नारी हूँ मैं (कविता) : राधा यादव
निराशा के तिमिर घटा में
आशा के फल चखती हूँ ।
अश्कों से भीगे आँचल पर
मन का सब कुछ रखती हूँ ।
मैं सृष्टि की रति चेतनता
सौदर्य जिसे लोग कहते हैं ।
अन्तर्मन में अतुल वैभव–सी
प्रेम छलकते रहते हैं ।।
चमकती हूँ धूल कण में भी
ऐसी है मेरी क्षमता ।
दुःख–सुख में गिर्ती उठ्ती
सब पर लुटाती हूँ ममता ।।
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