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छोटे से देश में खूबसूरती, मस्ती:विजयकुमार झा

नमस्ते ! नेपाल की धरती पर उतरते ही जिस अंदाज में यह पहला शब्द सुनने को मिला, वह यह समझाने के लिए काफी था कि यहाँ के लोग मेहमाननवाजी में हम भारतीयों से कहीं कम नहीं होंगे । चार दिन के प्रवास में हर जगह हमारी यह धारणा सही ही साबित हर्ुइ । नेपाल पर कुदरत की मेहरबानी की एक झलक तो १०००० मीटर की ऊँचाई पर उडÞते हवाई जहाज में बैठे-बैठे ही मिल चुकी थी । नीले आकाश की छुअन का अहसास करने को बेताब लगते ऊंचे पहाडÞों की चोटी को निहारने का अनुभव बडÞा ही मजेदार था । तभी तो नेपाली एयरलाइंस कंपनियों ने पर्यटकों को खास कर इस अनुभव का आनंद दिलाने के लिए ‘माउंटेन फ्लाइट’ नाम से विशेष सेवा शुरु कर रखी है । समुद्र तल से १३५० मीटर की ऊँचाई पर बसे काठमांडू से उडÞान भर कर विमान लोगों को करीब ८५०० मीटर की ऊचाई तक ले जाते हैं । और इस बीच पडÞने वाली दर्जन भर से ज्यादा पर्वत चोटियों के नजारे दिखाते हैं । साथ ही, इन चोटियों के बारे में दिलचस्प जानकारी भी देते हैं, पर यह मौसम की मेहरबानी के बिना संभव नहीं होगा और यह मेहरबानी हम पर नहीं हर्ुइ । हम दो दिन कोशिश करके भी ‘माउंटेन फ्लाइट’ का मजा नहीं ले सके । दोनों दिन कोहरे की वजह से फ्लाइट रद्द हो गई । और हम तीन घंटे बर्बाद कर दूसरे खूबसुरत पडÞाव के लिए निकल पडÞे ।
ऊपर पहाडÞ और नीचे झील, जंगलों के रूप में कुदरत ने नेपाल पर जम कर रहमत बरर्साई है । काठमांडू से पोखरा -करीब २०० किलोमीटर) और पोखरा से चितवन की यात्रा में पूरे रास्ते हमें इस कुदरती खूबसूरती का नजारा देखने को मिला । पोखरा, राजधानी काठमांडू की तुलना में काफी छोटा शहर है । रौनक भरे काठमांडू से एकदम अलग भी-शांत भी । शाम होते ही शहर सन्नाटे में खोने लगता है । रात होने पर डांस क्लबों में बजने वाले गाने यह सन्नाटा तोडÞते हैं । तडÞके पर्यटकों का काफिला बस एक ही रास्ते पर बढÞता दिखता है, जो अन्नपर्ूण्ा रेंज की ओर जाता है । यहाँ ऊँचे पहाडÞों से सूर्योदय का नजारा देखने के लिए भारी भीडÞ जुटती है । मौसम साफ रहा और र्सर्ूय पर बादलों की काली छाया नहीं पडÞी तो नजदीक से उगते सूरज को देखने का अनुभव वाकाई मजेदार होता है । हालांकि बारिश, कोहरे और बादलों की वजह से हम वहाँ पहुँच कर भी यह मजा उठाने से वंचित रह गए ।
ट्रेकिंग, पाराग्लाइडिंग का शौक रखने वालों के लिए तो पोखरा में आनंद ही आनंद है । अगर आपको इससे डर लगता है तो फेवा लेक में बोटिंग का मजा तो ले ही सकते हैं । बोटिंग करते हुए झील के बीच में वाराही देवी के मंदिर पहुँच जाईए । वैसे पूरे नेपाल में जगह-जगह कुदरती खूबसूरती के बीच देवी-देवताओं ने अपना स्थान बनाया हुआ है । ऊँची पहाडी पर बसा मनोकामना मंदिर हो या फिर काठमांडू घाटी का पशुपति नाथ मंदिर । ये पर्यटकों को देवी-देवता के प्रति आस्था जताने के साथ कुदरती खूबसूरती का भी पूरा लुत्फ उठाने का भरपूर मौका देते हैं । काठमांडू और पोखरा के बीचों बीच सैकडÞो मीटर की ऊँचाई पर स्थित मनोकामना मंदिर पहुँचने के लिए करीब १० मिनट की केबल कार की सवारी के दौरान प्रकृति की खूबसुरती का जो नजारा देखने को मिला, वह अपने आप में अद्भुत था । नीचे त्रिशुली नदी, ऊपर पहाडÞ और साथ सफर करने का एहसास दिलाते खूबसूरत पेडÞ… । हमारे गाइड बसंत ने बताया कि जनकपुर के जानकी मंदिर और लुंबिनी के बौद्ध मठों के र्इद-गिर्द भी कुदरती खूबसुरती की खूब बहार देखने को मिलती है ।
नेपाल को अपने चितवन नेशनल पार्क पर भी गर्व है । ९३२ वर्ग किलोमिटर क्षेत्र में फैले इस पार्क में पर्यटक दर्ुलभ जानवर देखने के लिए आते हैं । हमने भी राँयल बंगाल टाइगर देखने की हसरत लिए करीब २ घंटे हाथी पर बैठ कर जंगल की खाक छानी । लेकिन हमें राइनोसेरस देख कर ही संतोष करना पडÞा । महावत ने बताया कि नसीब अच्छा होने पर टाइगर दिख जाता है । पर, काठमांडू में रहते हुए नाइट लाइफ का मजा लेने के लिए नसीब अच्छा होने की शर्त कतई नहीं है । ठमेल में कैसिनो, बार, पब, क्लब, रेस्ताराओं की भरमार है । काठमांडू के दूसरे हिस्सों में भी इनकी कमी नहीं है । वीकेंड पर तो यहाँ जबरदस्त भीडÞ रहती है । पोखरा में भी कुछ ऐसा ही हाल दिखा । सरकार की कमाई का यह बडÞा जरिया है ।
वैसे, छोटे से नेपाल में पर्यटन की बडÞी संभावनाएँ दिखीं । राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही सरकार ने भी इसे समझा है और इस बार २०११ को नेपाल पर्यटन वर्षके रूप में मनाया जा रहा है। सरकार इस साल १० लाख पर्यटकों की मेजबानी करना चाहती है । पिछले साल ४.५ लाख पर्यटक नेपाल पधारे थे । इसमें एक लाख भारतीय थे । पर चीन से खूब पर्यटक अब नेपाल पहुँच रहे हैं । चीन ने एशिया के किसी देश को अपने असर से अछूता नहीं छोडÞा है । चाईनीज रेस्तरां और सामान बाजार में खूब दिखाई देते हैं । शायद बढÞते व्यापार का ही असर है कि चीनी पर्यटकों की संख्या भी नेपाल में सबसे ज्यादा बढÞ रही है । पिछले साल इनकी संख्या ३७ फीसदी बढÞ कर २५००० पार कर गई । लेकिन अभी सरकार को बुनियादी सुविधाएँ बढÞाने के लिए काफी कुछ करने की जरुरत है । शायद अगली नेपाल यात्रा तक यह कमी दूर हो चुकी होगी ।

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