जनता बनाम भेड़
व्यँग्य ( बिम्मी शर्मा
भेड़ नाम के जानवर को तो सभी जानते ही है । एक भेड़ अगर गढ्ढे में गलती से गिर गया तो बांकी भेड़ भी उसी की रौ में बह जाते है या गढ्ढे में गिर जाते हैं । नेपाल की जनता भी भेंड़ जैसी ही है जो आगा, पीछा नहीं देखती या सोचती है बस कूद जाती है किसी और के बहकावे में । इस बात का जीता, जागता प्रमाण है हाल ही में निर्वाचन और उसके परिणाम । जिस तरह और जैसे उम्मीदवार को मत दान कर के यहां की जनता ने जिताया है उस से साफ पता चलता है कि इन के पास अक्ल नाम की कोई भी चीज है ही नहीं । बस यहां की जनता अपने स्वार्थ के लिए बिकने और जैसे भी हो पद में टिके रहने के लिए हरदम तैयार है । चाहे जो हो जाए ।
नेपाल के लौह पुरुष यानी कि नेपाली काग्रेंस के वरिष्ठ नेता स्व. गणेश मान सिहं ने कभी कहा था कि नेपाल की जनता भेंड़ जैसी है । उनकी यह बात सोलह आने सच निकली जब इस बार के संसद के निर्वाचन में इसी भेड़ जनता ने उन्ही गणेश मान के बेटे प्रकाश मान को जितवाया । अपने पिता गणेश मान के अच्छे कर्मो और देश भक्ति का ब्याज खा कर और उसी को भजा कर प्रकाश मान जीत गए । अब देखना यह है कि वह संसद को अपने ‘प्रकाश’ से कितना प्रकाशित करेगें । क्योंकि उनके पास अपनी खुद की रोशनी तो है नहीं । पिता के जलाए निष्ठा के दीए में ईमानदारी का तेल डालना तो वह भूल ही गए है बस उसे हवा के थपेड़ो से बचाने का हर सभंव प्रयास कर रहे हैं । पर दीया है कि राष्ट्रवाद की वामपंथी आंधी मे बुझती ही जा रही है ।
जनता परिवर्तन की बड़ी, बड़ी बात तो करती है पर जब सिर्फ बातों में सिमटे परिवर्तन को अमली जामा पहनाने का समय आता है तब लकीर की फकीर हो कर वोट परपंरागत दल और उसी के नुमाईंदे को ही देती है । देश में तंत्र तो बदलता रहा है पर काम करने वाला यंत्र (जनता) और संयत्र (सिस्टम) वहीं रहता है । इसी लिए परिवर्तन तो होता है पर बस नेताओं के महल, बैंक बैलेंस और उनके बढ़ते आकार के पेट का । यदि जनता सच में देश में परिवर्तन चाहती और विकास की आकांक्षी होती तो नए राजनीतिक दल और उस के संभावना से भरपूर उदीयमान उम्मीदवारों को वोट देती और जिताती । पर नहीं यहां की जनता कहती कुछ और है और करती कुछ और है । इस देश के नागरिकों का भी हाथी के जैसे ही खाने के और दिखाने के दांत अलग, अलग हैं । इसी लिए सिर्फ दल के नेता और उम्मीदवारों को ही नहीं जनता को भी मतदान के योग्य होना चाहिए । ताकि कंही घिसेपिटे और भ्रष्ट नेता निर्वाचित हो कर संसद में न चले जाएं ।
इस देश को बिगाड़ने और विनाश के कगार पर ले जाने के लिए जितना विभिन्न राजनीतिक दल और उसके नेता उम्मीदवार दोषी नहीं है उस से कहीं ज्यादा दोषी इस देश की भेंड़ जनता है । देश के सभी वाम पार्टी दाम बटोरने के लिए जो एकता या गठ (ठग) बंधन के इस निर्वाचन में जीत हासिल कर रही है और इस के देश के अवाम को बलि का बकरा बनाया जा रहा है । देश प्रेम के नाम पर राष्ट्रवाद का तथाकथित ‘बाम’ जनता के माथे पर दो साल पहले हुए मधेश आंदोलन के जिस तरह जबरदस्ती रगड़ा गया था उसी का नतीजा है आज का निर्वाचन परिणाम । अपने ही देश की मधेशी जनता को पेड़ से गिरे आम से तुलना करने वाले को ही जिताया ।
कौवा कान ले गया कह कर कोई कह दे तो यहां की भेंड़ जनता पहले अपना कान है कि नहीं देखे बिना ही कौए के पीछे दौड़ने लगती है । राष्ट्रवाद के उथले नारे में जनता के विवेक को ही धुधंला कर दिया हैं । इसी लिए यहां की जनता भेंड़ थी, भेंड़ है और हमेशा भेंड़ ही रहेगी । भेंड़गिरी से उपर उठ कर अपने ल्याकत से योग्य मतदाता बनने की कूवत न इन में है और न यह कूवत यहां की जनता हासिल करना ही चाहती है । बस भेंड़ की तरह हरे, भरे मैदान में घांस चरना ही जानती है यहां की कथित महान और भेंड़ नेपाली जनता । इन भेंड़ों को जिस दिन अक्ल आएगी उसी दिन से इस देश का कायापलट हो जाएगा । पर इन भेंडो को अक्ल आएगी कब ? शायद कभी नहीं ।