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काठमांडू, १८ जुलाई । संस्कृत व्याकरण के विद्वान तथा साहित्यकार प्रा.डा. विष्णुराज आत्रेय का भौतिक शरीर अब इस दुनियां में नहीं रहा है । प्रा.डा. आत्रेय कैंसर रोग से पीडित थे । ७४ वर्षीय आत्रेय का निधन आज शनिबार अपने ही निवास काठमांडू (बत्तिसपुतली) में हुआ है ।
साहित्य जगत में आत्रेय ‘लाटो साथी’ के नाम से परिचित हैं । संस्कृत, नेपाली और अवधि भाषा में प्रा.डा. अत्रेय कलम चलाते थे । ‘हनुमदयन’ और ‘वैदेही’ महाकाव्य, ‘ढाक्रे’, ‘कपिलवस्तु’ जैसे खण्डकाव्य, ‘हामीभित्रका म’, ‘सोमतीर्थ’, ‘सुपा देउराली’, ‘कपिलधाम’, ‘शान्ताकुञ्ज’, ‘पाणिनी’, जैसे उपन्यास जैसे लगभग ३ दर्जन साहित्यिक कृति प्रकाशित है ।
संस्कृत भाषा में लिखित ‘हनुमदयन’ महाकाव्य के लिए प्राण्डा आत्रेय को वि.सं. २०७५ का जयतु संस्कृतम् पुरस्कार प्राप्त है । उनके द्वारा लिखित ‘कपिलधाम’ उपन्यास में बुद्ध जन्मस्थल लुम्बिनी एवं कपिलवस्तु की धार्मिक, सांस्कृतिक तथा पुरातात्विक महत्व का वर्णन है ।



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