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काठमांडू, ७ माघ |
विद्यमान संविधान में मधेशी पिछड़ावर्ग, आदिवासी जनजाति, दलित, मुसलिम का अधिकार संबोधन न होने की वजह से संघीय गठबंधन की असंतुष्टि रही है । संविधान में सीमांकन के संबंध में पहले एक प्रदेश बनाने की बात आई, उसके बाद दो प्रदेश की, लेकिन अभी ५ प्रदेश बनाया गया है । इसी प्रकार झापा, मोरंग, सुनसरी, कैलाली, कंचनपुर और चितवन को मधेश प्रदेश में रखने की बात थी । जबकी संशोधन विधेयक में इसे नहीं रखा गया है । नागरिकता की प्राप्ति के सम्बन्ध में महिलाओं के लिए पूर्ण अधिकार की बात नहीं आयी है । समानता के शासन अन्तर्गत पिछड़ावर्ग को न आरक्षण की बात है, न ही पिछड़ावर्ग के लिए आयोग बनाने की बात शामिल की गई है । इसी प्रकार नेपाली भाषा की अतिरिक्त तराई मधेश में बोली जाने वाली भाषाओं को कामकाज की भाषा बनाने की सम्बन्ध में भी कोई संबोधन नहीं किया गया है । इसलिए विद्यमान पंजीकृत विधेयक में हमारी असंतुष्टि रहीं है । अर्थात् हमलोग विधेयक परिमार्जन कर पंजीकृत करने के लिए कह रहे हैं । जबकि प्रतिपक्षी विद्यमान विधेयक को लेकर ही प्रतिरोध में उतरे हैं । यहां तक कि उन्होंने आरोप भी लगाया है कि यह विधेयक विदेशी शक्ति के इशारों में पंजीकृत किया गया है । जबकि उन्हें समझना चाहिए था कि उनकी मुट्ठी में जब देश की वागडोर थी, तो उस वक्त वे भी विदेशी शक्ति के इशारों में ही संविधान जारी किया था ।

Kausal kumar singh
जहां तक संविधान के कार्यान्वयन की बात है । मेरे ख्याल से जब तक विद्यमान पंजीकृत विद्येयक को पमिार्जन सहित पारित नहीं किया जाता है, तब तक कार्यान्वयन करने का सवाल ही नहीं उठता है । दूसरी तरफ इस संविधान के तहत चुनाव होने का अर्थ होता है कि संविधान को कार्यान्वयन करना । जो पक्ष कल आन्दोलन में थे आज कुछ दल सत्ता की लिप्सा के कारण सत्ता धारियों के साथ मिलकर संविधान कार्यान्वयन की ओर आगे बढ़ रहे है । इससे मधेशियों के साथ बहुत बड़ा धोखा होगा । क्योंकि देश में समान प्रतिनिधित्व, समान अधिकार, सामजिक न्याय और संघीय शासन प्रणाली स्थापित करने के लिए ही आंदोलन किया गया था । जबकि इनमें से कोई अधिकार मधेशी, पिछड़ावर्ग, दलित, आदिवासी जनजातियों को प्राप्त नहीं हो सका है । ऐसी अवस्था में इस संविधान को स्वीकारने का सवल ही नहींं उठता है । वैसे संसद में ऐन पारित करना, कराना, सत्ता अपने अनुकूल संचालन करना, कराना, सत्ताधारी आज से ही नहीं, अपितु २५० वर्षों से ही करते आ रहे है, और करेंगे भी । जहां तक रही बात हमलोगों की, तो अपने अधिकार की प्राप्ति हेतु हम लड़ते रहेंगे ।
जाहिर है कि सत्ताधारी सिर्पm अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए और मधेशी, पिछड़ावर्ग, दलित, आदिवासी जनजाति, दलित, जो सदियों से उत्पीडि़त हैं, वंचित हंै, शोषित हैं, उनकी आवाज को दबाने के लिए षड़यन्त्र करते आ रहे हैं और करेंगे भी । चुनावी मुद्दा भी उसी षड़यन्त्र का एक टे«लर है । अभी चुनाव सम्बन्धित लाया गया ऐन में समानुपातिक चुनाव प्रणाली के सिद्घान्त के विपरीत ‘थ्रेसहोल्ड’ की बात रखी गई है । इनता ही नहीं दलों के सीट संख्या के आधार पर दल संचालनार्थ चुनाव आयोग मार्पmत पैसे लेने की बात हो रही है । इससे बड़ी बेइमानी और क्या हो सकती है रु
जनता से २(३ प्रतिशत टैक्स लेकर अपने सुख सुविधा में खर्च करना, ये कौन से लोकतंत्र की परिभाषा के अंतर्गत आता है रु वैसे लोकतंत्र में जनता के शासन को बरकरार रखने के लिए चुनाव होना आवश्यक है । और वह चुनाव भी स्वच्छ एवं स्वतंत्रतापूर्वक होना चाहिए । परन्तु अभी की स्थिति में चुनाव होने की कोई संभावना नहीं है ।
(कौशल कुमार सिंह लोक दल के अध्यक्ष हैं )

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