश के महा पातकी राजा महापद्म नंद को आचार्य चाणक्य के सहयोग से चन्द्रगुप्त मौर्य ने नंदवंश का विनाश कर मगध में मौर्य राजवंश की स्थापना की. चन्द्रगुप्त मौर्य ने मिथिला और वैशाली के साथ साथ नेपाल राज्य को भी मगध साम्राज्य में मिला लिया. मौर्य राजवंश के द्वितीय राजा सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था. परिणामस्वरूप सम्पूर्ण मगध के साथ साथ वैशाली और मिथिला की भी अधिकांश प्रजा ने बौद्ध धर्म को अपनाया. मगध साम्राज्य के अंतिम राजा बृहद्रथ मौर्य की हत्या उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और मगध में शुंग राजवंश की स्थापना की. चूंकि शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंगलु ब्राह्मण थे इसलिए उन्होंने पुनः समस्त मगध साम्राज्य में हिन्दू धर्म को स्थापित की. इसके साथ ही मिथिला तथा नेपाल राज्य भी हिन्दू हो गया. शुंग राजवंश के पतन के बाद यहाँ हर्ष, गुर्जर, चन्देल, पाल आदि राजवंशों के बाद गुप्त राजवंश का अखंड राज्य स्थापित हुआ. इस राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त प्रथम ने की. इस राजवंश के प्रतापी राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय हुए जिन्हें विक्रमादित्य भी कहा जाता है. मिथिला राज्य दसवीं शताब्दी तक विभिन्न राज्यों के अधीन रहा. दसवीं शताब्दी के अंत और ग्यारहवीं शताब्दी के आरंभ में कर्णाटक के नान्यदेव ने गुप्त राजाओं के सहयोग से कर्णाट राजवंश की यहाँ स्थापना कर पौराणिक मिथिला राज्य को जीवित किया।



About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: