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आज की दुनिया मे एकता में सरदार पटेल की प्रासंगिकता : मुरली मनोहर तिवारी (सीपू)



मुरली मनोहर तिवारी (सीपू), बीरगंज । मेरे जेहन में सवाल उठता है कि, भारत की आजादी के अमृतमहोत्सव के समय से, सरदार पटेल की प्रासंगिता की बात क्यों हो रही है ? यह सवाल इसलिए भी उठता है कि भारत मे आदर्श की कमी नही है, एक से एक महापुरुष है फिर सरदार पटेल ही क्यों ? स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्र भारत के निर्माण को परिधि माने तो जवाहरलाल नेहरू की तुलना लालबहादुर शास्त्री से कर सकते है, फिर सरदार पटेल ही क्यों ?

सबसे पहला ज़बाब मेरे मन आया कि जब देश के लोग किसी एक राजनैतिक खानदान की उपासना करने को मजबूर हो गए थे, जब बड़े सामाजिक उद्देश्यों के लिए देशसेवा का बढ़-चढ़ कर दावा करने वाले, क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थों को साधने में व्यस्त हो गए, उससे काफी पहले एक नेता ऐसा भी था जिसने अपने दृढ़ संकल्प से देश की एकता को संभव बनाया था।

आश्चर्य है कि कुछ वर्षों पहले तक सरदार पटेल की कुछ गाहे-बगाहे औपचारिक आयोजनों के अलावा न चर्चा होती थी, न उन्हें याद किया जाता था जबकि उनकी प्रासंगिकता दिनोदिन बढ़ती जा रही है। जब देश नेतृत्व और सुशासन के मामले में एक के बाद एक संकट के दौर से गुजर रहा था, जब अदूरदर्शी क्षत्रप देश की एकता की नींव पर लगातार चोट कर रहे हो, जब सार्वजनिक सक्रियता का एकमात्र उद्देश्य ऐशोआराम की जिंदगी हासिल करना बन गया हो, ऐसे समय में पटेल की प्रेरणा, उनका व्यक्तित्व और कृतित्व दूसरे कई शख्सियतों से ज्यादा प्रभावी है।

फिर भी, उस महान व्यक्तित्व को भुला देने की साजिश होती रही। जिस शख्सियत ने चार साल तक नई दिल्ली के 1 औरंगजेब रोड़ पर निवास के दौरान देश की भौगोलिक एकता को बनाए रखने के लिए संकल्पबद्ध प्रयास किए, उसका कोई नामलेवा नहीं था। कहीं उसके कोई निशान नहीं दिखते थे। मानो राष्ट्रीय राजधानी में स्मारक स्थापित करने का एकमात्र अधिकार एक राजनैतिक परिवार का हो। इसलिए आइए पहले सरदार पटेल को जानें।

आज से 148 साल पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875  में गुजरात के नडियाद के एक कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल और माता का नाम लाडबा देवी था। सरदार वल्लभ भाई पटेल अपने परिवार में सबसे छोटे सदस्य थे। इनसे पहले इनके तीन भाई सोमाभाई, नरसीभाई और विट्ठलभाई थे। वल्लभ भाई पटेल का विवाह झावेर्बा पटेल के साथ हुआ था जिनसे उन्हें मनिबेन पटेल और दह्याभाई पटेल दो संतान हुई।

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सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं कक्षा पास की। 36 साल की उम्र में इंग्लैंड जाकर 30 महीनों में 36 महीने का कोर्स पूरा करने के बाद, पटेल अपनी कक्षा में शीर्ष पर रहे, जबकि उनकी कोई पिछली कॉलेज पृष्ठभूमि नहीं थी। सरदार पटेल ने लंदन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की थी और वापस अहमदाबाद आकर वकालत करने लगे थे.

5 जनवरी 1917 को सरदार पहली बार अहमदाबाद नगर पालिका के पार्षद चुने गए। उन्होंने तब दरियापुर सीट से चुनाव लड़ा था और सिर्फ एक वोट से जीते थे। 1924 में, सरदार अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए।

स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं की स्थापना :- भारत में केवल दो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाएँ थीं – पुणे में और कराची में। सरदार ने ऐसी और प्रयोगशालाओं की आवश्यकता महसूस की जो बीमारियों को पता कर सकें और पेयजल आपूर्ति और खाद्य आपूर्ति की गुणवत्ता की जांच कर सकें। तीसरी प्रयोगशाला शाहीबाग में दूधेश्वर वाटरवर्क्स परिसर के भीतर स्थापित की गई थी।

पहला गुजराती टाइपराइटर :- पहले गुजराती टाइपराइटर की असेंबली 1924 में सरदार द्वारा शुरू की गई थी। इसके लिए अहमदाबाद नगरपालिका ने रेमिंगटन कंपनी से संपर्क किया था और गुजराती भाषा में पहला टाइपराइटर लगाने के लिए उसे 4,000 रुपये का भुगतान किया था।

यौन अयोग्यता को समाप्त किया :- चुनावों में “यौन अयोग्यता” को दूर कर जिला नगरपालिका अधिनियम में “यौन अयोग्यता” को हटाने वाले सरदार पहले व्यक्ति थे। इस अधिनियम के तहत महिलाओं को धारा 15(1)(सी) के तहत चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। इस संबंध में 13 फरवरी, 1913 को अहमदाबाद नगर पालिका सामान्य बोर्ड में एक प्रस्ताव पारित किया गया था।

