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मोबाईल मेनिया – शादी का वह लड्डू, जो न खाए पछताए और जो खाए वह भी पछताए

बिम्मी शर्मा , काठमांडू, २६ सेप्टेम्बर |
लोग बाहर जाते समय कपडे पहनना भूल जाएँगें पर मोबाईल साथ ले कर चलना नहीं भूलेंगे । अंतः वस्त्र में ही घर से बाहर चले जाना कोई अजूबे की बात नहीं पर कोई मोबाईल साथ ले कर न चले तो जरुर आश्चर्य की बात होती है । या तो वह ईंसान पागल है, अठारहवीं शताब्दी का है या देवता है तभी मोबाईल या स्मार्ट फोन साथ में ले कर नहीं चलता । नहीं तो लोग शौच जाते समय भी हाथ में लोटा की जगह मोबाईल और कान में जनेउ डालने की जगह ईयर फोन घुसेड़ कर चलते हैं ।
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इधर घर में मोबाईल की अम्मा कर्डलेस फोन और लैंड लाईन फोन अपने बच्चे का रास्ता देखती रहती है कि कब मोबाईल घर में आए और उसका सुमधुर रिंग टोन उन्हें सुनाई दे । अपने बच्चे की किलकारी सुन कर कौन सी मां होगी जो खुशी से फूली न समाएगी ? बेचारी लैंड लाईन और कर्डलेस फोन तो हपते या महीने में एक बार भी बज जाएं या उन पर कोई बोल ले तो इनकी जान में जान आ जाती है । यह दोनों तो अब बस सरकारी कार्यालयों की शोभा बढाने के लिए ही है ।
पहले कहा जाता था जहां न पहुँचे रवि, वहां पहुँचे कवि । अब यही बात मोबाईल पर लागू होती है । मोबाईल और उसका नेटवर्क सिर्फ शौचालय तक ही नहीं सियाचिन की कड़कड़ाती ठंड में भी पहुँच चुकी है । अब अदृश्य स्वर्ग और नर्क में ही मोबाईल का पहुँचना बांकी है । देश के दृश्य में दिखने वाले स्वर्ग जैसे सुदंर और नर्क जैसी गंदी जगह में तो मोबाईल अपनी पूरी तामझाम के साथ हाजिर है । यदि किसी के परलोक सीधारने के बाद उस ईंसान से मोबाईल में कन्ट्याक्ट हो सकता तो मरते समय वह आदमी जरुर अपने कफन में मोबाईल भी डाल कर साथ ले जाता या उसके अपने लोग उसके क्रियाक्रम में एक अच्छी सी मोबाईल भी दान कर के पूण्य कमाते । काश ऐसा हो जाता ?
मोबाईल एक ऐसा जबरदस्ती या वाध्यता का तकनीकी उपकरण हो चुका है जिसके बिना लोग जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते । लोगों के तकिए के नीचे सिर दर्द या नींद की गोली भले न हो पर मोबाईल जरुर दुबक कर बैठा रहता है । इस मोबाईल ने सभी के स्वाभिमान को छीन लिया है । जहां भी चले जाइए सब अपना सिर नीचा कर मोबाईल का दटन दबा रहे होते हैं । हाय रे इस स्वाभिमानी गोर्खाली वीर नेपाली का वह नाजो अंदाज कहां चला गया जिससे अँग्रेंज भी डर से कांपा करते थे । आज तो वही वीर गोर्खाली नेपाली भीगी बिल्ली की तरह रजाईं में दुबक कर या सिर निहुरा कर मोबाईल से अपना आत्म स्वाभिमान को साट या चाट रहा है ।
