अखण्ड नेपाल की एक शर्त
डी.जे. मैथिल:अपने ही घर के अन्दर अढर्ाई सौ वर्षो से मधेश में रहने वाले नेपाली नागरिकों का दम घुट रहा था । यह बात हम सभी जानते हैं । नेपाल की कुल जनसंख्या की आधी आबादी मधेशी है । आर्थिक सम्पदा से पर्ूण्ा मधेश अपने अधिकार के लिए आज भी लडÞ रहा है । नेपाल की रीढÞ मानी जाती है मधेश अर्थात् अगर रीढÞ न हो तो किसी की भी स्थिति अपाहिज हो जाती है । तार्त्पर्य यह कि अगर मधेश की उर्वर धरती नेपाल में नहीं होती तो इस देश की स्थिति भी अपाहिज सदृश होती । इन सब के बावजूद मधेश उपेक्षित है आखिर क्यों – हमें अपने ही देश में अपनी पहचान के लिए संर्घष्ारत क्यों होना पडÞ रहा है –
याद करें वह दिन जब अपने ही देश की राजधानी में मधेशी अपने पहनावे और बोली से अपमानित हुआ करते थे । इस बात को लेकर जब मधेश के राजनेता गजेन्द्र नारायण सिंह ने प्रतिवाद करना शुरु किया तो उनकीे भी दर्ुदशा की गई । रघुनाथ ठाकुर -प्रथम शहीद) ने अपने अधिकार के लिए आवाज उठानी चाही तो उन्हें भी बेदर्दी से मार दिया गया । इस तरह की अनेक घटनाएँ मधेशियों के साथ घटी हंै, जो दुहराने पर भी पंक्तिकार को शर्म महसूस हो रहा है ।
मधेशभूमि का ही इस्तेमाल कर आज के जितने नेतागण हैं, राजतन्त्र के साथ लडÞते रहे । जनकपुर में जब राजा महेन्द्र पर बम प्रहार किया गया, फेंकने वाले वीर पुरुष शहीद दर्ुगानन्द झा ही थे । जिन्दा शहीद कहे जाने वाले अरविन्द्र ठाकुर थे । मधेशियों के अधिकार ही नहीं राजतन्त्र के खिलाफ बातंे करने वालेे, जनकपुर के ही डा. लक्ष्मी नारायण झा, को सरकार ने लापता करवा दिया । आज तक डा. झा कहाँ है, मर गए, मार दिया – कुछ पता नहीं । जिसके लिए उन्होंने आवाज उर्ठाई, वो सब आजतक चुप हंै ।
राजतन्त्र का अन्त करने में, गणतन्त्र लाने में, परिवर्तन लाने में मधेशियों और मधेशमुक्ति का मुख्य योगदान रहा है । पर मधेश ने क्या पाया – सडÞक नहीं बन पा रही है, कृषियोग्य जमीन मरुभूमि में बदल रही है, जंगल की अवैध कर्टाई कर विनाश किया जा रहा है । विकास के सभी रास्ते बन्द हो गए हंै मधेश में । मधेश से ही उठाए गए राजस्व से सरकार चलती है, काठमाण्डू का निर्माण होता है, पर मधेश ज्यांे का त्यों । इसका जवाब कौन देगा –
एक चर्चित लेखक खगेन्द्र संग्रौला ने राष्ट्रीय स्तर के एक पत्रिका में लिखा था, ‘मधेश पर जुल्म मत करो, जब वो जग जाएँगे तो सम्भालना मुश्किल होगा ।’ उनकी बात सच निकली । मधेश आन्दोलन हुआ तो, अपनी ताकत दिखा दी मधेशियों ने । इसलिए देश में किसी खास जाति, धर्म वा समाज पर अत्याचार नहीं होना चाहिए । सभी देशवासियों के लिए राज्य पक्ष से समान व्यवहार होना चाहिए । दास प्रथा अब सम्भव नहीं है ।
माओवादी से देश का हर नागरिक त्रसित था । सरकार परेशान थी । राजतन्त्र थक गया था । वैसे माओवादियों को मधेशियों ने उसकी औकात दिखला दी । मधेशी में वह ताकत व्याप्त है । जर्ुम सहने की भी हद होती है । मधेशियों ने अपने धर्ैय का परिचय दे दिया है किन्तु कबत क –
आज मधेशवादी दल खण्डित हो गए । मधेशियों में एकता नहीं है । मधेशवादी के ही मत से गैरमधेशवादी दल कांग्रेस, एमाले ओर एमाओवादी जीत हासिल करते हैं । कहीं न कहीं हमारे प्रतिनिधि ही आज हमारी दर्ुदशा के जिम्मेदार हैं, अगर वो सही होते तो हमारी स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती । मधेश या मधेशी उनके लिए सर्वोपरि नहीं हैं बल्कि स्वार्थलिप्ता की ही अधिकता उनमें देखने को मिलती है ।
