अजब सद्भावना की गजब कहानी
हिमालिनी डेस्क
मधेश का मुद्दा उठाने वाले सबसे पुराने राजनीतिक दल सद्भावना पार्टर्ीीदि कभी भी राष्ट्रीय संचार माध्यमों में सर्र्खियों में छायी है तो अपने विभाजन को लेकर । इस पार्टर् इतने विभाजन हो चुके हैं कि सद्भावना पार्टर्ीीे प्रति सद्भावना रखने वाले लोगों को भी याद नहीं है कि वो किस सद्भावना के सदस्य हैं और कौन उनके नेता । इन सब विपरीत परिस्थितियों में भी राजेन्द्र महतो अपने दम पर सद्भावना पार्टर्ीीा गठन कर संविधान सभा में ९ सीट हासिल करने में सफल रहे । उधर दूसरी सद्भावना पार्टियों को प्रत्यक्ष में तो एक भी सीट नहीं मिल पाया लेकिन समानुपातिक में मिले चन्द सीटों के लिए कानूनी लडर्ई लड
गई । तत्कालीन गिरिजा सरकार में मंत्री रहे श्याम सुंदर गुप्ता की संविधान सभा सदस्यता हाल ही में सर्वोच्च अदालत ने खारिज कर दी । नेपाल सद्भावना पार्टर्ीीो मिले समानुपातिक में दो सीटों के लिए भी वर्चस्व की लडर्Þाई कई दिनों तक जारी रहा । खुशीलाल मंडल, सरिता गिरी, आनन्देवी व विकास तिवारी के बीच पार्टर्ीीें अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए कानूनी लडर्Þाई लडÞी गई । अन्ततः जीत सरिता गिरी की ही हर्ुइ ।
उधर राजेन्द्र महतो के नेतृत्व में रही सद्भावना पार्टर्ीीारा निकाली गई मधेश स्वभिमान यात्रा ने खुब सर्ूर्खियाँ बटोरी और मधेशी जनता में एक नई आशा भी जगी । लेकिन इसके कुछ महिनों बाद ही सद्भावना पार्टर्ीीी विभाजन के कगार तक पहुँची । लेकिन आधी रात को पार्टर्ीीध्यक्ष द्वारा उठाए गए एक कडÞे कदम ने पार्टर्ीीो विभाजन के शिकार से बचा लिया । यूँ तो मधेशी दल में विभाजन का खतरा प्रधानमंत्री निर्वाचन के समय से ही मँडरा रहा था । माओवादी सहित अन्य बडेÞ दल मधेशी सभासदों की खरीद बिक्री में जुटे थे । लेकिन वो सफल नहीं हो पाए । झलनाथ खनाल के प्रधानमंत्री बनने के बाद जब मधेशी मोर्चा से आबद्ध फोरम लोकतांत्रिक, तमलोपा व सद्भावना ने सरकार में शामिल ना होकर विपक्ष में बैठने का फैसला किया । तो माओवादी-एमाले गठबन्धन ने विपक्ष में बैठे मधेशी पार्टियों को भी सरकार में सहभागिता के लिए नैतिक दबाव बनाया ।
इसी बीच राजेन्द्र महतो को कुछ सभासदों ने जानकारी दी कि पार्टर्ीीे महासचिव रहे अनिल कुमार झा चार सभासदों को लेकर पार्टर्ीीे अलग होकर खनाल के नेतृत्व में बनी सरकार में शामिल होने की तैयारी में है । बालुवाटार सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री खनाल ने झा को फोन कर अपने शपथ ग्रहण के दिन तक नई पार्टर्ीीी औपचारिकता पूरी कर लेने कर्ीर् शत पर कैबिनेट में जगह देने का आश्वासन भी दिया । सद्भावना पार्टर्ीीे ही एक सभासद ने बताया कि सभासद खोभारी राय यादव, गोरी महतो के साथ मिलकर अनिल झा ने सभामुख के दफ्तर में नई पार्टर्ीीर्ता के लिए अर्जी भी दे दी थी । समाजवादी सद्भावना पार्टर्ीीे नाम से दी गई अर्जी के बारे में भी पार्टर्ीीध्यक्ष महतो को भनक लग गई । उधर झलनाथ खनाल के प्रधानमंत्री के पद पर शपथ ग्रहण के दिन ही माओवादी सहित कुछ अन्य दल के प्रतिनिधियों को भी मंत्री के रूप में शपथ दिलाने की तैयारी हो चुकी थी । शपथ ग्रहण के लिए अनिल झा भी राष्ट्रपति भवन पहुँचने की तैयारी में थे । लेकिन सद्भावना पार्टर्ीीा यह सौभाग्य था कि गृहमंत्रालय पर विवाद होने के बाद माओवादी ने अपनी पार्टियों के तरफ से मंत्री बनने वाले नेताओं को शपथ ना दिलाने का फैसला किया । इसी कारण उस दिन प्रधानमंत्री के अलावा किसी दूसरे दल के किसी भी पद के लिए शपथ नहीं हो पाया ।
