करुणाशंकर उपाध्याय को हिंदी गौरव अलंकरण प्रदान
दिनांक 25 फरवरी 2024 को मातृभाषा उन्नयन संस्थान, इंदौर द्वारा डॉ करुणाशंकर उपाध्याय और मनोज श्रीवास्तव को हिन्दी गौरव अलंकरण 2024 से विभूषित किया गया। इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि लोकप्रिय सांसद शंकर लालवानी, अध्यक्षता साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन के निदेशक डॉ. विकास दवे एवं विशिष्ट अतिथि भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी व फ़िल्म अभिनेता अक्षय राजशाही मौजूद रहे।
समारोह में काव्य साधकों जिनमें ऋषभदेव से नरेन्द्र पाल जैन, लखनऊ से मनुव्रत वाजपेयी, सूरत से कवयित्री सोनल जैन और इंदौर से एकाग्र शर्मा व धीरज चौहान को काव्य गौरव अलंकरण भी प्रदान किया गया।
अतिथियों का स्वागत कीर्ति राणा, प्रदीप जोशी, डॉ. नीना जोशी, योगेश चन्देल, रमेश शर्मा, जयसिंह रघुवंशी, अंकित तिवारी ने किया एवं स्वागत उद्बोधन मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने दिया। समारोह का संचालन श्रुति अग्रवाल ने किया व आभार कवि गौरव साक्षी ने माना। अलंकरण पत्र का वाचन अखिलेश राव व संध्या रॉय चौधरी ने किया।
प्रो. द्विवेदी ने संबोधित करते हुए कहा कि ‘क्यों एक देश अपनी ज़ुबान में नहीं बोल सकता। आज भारतीयता की ओर भारत लौट रहा है। यह विचारों की घर वापसी है। हम अपनी संस्कृति, भाषा को सम्मानित होते देख रहे हैं और यह सत्य है कि भाषाएँ और माताएँ अपने पुत्रों से सम्मानित होती हैं।’
डॉ. दवे ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि ‘भाषा को लेकर लाखों उपसर्ग तैयार हुए, परंतु इन सबसे पार होते हुए हिंदी अब विश्व भाषा बन गई। और यहाँ तक कि हिंदी विश्व की तकनीकी मित्र भाषा है।’
अपने सम्मान के प्रतिउत्तर में मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि ’यह हिंदी का सम्मान मेरे लिए वन्दनीय है। भूतकाल में जो लोग अंग्रेज़ों के जूतों में पैर डालते हैं वे राजभाषा कहते हैं जबकि भारत की पहचान हिंदी है।’
इसी तरह सम्मानमूर्ति एवं प्रख्यात आलोचक प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि ‘भारत के उत्तरी छोर इंदिरा घाटी से दक्षिण निकोबार स्थित इंदिरा पॉइंट और कच्छ के नलिया से अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी सीमांत तक हिंदी मौजूद है।अब हिंदी का वैश्विक विस्तार हो रहा है।यदि हमारा देश निकट भविष्य में आर्थिक एवं सैन्य महाशक्ति बनने की प्रक्रिया में है तो निश्चित रूप से उसमें हिंदी और भारतीय भाषाओं की विशेष भूमिका होगी।अब हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि मानविकी के सारे विषयों का अध्ययन- अध्यापन हिंदी एवं भारतीय भाषाओं में ही हो।यदि हम भारत को विश्वगुरु की स्वाभाविक छवि प्रदान करना चाहते हैं तो यह हिंदी द्वारा ही संभव है।
इस मौके पर सूर्यकान्त नागर, डॉ. पद्मा सिंह, राकेश शर्मा, अश्विनी दुबे, श्वेतकेतु वैदिक , मार्टिन गुड्डू, सहित सैंकड़ो हिंदी में प्रेमी मौजूद रहे।