Thu. Mar 28th, 2024
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अजब देश की गजब कहानी !

अजब देश की गजब कहानी !



मीना कर्ण्र्

अजब देश की गजब कहानी !
सुनो भाइयों ! मेरी जुवानी
न बिजली है यहा, न तो है पानी
अजब देश की गजब कहानी !

‘जलस्रोत’ से धनी देश हमारा
न तो बिजली के लिए ‘जल है
न तो पानी के लिए है कोई स्रोत
हाय रे ये कैसी जिन्दगानी !
अजब देश की गजब कहानी !
पेट्रोल का हाहाकार मचा है
डिजल के लिए जहाँ लाइन लगी है
मट्टीतेल और ग्याँस की कील्लत,
स्वतन्त्र देश की है यह निशानी
अजब देश की गजब कहानी !

गरीब जनता टैक्स भरते
नेता लोग ऐश करते
जहाँ की जनता पैदल चलती
नेता वहाँ के पजेरो चढÞते
कैसी है यह घोर बेइमानी !
अजब देश की गजब कहानी !

महंगाई यहाँ आकाश छू रही
निरीह जनता भूख से मर रही
ठंड से निठुरती जनता
ना जाने मिली ये कैसी स्वातन्त्रता
आँखों में नमी होठो पे हँसी
हम हैं नेपाली स्वाभिमानी
अजब देश की गजब कहानी !
सुनो भाइयों ! मेरी जुवानी

-लेखिका नेपाल बैंक लि. न्यूरोड में प्रबन्धक है)

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स्वणिर्म प्रभात
बुन्नीलाल सिंह
सम्प्रति के स्वणिर्म प्रभात में
व्योंम बिहारी गाते हैं ।
स्वर लहरी से कर्ण्र्ाांध्र में
रस की धार बहाते हैं ।
दूर प्राची के प्रांतवृत्ति से
अरुण रश्मियाँ आती हैं ।
प्रेम कहानी कहती जग से
सुषमा की धार बहाती हैं ।
हस्रितधान की हरियाली में
मकडÞा का मनोरम जाल
चमका रही शबनम की बूँदे
आज मही का अनुपम माल ।
आम्र कानन की पद्म पंक्ति
मुखरित हो उठी साकार ।
नाच उठा मन मेरा सुन,
पागल पिक की पुकार ।
हिम पवन खेलता तृणों से
ले कुसुम रेणु का भार ।
बन रही यहाँ छवि की रेखा
शस्यों में मची हाहाकार
गृहलक्ष्मी का बास यहाँ
आज घर है शून्य पडÞा ।
कल, कल ध्वनि है मुखरित सरिता
है सुषमा का भंडार धरा ।
लक्ष्मीपुर, सिरहा

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लूट

लूट-लूट कर जेब भरो
बस यही समय है भाई रे
जनता रोय या चिल्लाये
लेते रहो जम्हाई रे
चन्दन बेचो, बिजली बेचो
बेचो सगर खुदाई रे
समय पडÞेतो खुद को बेचों
बेचों लोग-लुगाई रे
बडÞे चलेथे देश बनाने
सिंगापुर-भीलाई रे
जम्बो जेट बनाइ मंत्रीगण
किस को करे भलाई रे
जनता त्रस्त, बढÞी मँहगाई
करते रहो कमाइ रे
लूटेरों का देश बन गया
सब कुछ लगे परायी रे
‘बरुण’ देख कर चौंक गया
जब न्याय बना दुःखदायी रे
पशुपति नाथ बस तेरा सहारा
करदों कोई उपाई रे ।



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