सरदार ने तर्क दिया था कि महिलाओं को निर्वाचित निकाय से बाहर रखना शहरी आबादी के आधे के प्रतिनिधित्व को समाप्त करने के बराबर है। 1926 में, धारा 15(1)(c) को समाप्त कर दिया गया था।

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अस्पताल का निर्माण :- वीएस अस्पताल के निर्माण के लिए नगरसेठों वाडीलाल साराभाई और चुनीलाल चिनॉय से मदद मांगने के बाद, सरदार ने अप्रैल 1927 में प्रांतीय सरकार को 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये के अनुदान के लिए लिखा।  पटेल ने पहले सुझाव दिया था कि शहर का सिविल अस्पताल नगरपालिका के अधीन होना चाहिए लेकिन इस सुझाव को खारिज कर दिया गया। यह तब था जब वाडीलाल साराभाई और चुनीलाल चिनॉय ने एक नया अस्पताल बनाने के लिए योगदान दिया था और इसके लिए 21 एकड़ का भूखंड निर्धारित किया गया था।

पटेल पर भ्रष्टाचार के आरोप (‘फंड के गलत बयानी’) :- जब अहमदाबाद नगर पालिका में सरदार पटेल और 18 अन्य पार्षदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए, तो उन्होंने जिन्ना की मदद मांगी। 28 अप्रैल, 1922 को अहमदाबाद जिला न्यायालय (एडीसी) में 1.68 लाख रुपये के ‘फंड के गलत बयानी’ का मामला दर्ज किया गया था। सरदार ने एडीसी में मामले का सफलतापूर्वक बचाव किया। लेकिन उन्हें 1923 में बॉम्बे हाई कोर्ट में घसीटा गया। जिन्ना ने वकीलों के एक पैनल का नेतृत्व किया और सरदार पटेल के लिए लड़ाई लड़ी, केस जीत लिया।

सोमनाथ मंदिर का निर्माण :- कई समूह उस मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए दौड़ पड़े। दुर्भाग्य से, प्रधान मंत्री श्री नेहरू थे जिन्होंने इसके पुनर्निर्माण से इनकार कर दिया था। श्री नेहरू एक हिंदू नफरत करने वाले थे इसलिए उन्होंने मुसलमानों को खुश करने के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग करने और हज सब्सिडी लागू करने का फैसला किया। लेकिन सरदार पटेल अलग थे, उन्होंने सोमनाथ के लिए लड़ाई लड़ी और इसे फिर से बनवाया।

बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व करने के कारण और उसकी सफलता की वजह से वहां की महिलाओं ने उन को सरदार की उपाधि भी प्रदान की जिसकी वजह से वह सरदार वल्लभ भाई पटेल कहलाने लगे।

सरदार बल्लभ भाई पटेल ने राजनीतिक एकीकरण में अपनी काफी भूमिका निभाई थी जिसके कारण उन्हें भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाने लगा।

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सम्मान

  • सरदार वल्लभ भाई पटेल के सम्मान में अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है.

  • गुजरात में वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय है.

  • सन 1991 में उनके मरणोपरांत उनको भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया है

  • वल्लभ भाई पटेल के 137 वी जयंती पर गुजरात में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल का एक नया स्मारक स्थापित किया।

  • सरदार पटेल की याद में गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण किया गया। यह विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है।

वल्लभ भाई पटेल का निधन 15 दिसंबर 1950 में हुआ था।

जिस दौर में देश के नेता स्वार्थ को ही तरजीह दे रहे हों, सरदार का नि:स्वार्थ सेवा भाव अद्भुत मिसाल बन सकता है। उनके एक सहयोगी ने, जो बाद में थोड़े समय के लिए प्रधानमंत्री बने, बताया था कि बतौर केंद्रीय मंत्री सरदार ”प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों से फोन पर बात करने का खर्च अपने वेतन से दिया करते थे। कांग्रेस के फंड से पैसे नहीं लेते थे।’’ सरदार पटेल की बेटी और सचिव मणिबेन खर्च का हिसाब-किताब रखा करती थीं।

सरदार पटेल में कौटिल्य की कूटनीति एवं शिवाजी जैसा आक्रामक जज्बा था। जटिल से जटिल समस्याओं को चुटकी में समाधान करने की कला में वे माहिर माने जाते थे। सरदार पटेल के आदर्श व व्यक्तित्व को शब्दों में पिरोना संभव नहीं है। एकता और शक्ति के प्रतीक सरदार पटेल के आदर्श व विचार आज भी प्रासंगिक हैं। वे सशक्त, समृद्ध व सुदृढ़ भारत की नींव रखने वाले लौह पुरुष सरदार पटेल आज भी युवा के प्रेरणा स्रोत हैं।

आज के समय जहाँ “भारत तेरे टुकड़े होंगे” का नारा लगने लगे, अपने ही देश के ख़िलाफ़ “टूल किट” का प्रयोग हो, देश के बड़े नेता अंतराष्ट्रीय मंच पर अपने ही देश की आलोचना करने लगे तब सरदार पटेल की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है।



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