मेरे प्यारे राम ! हर वनवास को काट राम निज घर आए है : प्रियंका पेड़ीवाल अग्रवाल
सत्तर वर्ष अंतराल पश्चात, आज तुझे तेरा आवास मिला।
मन करता यूं निज पग घूंघरु,बांध नाच उठूं मै राम लला।
मेरे प्यारे राम
वर्षों से अखियाँ है प्यासी
तेरे धाम के दर्शन को
दिल में हर्षोल्लास भरा
जब आया शुभमुहुर्त वो।
मेरे प्यारे राम!
प्यासे नैन मन में सन्नाटा लिये
कब से घूम रहा मन इधर उधर
अब जाकर मन खिल उठा
जब आए राम लला मन के भीतर।
मेरे प्यारे राम!
वर्षों से इंतजार रहा अब आन्नद की बेला है,
छपरे को छोड़ महल आज ये खोला है।
मेरे प्यारे राम!
मर्यादा पूरुषोत्तम का मतलब तेरे नाम से मैनें जाना हैं।
मेरे मन मंदिर के दीप जले , जब देखूं तेरी मोहक छवि
कांधे धनुष,बाण मुख में मंद
मुस्कान है।
सम्पूर्णता का बोध कराते,
त्याग की परिभाषा सिखलाते
मेरे प्यारे राम!
वैसे तो कण-कण में बसे
सब तेरा ही नाथ हैं,
पर आज तुझे तेरी जन्म-भूमि
में देख नयनों में हर्षोल्लास है।
मेरे प्यारे राम!
सत्तर वर्ष अंतराल पश्चात
आज तुझे तेरा आवास मिला।
मन करता यूं निज पग घूंघरु
बांध नाच उठूं मै राम लला।
मेरे प्यारे राम!
तुम भगवान हो, तीन लोक के मालिक
तुम त्यागी हो, धनुष बाण में माहिर।
तुम निस्वार्थता की मूरत
समानता तुमनें सिखलाया,
छूत, कपि, दानव
सबको अपने गले लगाया।
मेरे प्यारे राम !
हर वनवास को काट राम निज घर आए है,
ये लीला इनकी रचाई हम तुच्छ समझ ना पाए है।
मेरे प्यारे राम