धर्म क्या है –
योगेन्द्रप्रसाद साह:धर्म क्या है – धार्मिक लोग कौन हैं, कौन नहीं हैं – धर्म मानना जरूरी है, जरूरी नहीं है – स्वविवेक से लोग धर्म मानते है या मृत्यु से भयभीत होकर यार् इश्वर से सजा पाने के डर से या सत्ता का तलवार धर्म मानने वाला है- र्स्वर्ग कहाँ है – कैसा है र्स्वर्ग – किसने र्स्वर्ग देखा हैर्,र् इश्वर का दर्शन किसने किया है, क्यार् इश्वर को देखने का प्रमाण किसी के पास था- या है- इन विषयांे पर विद्वानों के बीच गम्भीर वादविवाद होता आया है। किन्तु इन प्रश्नों के उत्तर हमेशा विवादित रहते आए हैं। धार्मिक लोग धर्म को र्स्वर्ग में पहुँचाने वाला, कष्टहरण करने वाला और सुखी जीवन देनेवाला, जीवन-दायिनी शक्ति सम्पन्न मानते हैं। किन्तु कुछ विद्वान धर्म को मानसिक रूप से लोगों को कमजोर बना कर उनके शोषण करने का हथियार मानते हैं। कार्लमार्क्स ने धर्म को अफीम जैसा हानिकारक नशा माना था। संत कवीर ने सभी धर्मो के पांखड को अस्वीकार करने की मुहिम चलाई थी।
यह भी सत्य है कि धर्म विवादित विषय है। अगर धर्म मनुष्य के लिए अमृत होता, तब धर्म तलवार के साये में नहीं पलता। अनेक धर्म नहीं होते। अगर शुद्ध रूप में वैज्ञानिक परम्पराओं के रूप में धर्म स्वरूप रह जाता तो आदिकाल से शुरु होकर आधुनिक काल तक परिमार्जित होकर दुनियाँ को नरक लोक से र्स्वर्ग लोक में परिवर्तित कर चुका होता। शाश्वत धर्म परम्पराओं की चासनी में फरेब और पाखण्ड नहीं मिलाया गया होता तो धर्मो के बीच जंग नहीं होती। धार्मिक गुरु नरसंहार नहीं करते, बच्चियों के साथ कर्ुकर्म करने की चर्चाएं बाहर नहीं आतीं और अपने कुकृत्य और पापों को छिपाने के लिए धर्म को निर्विकल्प नहीं बताया जाता।
कतार के दोहा से अल जजीरा टेलिभिजन पर २० जुलाई २०१र्३र् इ. को एक कार्यक्रम प्रसारित किया गया था, जिसका शर्ीष्ाक था- ‘दी रिलिजन एण्ड इम्पैक्ट आँन वर्ल्ड’। प्रोफेसर रिचार्ड डाउभिन्स नामक नास्तिक वैज्ञानिक मुख्य अतिथि बन कर स्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर भी दे रहे थे और धर्म के भ्रमपर्ूण्ा और विरोधाभाष से भरे धर्मसूत्रों के अवैज्ञानिक पक्षों पर अपनी असहमति भी बता रहे थे। उनका कहना था कि विज्ञान के पास प्रमाण -एभीडेन्सी) होता है, धर्मवाले भी प्रमाण देकर र्स्वर्ग और भगवान के होने की पुष्टि करें ! अगर प्रमाण नहीं है, तब भगवान काल्पिनिक है। र्स्वर्ग जब किसी ने देखा नहीं तो झूठी बातों पर कम से कम २१वी शदी में हम विश्वास नहीं कर सकते हैं।
सभी जीवों में र्सर्ीपm मनुष्यों में असीमित सोच प्रणाली वैज्ञानिक सत्य है। सोच प्रणाली सही दिशा में जा सकती है तो भटक भी सकती है। इस पर आत्म नियन्त्रण की जरूरत होती है। आत्मा इनर्जी है। शरीर मरता है, इनर्जी का नाश नहीं होता है। हम लोग अपनी गलतियों से दुःख भोगते हैं। प्राकृतिक आपदायें भी आती रहती हंै। इन दुःखों से लडÞने के लिए आत्मबल की जरूरत होती है। आत्मबल को बनाए रखने के लिए और बुद्धिमतापर्ूण्ा साहस वृद्धि के लिए आशाकेन्द्र के रूप में, मनुष्य ने भगवान की कल्पना की है। युनिभर्स बनाने वाले की वैज्ञानिक खोज भी जारी है। उत्तर नहीं मिलने तक काल्पनिक भगवान मान कर जीवन में भटकाव रोकने के लिए प्रयत्न करना वैज्ञानिक पहल ही मानना बुद्धिमानी होगी। आदिम धर्म के विकास क्रम में वैज्ञानिक एभीडेन्स के आधार पर ही उपयोगी क्या है – अनुपयोगी क्या है- इस को प्रमाणित करके, परम्परा के रूप में चिन्तक लोग प्रचलन में लाते थे। इसे जनवादी धर्म कह सकते हैं। इस धर्म में आडम्बर नहीं था, फरेब नहीं था, कर्मकाण्डों में तलवार और सम्पत्ति का खेल नहीं था। किन्तु जब सत्ता के अहंकार में जनता का आर्थिक शोषण को वैध ठहराने की जरूरत पडÞी, तब धार्मिक व्यवहार को अवैज्ञानिक बनाने की प्रक्रिया भी शुरु हो गई। कुछ धर्ूत, कपटी, चालबाज लोगों ने राजावादी -समन्ती) धर्म का आविष्कार कर शाश्वत धर्म की चासनी में विषय घोल दिया- इन धमोर्ं का स्वेच्छा से नहीं तलवार से संरक्षण होने लगा, जो २१वी सदी तक जारी है। स्पिरिचुयल भैल्यू और मोरल भैल्यू त्याज्य और ग्राहृय व्यवहार से सम्बन्धित प्रश्न है। किसी व्यक्ति में आध्यात्मिक गुणों का विकास का मतलव उस व्यक्ति में र्सार्थक सोच की क्षमता वृद्धि में दक्षता हासिल होना है। यह सोच-प्रवृत्ति का वैज्ञानिक पक्ष है। अगर कोई व्यक्ति स्पिरिचुएलिटी में दक्ष है तो वह वैज्ञानिक अनुसन्धान करके व्यवहार करेगा, किन्तु देखा यह गया है कि तेज बुद्धि का प्रयोग अगर लोगों को ठगने के लिए हो रहा है, तब यह धर्म की दुहाई देने पर भी स्वीकार्य नहीं किया जाना चाहिए। मोरलभैल्यू का प्रयोग भी वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर खरा उतरता हो, तब वह समाज के हित में होगा। किन्तु दुनिया भर के सभी धर्मो में काल्पनिक रूप में र्स्वर्गका लालच परोस कर स्पिरिचयल भैल्यु और मोरलभैल्यू दोनों का धर्म द्वारा दुरूपयोग किया गया है। प्रजातन्त्र को धर्म विरोधी शासन पद्धति कह कर बबाल मचाना यही साबित करता है कि धर्म जनहित में न होकर खास व्यक्ति और व्यक्ति के पक्ष में हैं। समरथ को नहीं दोष गुर्साईं -अब विश्व को यह स्वीकार्य नहीं है। िि
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