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घर-परिवार पर चाहें लक्ष्मी
कृपा, तो नकरें ये ४ काम
शास्त्रों में विद्या, धन, सुख और वैभव से संपन्न लक्ष्मी को ‘श्रीु कहा गया है। इसलिए सांसारिक जीवन में भी जब किसीःथान या व्यक्ति के संग से किसी भी तरह का सुख या ज्ञान मिलता है तो उसे ‘श्रीु संपन्न कहकर भी पुकारा जाता है। इस तरह लक्ष्मी का श्री स्वरूप प्रेरणा यही देता है कि जहां ज्ञान रूपी प्रकाश होता है, वहां लक्ष्मी प्रसन्न होकर ठहरने पर विवश हो जाती है। संकेत है कि विद्वानता, बुद्धित्ता, पावनता से भरा आचरण ज्ञान, गुण व धन से समृद्ध होता है। वहीं इसके विपरीत अज्ञान व दरिद्रता रूपी अंधेरा या कलह से लक्ष्मी दूरी बनाए रखती है। इस संबंध में शास्त्रों में कहा भी गया है कि- अर्थ है किसी भी रूप में दरिद्रता से सारे गुणों का अंत हो जाता है।
यही कारण है कि शास्त्रों में इंसान के लिए धर्म को व्यवहार में उतार दैनिक जीवन में कुछ ऐसे कामों से दूरी बनाए रखने की सीख दी गई है, जो तन, मन, विचार को दरिद्र बनाकर लक्ष्मी कृपा से वंचित रखतें है। जानिए ‘श्री संपन्न बनने के लिए किन ४ बातों से फासलें रखें –
माता-पिता या गुरु का अपमान- शास्त्रों में सेवा कोर् इश्वर पूजा की तरह माना गया है। जन्म देने वाले माता-पिता और ज्ञान देने वाले गुरु को भर्ीर् इश्वर का दर्जा दिया गया है। इसलिए इन तीनों की सेवा से मुंह मोडने या अपमान करने वाले पर लक्ष्मी कृपा की नहीं होती।
आलस्य और अज्ञान- शास्त्रों में कर्म और ज्ञान ही तमाम सुखों का मूल माना गया है। लक्ष्मी भी ऐसे ही व्यक्ति पर प्रसन्न होती है जो परिश्रमी और सक्रिय होता है। न कि आलस्य से घिरा व ज्ञान, कर्म और पुरुषार्थ से दूर रहने वाले पर।
पराया धन और परस्त्री- लक्ष्मी हर तरह से पावनता का संग करती है। इसलिए चरित्र की पावनता बनाए रखने के लिए परायीस्त्री या दूसरों के कमाए धन पर कब्जा और चोरी करने से भी बचें।
इंद्रिय असंयम- इंद्रयिों का असंयम अपवित्रता का कारण बनता है। जिससे लक्ष्मी रुष्ट होती है। सुबह सोते रहना, शाम के समय सहवास करना, भोजन में अपवित्रता जैसे खाना बनाते समयस्त्री द्वारा खा लेना, बार-बार भोजन करना या रजस्वला होने पर भी भोजन छूने जैसे काम लक्ष्मी कृपा से वंचित करते हैं।





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