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मधेशी एकता जिंदाबाद, बंदी खुलेगा फगुआ बाद : मुरलीमनोहर तिवारी

मुरलीमनोहर तिवारी (सिपु), बीरगंज, ८ अक्टूबर | मधेश आंदोलन का दूसरा महीना होने वाला है। दुनिया के इतिहास में इतना लम्बा आंदोलन शायद ही कही हुआ होगा। पहाड़ी नेताओ के तेवर में कही भी नरमी नहीं आइ है। वे अपना हरेक तीर चला रहे है, चाहे वार्ता का ढ़ोंग हो, बंदी खुल गया का झूठा प्रचार हो, या विश्व जगत से सहानुभूति का प्रयाश हो। ये साम, दाम, दण्ड, भेद सब दांव आजमा रहे है। इस साजिश के दौर में आंदोलन का सही और सटीक विश्लेषण करना जरुरी है।

s-4सीमांकन से सबसे ज्यादा प्रभावित झापा में आंदोलन का नामोनिशान तक नहीं है। ये भी सत्य है की वहा मधेशी कम है, फिर भी वहा सांकेतिक कार्यक्रम तक नदारद है। मोर्चा के तर्फ से उपेन्द्र यादव को बिराटनगर का जिम्मा मिला। बिराटनगर में बंद का कोई असर नहीं है। सिर्फ नाका पर कुछ सौ की संख्या में लोग है। पिछले पंद्रह दिनों में बिराटनगर में आनंदोलन का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ है। तमरा अभियान ने इस बिच में कार्यक्रम करके जागृति की कोशिश की है , जो की प्रभावकारी भी रहा। उपेन्द्र यादव काठमांडू से हिलने का नाम नहीं ले रहे है और उनके जिम्मे का आंदोलन कमजोर पड़ गया है।

 

राजेन्द्र महतो के जिम्मे का बिरगंज नाका सबसे प्रभवकारी रहा। उसका कारण ये रहा की इन्होंने पूरा समय बिरगंज और आंदोलन को दिया। पुरे दिन में हर दो घंटे में ये नाका पर ही दिखते है। उन्होंने अपने रहने का इंतजाम भी नाका के समीप ही किया है, रात में भी जब उनकी आँख खुलती है, नाका का चक्कर लगा लेते है। वे सीधे जमीन पर बैठ जाते है, किसी से खैनी मांग लेते है। उनकी सरलता और ऊर्जा देती है। बिरगंज में ज्यादा उपस्थिति का एक और कारण सभी मधेशी के एक होना भी रहा।

s-3सबसे बुरी हालत भैरहवा में रही। तमलोपा के जिम्मे का यह नाका तमलोपा के हालात बयान करता है। इसके दो बड़े नेता वही से है। हृदेश त्रिपाठी नाका छोड़कर काठमांडू इंटरव्यू देने में व्यस्त है। सर्वेंद्र नाथ शुक्ला अगली सरकार में अपनी संभावना तलाश रहे है। जो कार्यकर्त्ता है वे अपनी बेबसी छुपा रहे है। कई छोटे नाको पर आंदोलनकारी शादी(विवाह के वापसी बाराती की तरह खटिया पर पसरे हुए नजर आए। आंदोलन को मधेशी मोर्चा अपनी जमींदारी समझ बैठा है। आंदोलन के इतने दिन बितने के बाद भी मधेशी पार्टी में एकता का ढोंग हो रहा है। इन्हें लज्जा आनी चाहिए। आज मधेश का जो बुरा हाल है वो इन्ही की पूर्व करनी का नतीजा है। ये अभी भी सुधरने वाले नहीं है, ये शुद्ध खांटी (खुराट राजनीतीज्ञ है।

मोर्चा को आंदोलन, मधेश और मधेशी से ज्यादा प्यारा अपना पार्टी, अपना झंडा है। अगर सभी मधेशी दल के एकता हो जाती तो ये तीन नाके की बात ही क्या है, अन्य छोटे (छोटे नाके भी बंद होते। आज मधेश में खाद्य और पेट्रोलियम पदार्थ की तस्करी हो रही है उसे बिराम मिलता। मोर्चा के बाहर के मधेशी दल आंदोलन में मधेश धर्म मानकर सहभागी मात्र हो रहे है। मोर्चा के तिरस्कार के कारण वे अपनी मूल शक्ति नहीं झोंक रहे है जिसकी मधेश को दरकार है।

आंदोलन में रातो रात कुछ परिवर्तन हुए है। कई जगहों से तस्करो और घुसपैठियो पर आक्रमण हुआ है। पहाड़ी समाज भी पहाड़ से आगे निकल कर मधेश में भी कई जगहों पर अन्तर्घात करके मधेशी योद्धाओ पर हमला किया। तमरा अभियान के केंद्रीय सदस्य प्रशांत गुप्ता को भैरवा में प्रहरी उपस्थिति में खुकुरी से जानलेवा हमला हुआ। इससे ख़बरदार और सावधान होना जरुरी है। आंदोलन के कई सभाओ में जनसमुदाय द्वारा हथियार उठाने और मधेश देश का समर्थन दिखा। ये हकीकत है की इतना लम्बा आंदोलन और सरकार का मधेश बिरोधी रवैया, मधेश को हिंसक बनाने को आतुर है।

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नेपाल में जो हो रहा है, एकदम ठीक हो रहा है। वर्षो का उकुस -मुकुस बाहर आरहा है। पहाड़ी दल और मधेशी दलाल का नकाब उतर चूका है। भारत का नेपाल देखने का चश्मा उतर गया है। पहाड़ी दल जितना जहर उगले उतना अच्छा है। ये लड़ाई जितना आगे जाए, मधेश हित में उतना ही बेहतर है। सिर्फ नक्कली वार्ता और सहमती ना हो। मोर्चा कही घुटने ना टेक दे, ये भय लगा रहता है। एक प्रयोग के तहत एक सभा में मैंने कहा मधेशी एकता जिंदाबाद, बंदी खुलेगा फगुआ बादू पूरा जनसभा समर्थन में खड़ा हो यही नारा दोहराने लगा मधेशी एकता जिंदाबाद, बंदी खुलेगा फगुआ बाद।।।।।।कुछ समझ में आया ? जय मधेश।।



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