दूसरी ओर सद्भावना पार्टर्ीीे अध्यक्ष को शाम को इस पूरी घटनाक्रम के बारे में मालूम चला । अपने ही महासचिव द्वारा पार्टर्ीीवभाजन की खबर सुनकर उन्हें गहरा आघात पहुँचा । आनन-फानन में महतो ने पार्टर्ीींसदीय दल, कार्य संपादन समिति और केन्द्रिय कमिटी की संयुक्त बैठक बुलवाई । मध्यरात १२ बजे से शुरु हर्ुइ बैठक दो बजे रात तक चली । आखिरकार भारी मन से पार्टर्ीीे अपने महासचिव अनिल झा को पार्टर्ीीी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त करते हुए पार्टर्ीीी प्राथमिक सदस्यता तक से निलम्बित कर दिया । झा पार्टर्ीीे महासचिव के अलावा संसदीय दल के मुख्य सचेतक भी थे । अगले दिन पार्टर्ीीध्यक्ष द्वारा जारी विज्ञप्ति में अनिल झा पर पार्टर्ीीनुशासन व विधान के विपरीत कार्य करने, पार्टर्ीीवभाजन में सक्रिय भूमिका निभाने, गत दो वर्षो से पार्टर्ीीी किसी भी क्रियाकलाप में हिस्सा न लेने व पार्टर्ीीनर्ण्र्ााके विपरीत वर्तमान सरकार में सहभागिता के लिए लाँबिंग करने का आरोप लगाते हुए पार्टर्ीीे निकाले जाने की औपचारिक जानकारी दी ।
इस संबंध में मीडिया द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में महतो ने कहा कि पार्टर्ीीहत विपरीत कार्य करने वाले किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा । चाहे वो किसी भी पद पर काबिज क्यों ना हो । झा के निष्काशन के साथ ही महतो ने सिर्फउनको साथ देने वाले नेताओं को ही नहीं बल्कि गुटबन्दी और पार्टर्ीीहत विपरीत कार्य करने और पद लेकर भी पार्टर्ीीे काम में सक्रिय नहीं रहने वाले नेताओं को सावधान हो जाने का संकेत दिया । झा के निष्काशन के साथ ही महतो ने उनका साथ दे रहे खोभारी राय यादव, गौरी महतो, महेश यादव सहित अन्य नेताओं को चेतावनी देते हुए कार्यवाही से अलग रखा ।
अनिल झा पर अनुशानात्मक कार्यवाही कर उन्हें बाहर का रास्ता तो दिखा दिया लेकिन पार्टर्ीीे भीतर चल रहे असंतोष को रोकना महतो लिए बडÞी चुनौती है । पार्टर्ीीे भीतरी सूत्रों की माने तो महतो व झा के बीच पिछले दो वर्षों से मनमुटाव चल रहा था । यह मनमुटाव उस समय और अधिक बढÞ गया, जब पार्टर्ीीो मिले दो कैबिनेट मंत्रियों में से झा के बदले सह-अध्यक्ष लक्ष्मणलाल कर्ण्र्ााो मंत्री बना दिया गया ।
इसी के बाद झा पार्टर्ीीे गतिविधियों से खुद को अलग रखने लगे । महतो के साथ उनके संबंधों में इस कदर ठण्डापन आ गया कि पार्टर्ीीारा आयोजित मधेश स्वभिमान यात्रा में उन्होंने खुद तो हिस्सा नहीं लिया अपने सर्ंपर्क में रहे अन्य नेताओं को भी इस यात्रा से अलग रहने के लिए दबाब डाला । इतना होने के बावजूद महतो ने मीडिया में उछाले गए इस मुद्दे को यह कहकर किनारा लगाने की कोशिश की कि अनिल झा को संविधान निर्माण का दायित्व दिया गया है इसलिए वो यात्रा में शामिल ना होकर काठमांडू में हैं ।
सद्भावना पार्टर्ीीे विश्वस्त सूत्र तो यह भी कहते हैं कि बाद के दिनों आकर महतो व अनिल झा में बातचीत तक बन्द हो गई थी । माधव नेपाल सरकार के इस्तीफा देने बाद जब नई सरकार गठन के लिए प्रयास किया जा रहा था तभी से ही मंत्री बनने के लिए और सरकार में शामिल होने के लिए नेताओं में प्रतिस्पर्द्धर्ााुरु हो गया और सद्भावना पार्टर्ीीी इससे अछुता नहीं रहा । लेकिन बदली राजनीतिक परिस्थिति के बाद जो कुछ आरोप झा पर लगा वह पार्टर्ीीेतृत्व के लिए असहय था । महतो कहते हैं ‘पार्टर्ीीवभाजन से बचाने के लिए व मधेशी पार्टियों पर हमेशा से लगते आ रहे कलंक को नहीं लगने देने के लिए यह कठोर कदम उठाना जरुरी था ।
अनिल झा के निष्कासन के साथ ही पार्टर्ीीें महासचिव व संसदीय दल के प्रमुख सचेतक के पद पर अपना-अपना दावा को लेकर लाँविंग शुरु हो गई हैं । इस समय पार्टर्ीीह महासचिव रहे मनीष सुमन ही महासचिव पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे है । इसके अलावा सचेतक के पद पर रामनरेश यादव अपनी गोटी फिट कर रहे हैं । सचेतक को राज्यमंत्री के स्तर की सुविधाएँ मिलती है । झा के निष्काशन से पार्टर्ीीा एक समूह नेतृत्व पर हावी होने की कोशिश में लग गया है । इसमें सभासद रामनरेश यादव, खोभारी राय यादव, महेश यादव और सरोज यादव प्रमुख है । इस समय महतो के लिए पार्टर्ीीें एकता बनाए रखने की चुनौती होने के साथ-साथ एक विशेष जाति समूह को खुश रखने की पूरी कोशिश तो करनी ही होगी । साथ में ये समूह पार्टर्ीीें अपना दबदबा ना बना ले इसके प्रति सचेत भी रहना होगा ।