अपने देश में मोबाईल तो क्या उसका कोई पाटपूर्जा भी नहीं बनता । मोबाईल बिगड़ने पर बनाने वाला अच्छे मेकेनिक का अभाव है पर मोबाईल ऐसे ले कर शान से चलता है जैसे कि मोबाईल के साथ ही पैदा हुआ हो । मां ने बच्चे को पैदा करते समय साल नाल की जगह बच्चे के साथ मोबाईल ही ले कर पैदा किया होगा ? तभी तो दूध मूंहे बच्चे से ले कर पोपले मुँह वाले वृद्ध भी मोबाईल के बिना अपनी जिन्दगी को अधूरा मानने लगे हैं । पैर आर्यघाट पर लटकाए हुए हैं पर हाथ मोबाईल के बटन को दाबे हुए किसी षोडषी से च्याट करने में मस्त हैं । लगता है स्वर्ग में जा कर डेटिंग या हनीमून मना कर इस मोबाईल काया को कृतार्थ करेगें ।
मोबाईल वास्तम में झूठ बोलने के लिए ही बनाया गया एक अत्याधुनिक उपकरण है । बैठे होंगे प्रेमिका की गोदी पर सिर रख कर गुफ्तगु करते हुए, उसी समय घर से पत्नी या किसी और का फोन आ गया तो आराम से बोल देंगें आफिस में मीटिंग मे बिजी हूं या ओभर टाईम कर रहा हूं । किसी रेष्टुरेण्ट में दोस्तो से बतियाते हुए खा पी रहे होंगे पर मोबाईल में किसी का फोन आ गया तो कह देगें कि ट्रैफिक जाम में फंसा हूं । सिनेमा हाल में सिनेमा देखने में मस्त होंगे पर कह देगें की मातमपूर्सी के लिए आर्यघाट मे हूं अभी । है ना ? कितना मजेदार और सफेद झूठ जो हम खुद भी बोलते हैं और दूसरों के मोबाईल से अपने लिए सुनते हैं । वाह क्या चमत्कारिक मशीन है यह मोबाइल ?
मोबाईल भी शादी का वह लड्डू जैसा हो गया है, जो न खाए पछताए और जो खाए वह भी पछताए । मोबाईल हाथ में या साथ में न हो तो जिन्दगी खाली, खाली और विरान सी लगती है । और जब मोबाईल हाथ में आ जाता है तो जिन्दगी की सारी खुशी और शान्ति हमेशा के लिए कब्र में सोने चली जाती है । लोग कपड़ा भले फटेहाल पहन ले पर मोबाईल हमेशा लेटेस्ट डिजाइन का चाहिए । मिले तो आईफोन सिक्स या सेवेन नहीं सेम्संग का ग्यालेक्सी से ही समझौता कर लेंगे । पर उस से कम का नहीं चलेगा । अरे भई दोस्तो में अपनी रुतबा जो कायम रखना है । खाएँगें मन्सूली चावल पर मोबाईल लेंगे दोस्तों से अलग और नयां जो बजार में ताजी मछली की तरह अभी आया हो ।
कोई क्या बोल रहा है, किसी को कोई दर्द या पीड़ा है कुछ मतलब ही नहीं है । क्यों कि कुछ सुनाई ही नहीं देता, कान में मोबाईल का ईयर फोन जो लगा रहा है । बस भैंस या गधे कि तरह सिर हिलाते रहेगें । न कुछ बोलेंगे न कुछ सुनेंगे, लगता है सभी गूगें और बहरे हो गए है । मोबाईल जो न कराए वह कम है । कापी जैसा लंबा और चौडा मोबाईल ऐसे ले कर चलते है जैसे कि कोर्स कि किताब हो । और किताब की तरह मोबाईल में व्हाट्स ऐप और फेसबुक मैसेजंर में अपने दोस्त, गर्लफ्रेंड, ब्वायफ्रेंड से च्याट करने में इतने व्यस्त हो जाते है कि परीक्षा का दिन भी भूल जाते है । होश तो तब खुलता है जब स्कूल या कलेज से परीक्षा मे नबंर कि जगह अंडा आता है और अभिभावक को परिणाम की जगह शिकायत पत्र मिलता है । इसी को मोबाईल मेनिया कहते हैं और हम, आप सभी ईसी मोबाईल मेनिया से ग्रस्त हैं । काश हम सभी को मोबाईल फोबिया हो जाता ? (  व्यग्ंय )

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