Thu. Mar 28th, 2024

इस बार हिमालिनी के इस अंक में वास्तु के वो महत्वपूर्ण टिप्स हंै, जिस पर प्रायः कम ही लोगों का ध्यान जाता है, जो कि पाठकों की विशेष रुचि को देखते हुए दिए जा रहे हैं ।
भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार विभिन्न दिशाओं का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है और इसका सही ज्ञान अत्यन्त ही आवश्यक है । मुख्य रूप से हम ४ दिशाओं को महत्व देते हैं पर इसी के साथ ४ और दिशाएं हैं जो पहले की चार दिशाओं के समान ही महत्व रखती हैं ।
इन सभी में किसी न किसी देवता का स्थान माना जाता है । जैसे हम अपने आम जीवन में ही देखें तों पूर्व दिशा का नाम लेते ही हम सूर्य देव को ध्यान में लाते हैं ठीक उसी प्रकार अन्य दिशाएं व उनके अधिष्ठाता देवगण आदि हैं जो निम्न प्रकार से हंै ।
दिशा अधिष्ठाता देवता
उत्तर कुबेर, सोम
दक्षिण यम
पूर्व इन्द्र, सूर्य
पश्चिम वरुण
उत्तर–पूर्व (ईशान कोण) सोम व शिव
पूर्व–दक्षिण (आग्नेय कोण) अग्नि
दक्ष्णि–पश्चिम (नैऋत्य कोण) नैऋति
उत्तर–पश्चिम (वायव्य कोण) वायु

१ ः उत्तर दिशा ः इसे घर का पैतृक स्थान बोलते हैं । उत्तर में खाली स्थान न छोड़ने पर पैतृक पक्ष की हानि हो सकती है ।
२ः पूर्व दिशा ः यहां सूर्य का निवास स्थान है व किसी भी प्रकार का भवन का निर्माण करते समय यहांँ थोड़ा ही सही किन्तु स्थान अवश्य छोड़ देना चाहिए । अन्यथा वंश के स्वामी को हानि होने की संभावना है ।
३ ः उत्तर पूर्व दिशा ः यह देवत्व स्थान है यहां किसी भी प्रकार का दोष नहीं होना चाहिए, क्योंकि ईशान वंश वृद्धि करता है ।
४ ः दक्षिण दिशा ः यह मुक्ति कारक दिशा है अतः इस दिशा में सबसे ज्यादा निर्माण कार्य करके भारी रखना चाहिए । यह दिशा सुख समृद्धि व शान्तिदायक भी है ।
५ ः दक्षिण पूर्व दिशा ः यह मानव जीवन में स्वास्थ्यदाता है । इस दिशा में किचन बनाना लाभदायक होता है पर साथ ही यह भी ध्यान रहे कि इस मुख्य कोण पर पानी का बहाव न हो । यदि आपके घर में इस दिशा में शयन कक्ष है तो इस कोण पर लाल बल्ब जलाएं ।
६ ः दक्षिण पश्चिम दिशा ः जैसा कि इस दिशा का स्वामी ही राक्षस है, अतः इस दिशा में किसी भी प्रकार का दोष होने से अकाल मृत्यु होती है । साथ ही यह दिशा शयन कक्ष के लिए उत्तम है । यदि आप अपने वैवाहिक जीवन में पूर्णता व खुशहाली के साथ शान्ति चाहते हैं तो इस दिशा को अपना शयन कक्ष बनाएँ ।
७ ः पश्चिम दिशा ः यह दिशा शान्ति का प्रतीक है । परन्तु इस दिशा में खाली खुला स्थान नहीं होना चाहिए । माना गया है कि पूर्व की तरफ से संचित उर्जा इस स्थान में भी संचित रहती है जो कि द्वार के होने से या खुले स्थान के होने से संचित नहीं हो पाती हैं । वास्तु पुरुष के अनुसार यह स्थान हमारे शरीर में निचले पेट का है व इस दिशा में दोष से नकारात्मक प्रभाव बना रहता है ।
८ः पश्चिम उत्तर दिशा ः इस दिशा में दोष होने से अकारण ही अदालत के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं । दूसरी बात कि इस दिशा में समस्या से हमारे पेट में व रक्तचाप में भी सदैव समस्या हो सकती है । औषधि शास्त्र के अनुसार औषधि जैसे पौधों को इसी दिशा में लगाना चाहिए ।
प्रस्तुतिः मालिनी मिश्र



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