नेपाल में बच्चों के मानवाधिकार की मौजूदा दशा
नेपाल में बच्चों के मानवाधिकार की मौजूदा दशा, सन्दर्भः विश्व मानवाधिकार दिवस
विनोदकुमार विश्वकर्मा ‘विमल’
आज जब हम अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर देश के नौनिहालों की मुश्किलों को दूर कर उनके लिए एक बेहतर भविष्य की कोशिश का संकल्प ले रहे हैं, तब हमें अपनी मौजूदा असफलताओं और चुनौतियों की पड़ताल करनी चाहिए । बच्चों के अच्छी हालत के लिहाज से नेपाल एक पिछडेÞ देशों में से एक है । यदि इस स्थिति में सकारात्मक बदलाव न हुआ, तो न सिर्फ बच्चों का आनेवाला कल त्रासद होगा, बल्कि देश भी अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को फलीभूत नहीं कर सकेगा ।
मौजूदा नेपाल में बच्चों के विकास की जो परिस्थिति है, वह अधिक सकारात्मक नहीं है, एक तरफ तो हम विकसित हो रहे हैं, बच्चों को पढ़ाने की नयी–नयी तकनीक आ गयी है, लेकिन जब यह बात आती है कि क्या हम हर बच्चे को वही शिक्षा, वही स्वास्थ्य दे पा रहे हैं, तो इस मामले में हम बहुत पीछे हैं । शिक्षा, स्वास्थ्य लगायत अन्य क्षेत्रों में बदलाव हुआ है, लेकिन वह बदलाव हर बच्चे तक नहीं पहुंच पा रहा है, मौजूदा नेपाल के बचपन को लेकर यह चिंता का विषय है । आज भी गांवों में एक बच्चे के जन्म के बाद उसके पंजीकरण के लिए कोसों दूर जाना पड़ता है । आज भी दूरदराज के हमारे ग्रमीण क्षेत्रों में अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं की समस्याएं हैं । शिशु मृत्यु दर अब भी एक समस्या बनी हुई है अथवा शिशु मृत्यु दर को कम करने में उतने कामयाव नहीं हुए हैं, जितना कि होना चाहिए । इस मामले में हम बहुत पीछे हैं और आगे आए बिना खुशहाल बचपन की कल्पना नहीं की जा सकती है । आज भी छठवीं–सातवीं के बच्चे विषेशकर दलित, सीमान्तकृत, सही–सही किताबें पढ़ने में अक्षम पाये जाते हैं । ऐसे में जहां हम सकारात्मक रूप से यह भी देखते हैं कि हमने बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए जो निवेश किया है, वह बहुत ही न्यूनतम राशि है । ऐसे में हर बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए हमें एक लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा ।
स्वस्थ व शिक्षित बचपन के बिना किसी भी देश का विकास संभव नहीं है, क्योंकि बच्चे ही आगे चलकर विकसित देश की तसवीर बनाते हैं । अगर इनकी बुनियाद ही कमजोर होगी, तो फिर आगे के भविष्य के बारे में बहुत सकारात्मक तो नहीं सोचा जा सकता । हमारे बच्चे हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और आज का बच्चा कल का व्यक्ति है । अगर हम बचपन पर ज्यादा निवेश नहीं करेंगे, तो उसके व्यक्ति बनने के रूप में उसका फलन भी ज्यादा नहीं पाएंगे । नेपाल के नये संविधान में बच्चों के लिए जितने अधिकार तय किये गये हैं, वे सारे अधिकार अगर उन्हें मिले, तो वे अपनी काबीलियत और क्षमता का सही इस्तेमाल कर पायेंगे ।
शिक्षा, स्वास्थ्य के अतिरिक्त चाइल्ड ट्रैफिकिंग, बाल मजदूरी, बाल विवाह और बाल शोषण के तमाम ऐसे अनैतिक और क्रूर कृत्य भी देखने को मिल रहे हैं । इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, चाइल्ड ट्रैफिकिंग एक प्रकार से बच्चे को उसके सुरक्षात्मक माहौल से निकाल कर अपने किसी अन्य मकसद के लिए उसकी क्षमताओं का दोहन और उसका उत्पीड़न करना होता है । दुनियाभर में चाइल्ड ट्रैफिकिंग यानी बच्चों के अवैध व्यापार का मामला बढ़ता जा रहा है । नेपाल भी इस समस्या से अछूता नहीं है ।
एक रिपोर्ट के अनुसार नेपाल में निम्न कारणों से बच्चों के अवैध व्यापार होता है– गरीबी, भोजन का अभाव, विकास की गतिविधियों के कारण होनेवाला विस्थापन, बेहतर कानून व्यवस्था की कमी, सरकार की असंवेदनशील नीतियां, राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव आदि । बच्चों का आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और यौन–शोषण तब होता है जब वे मजदूरी करने को अभिशप्त होते हैं । इसी प्रकार बाल–विवाह जैसी कुप्रथा के कारण बच्चे वयस्क होने पर भी बहुत सारी सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी और राजनैतिक उपलब्धियों से वंचित हो जाते हैं, विशेषकर लड़कियां कम और कच्ची उम्र में गर्भधारण करती हैं, जिससे प्रायः गर्भपात होता है अथवा कमजोर बच्चे पैदा होते हैं, अथवा जच्चा–बच्चा की मृत्यु हो जाती है, अथवा कई बच्चे हर वर्ष पैदा होते हैं जिससे मां–बच्चे के स्वास्थ्य, देखभाल, शिक्षा, कमाई आदि पर कुप्रभाव पड़ता है । इस