वर्षा ऋतु की हरियाली एक अस्थाई प्रदर्शन है : गंगेशकुमार मिश्र
गंगेशकुमार मिश्र , कपिलबस्तु ८ जून |
” मूसलाधार वर्षा के बाद समस्त दिशाओं में खेत और जंगल हरे भरे हो जाते हैं। वे ऐसे व्यक्ति के समान लगते हैं, जिसने कुछ भौतिक लाभ के लिए कठोर तपस्या की हो और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया हो।” ★★
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वर्षा ऋतु की हरियाली एक अस्थाई प्रदर्शन है। यह बहुत ही सुन्दर दिखाता है, परन्तु हमें यह अवश्य याद रखना चाहिए कि यह टिकाऊ नहीं है।इसी प्रकार भौतिक लाभ हेतु कठित तप करने वाले व्यक्ति भी हैं, परन्तु जो बुद्धिमान हैं वे इससे बचकर रहते हैं।क्षणिक लाभ के लिए की गई कठोर तपस्याएँ समय और शक्ति का अपव्यय मात्र हैं।
हम दुखों को दूर कर और क्षणिक उपलब्धियों के द्वारा कृत्रिम रूप से कुछ भौतिक सुख भोग तो सकते हैं, किन्तु यह कोई यथार्थ उपलब्धि नहीं होती।हमारा कर्तव्य शाश्वत आनन्द एवं सनातन जीवन की प्राप्ति करना है और हमें इसी अन्तिम लक्ष्य व लाभ के लिए हर प्रकार की तपस्या करनी चाहिए।115
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा है,
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☆☆” बड़े भाग मानुष तन पावा,
सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थहिं गावा।
साधन-धाम, मोक्ष कर द्वारा,
पाइ न जेहि परलोक सँवारा।”☆☆
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शाश्वत आनन्द और सनातन जीवन की प्राप्ति केवल मनुष्य योनि में ही सम्भव है, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।शाश्वत सुख के लिए हमें, सुख के भौतिक स्रोतों का परित्याग करना ही होगा।
हमें एक ऋतु-विशेष में खिलने वाले उन फूलों या हरियाली के समान सुन्दर बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए जो वर्षा ऋतु में तो फलते-फूलते हैं, परन्तु शीतकाल में मुरझा जाते हैं। अज्ञानरूपी बादलों के आच्छादन से प्रोत्साहित होना और क्षणिक हरियाली के दृष्य का आनन्द लेना सर्वथा अनुचित है, अज्ञानतापूर्ण व्यवहार है।हमें तो सूर्य तथा चन्द्रमा की किरणों से पूरित असीम निर्मल आकाश में विचरण करने का प्रयत्न करना चाहिए।
((( भागवत का प्रकाश )))