संसार में जब कभी किसी जगह आन्दोलन हुआ है, वह अत्याचार के विरुद्ध हुआ है । अधिकार के लिए हुआ है । एक ही देश या समाज या परिवार में दो तरह की व्यवस्था होती है तो ‘विरोध’ उत्पन्न होता है । अगर र्सार्वजनिक सडÞक पर सभी मिल कर चलें है तो कोई विवाद नहीं होगा किन्तु अगर किसी एक समूह को रोक दिया जाता है तो विरोध को जन्म होता है । उसी तरह नेपाल माँ की दो सन्तान है- एक को पहाडÞ मिला है, दूसरे को समतल भूमि मधेश । नेपाल माँ के पास जो साधन स्रोत है, उस में असमानता नहीं होनी चाहिए । पुलिस, सैनिक, अन्य प्रशासन में समान अवसर मिलना चाहिए । अगर ऐसा नहीं होता है तो विवाद का उत्पन्न होना तय है ।
मधेशी और पहाडÞी दोनों नेपाल के सन्तान हैं । इस देश में प्रधानमन्त्री, सर्वोच्च न्यायाधीश, सैनिक प्रमुख, पुलिस प्रमुख पदों पर मधेशियों की संख्या नग्णय क्यों है – जनकपुर का हाल आज तक ऐसा क्यों है – विश्वप्रसिद्ध जानकी मन्दिर विश्वसम्पदा सूची में सुचिकृत नहीं होने का कारण क्या है –
मधेशी नागरिक मान लो बेवकूफ है, बुद्धि नहीं है, परिवर्तन करना नहीं जानता है, युनिटी नहीं है, राजनीति नहीं जानती है, तो इस का मतलब यह नहीं की मधेश का विकास ही बन्द कर दें, इसका मतलब यह नहीं की जनकपुर, जलेश्वर, वीरगंज, विराटनगर, मलंगवा, भैरहवा, राजविराज, काँकडभिट्टा, धनगढÞी का कोई विकास ही न हो । इस जगह का विकास होना, क्या नेपाल का विकास नहीं है –
शेष ३७ पेज में
देवो में देव महादेव अर्थात् पशुपति नाथ और जगतजननी माता जानकी -मैथिली) की कृपा हर्ुइ तो नेपाल के सभी नागरिकों में सद्बुद्धि बनेगी । देश में सभी जगह समान व्यवहार हांेगे । मधेशी-पहाडÞी सभी एक होंगे । सभी एक दूसरे को सम्म्ाान करेंगे । पहाडÞ-मधेश में समान रुप से विकास होंगे । सरकार -मन्त्रिमंडल), न्यायालय, प्रशासन, सुरक्षा सभी निकाय में दोनों को सम्मान होगा, काठमान्डू में मधेशी मूल के नागरिकों के साथ कोई दर्ुर्व्यहार नहीं होगा । गरीब मधेशी को कोई गाली नहीं देगा । हर जगह सभी नेपाली नागरिक सम्मानित होते हुए दिखाई दंेगे, तभी देश में विखण्डन की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी । जय नेपाल की जय-जय कार होगी । सभी जाति, भाषाभाषी, धर्म के लोग सम्मानित जीवन व्यतीत करंेगे ।
स्थिति बदली अवश्य है, पर उतनी नहीं जिसकी अपेक्षा हम करते हैं । अढर्Þाई सौ वर्षसे गैर नेपाली की तरह जीवन व्यतीत करने वालों मधेशियों मंे परिवर्तन नहीं आ पाया । समान अधिकार नहीं मिला । समान रुप से विकास नहीं किया गया । पुलिस-सेना में मधेशी को नहीं रखा गया । उच्च पदस्थ में मधेशी को नहीं रखा गया । भेदभाव यथावत है । यह स्थिति ही न चाहते हुए भी कई मस्तिष्क में अलग अर्थात् स्वतन्त्र मधेश राष्ट्र जैसी बातों को पैदा कर सकती हैं । जैसा की कुछ भूमिगत सशस्त्र समूह मांग करता आ रहा है । मैं स्वयं इस बात से सहमत नहीं हँू । देश विखण्डन की बातें अनुचित हैं । पर एक कहावत भी है- मरता तो क्या नहीं करता । यही अवस्था है मधेश के साथ । भगवान करे ऐसा न हो, पर आप में समझदारी नहीं बनेगी, परिवर्तन नहीं होगा, सभी के साथ समान व्यवहार, सम्मान नहीं होगा, तो अन्ततः लेखक संग्रौला की बातें फिर से उभर सकती है । कहीं ना कहीं हम कमजोर अवश्य रहे हैं, जिसका फायदा आजतक कुछ वर्ग उठाते रहे हैं, किन्तु अब हमें कमजोर आँकना गलत होगा । क्योंकि हम भी जग चुके हैं ।
अन्त में फिर से यह बात दोहराना चाहता हँू, नेपाल में दर्ीघ शान्ति की स्थापना, अखण्ड नेपाल यथावत तभी होगा जब सभी नेपाली समान हांेगे और मधेशियों को सम्पर्ूण्ाता के साथ नेपाली समझा जाएगा । शासक वर्ग को मधेश के प्रतिर् इमानदार होना पडÞेगा । ये बातें हीं भविष्य में नेपाल की स्थिति का निर्धारण कर सकती हैं ।