प्रकार स्पष्ट है कि आज के आधुनिक युग में भी बाल–विवाह जैसी कुप्रथा नेपाल में जड़ जमाए है । और बच्चों के मानवाधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि वे परिपक्व होने पर स्वेच्छा से विवाह करने की स्वतंत्रता से वंचित हो जाते हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने बच्चों के जीने, विकास, सुरक्षा एवं सहभागिता संबंधित विभिन्न अधिकारों को बाल अधिकार समझौते में शामिल किया है, जिससे एक ओर बच्चों को आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सुअवसर मिले और दूसरी ओर उन्हें क्रूरता, अपमान, भय, दंड, अपराध, यातना, जोखिम, वंचना, सशस्त्र संघर्ष, भेदभाव, उत्पीड़न आदि का शिकार न होना पड़े । ये अधिकार जीवन जीने को विवश हो जाएंगे । बाल अधिकार संबंधी अभिसमय को २० नवंबर, १९८९ को संयुक्त राष्ट्र संघ ने मान्यता दी । बच्चों के अधिकारों को चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है– जीन के अधिकार, विकास का अधिकार, सहभागिता का अधिकार और सुरक्षा का अधिकार । बाल अधिकार संबंधी अभिसमय के अनुच्छेद ६, ७, ९ २४ और २७ में बच्चों के जीने का अधिकार संबंधित प्रावधान है । अनुच्छेद २, १७, १८, २८ और २९ में विकास का अधिकार, अनुच्छेद १२, १३, १४, १५, ३० और ३१ में सहभागिता का अधिकार और अनुच्छेद १९, २०, २१, २३, १६, ११, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८ और ३९ में सुरक्षा का अधिकार संबंधित प्रावधान हैं । ये अधिकार मूलतः बच्चे पहले (चिल्ड्रेन फस्र्ट) के सिद्धान्त पर आधारित है जो उनके वर्तमान तथा भविष्य दोनों का बखूबी ख्याल रखते हैं ।
नेपाल ने १४ सितंबर १९९० को इसका अनुमोदन कर दिया । इसी आधार पर नेपाल के नये संविधान में भी बच्चों के मानवाधिकार संबंधित प्रावधान को मौलिक अधिकार अन्तर्गत रखा गया है । संविधान की धारा ३९ के उपधारा १ में बच्चों के नामकरण और पंजीकरण, उपधारा २ में शिक्षा, स्वास्थ्य, लालन–पालन, देखरेख, खेलकूद, मनोरंजन तथा सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास, उपधारा ३ में प्राथमिक बाल विकास एवं सहभागिता, उपधारा ४ में कारखाना में खतरनाक कार्य से बचाए जाने के अधिकार, उपधारा ५ में बाल विवाह, अवैध व्यापार, अपहरण, कैद पर रोक, उपधारा ६ में सेना, पुलिस या सशस्त्र समूह के प्रवेश में रोक, उपधारा ७ में स्कूल या अन्य किसी स्थान में और अवस्था में शारीरिक, मानसिक या अन्य किसी भी प्रकार के यातनाओं पर रोक, उपधारा ८ में हर बच्चों के लिए बाल अनुकूल न्याय, उपधारा ९ में असहाय, अनाथ विकलांग, द्वन्द्व पीड़ित, विस्थापित बच्चों के लिए राज्य द्वारा विशेष संरक्षण एवं सुविधाओं की व्यवस्था एवं उपधारा १० में पीड़ित बच्चों को पीड़क द्वारा हर्जाना दिलाने की व्यवस्था है । फिर भी बच्चे उपर्युक्त समस्याओं से पीड़ित हैं । उनकी अवस्था दुर्दशाग्रस्त है । और इन समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए व्याकुल हैं । इसलिए जरुरी है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय गैरसरकारी संस्था सरोकारी निकाय और सरकार बच्चों के मानवाधिकारों की शीघ्रातिशीघ्र रक्षा करें अन्यथा उनका भविष्य अंधकारमय होगा और वे जागरूक भावी कर्णधार नहीं बन सकेंगे । व्
नेपाल में बच्चों की दयनीय दशा
आंकड़ों के आइने में
– नेपाल में १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या १, १६, ६९, ९३५ हैं, जो कुल आवादी का ४४.४२ फीसदी हिस्सा है । बालकों की संख्या ५९,६४३२० (५०.६८ फीसदी) और बालिकाओं की संख्या ५८,०३, ६१५ (४९.३२ फीसदी) हैं ।
– नेपाल में बच्चों के स्वास्थ्य सूचक की दशा पूरी दुनिया के मुकाबले बेहद खराब है । आधे से अधिक बच्चों का जन्म अब भी घरों में ही होता है, राष्ट्रीय स्वास्थ्य विभाग सर्वे के मुताबिक ।
– ९६ फीसदी नवजातों का ही पूर्ण टीकाकरण होता देश भर में ।
– अधिकांश बच्चे एनीमिया की चपेट में आते हैं तीन वर्ष से कम उम्र समूह के बीच ।
– अधिकांश बच्चे कुपोषण का शिकार है देशभर में ।
– एक–तिहाई से भी कम बच्चों को पर्याप्त पोषक आहार मिल पाता है देशभर में ।
– एक हजार में ४६ बच्चों की मौत शैशवावस्था में ही हो जाती है ।
– एक हजार में ५४ बच्चों की मौत उनके ५ साल पूरा करने से पहले ही हो जाती है ।
– ४१ फीसदी बच्चे उनकी उम्र की तुलना में नहीं बढ़ पाते हैं ।
– २९ फीसदी बच्चे उनकी उ्रम की तुलना में कम वजन के हैं, राष्ट्रीय जनसंख्या तथा स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक ।
– ११ फीसदी बच्चे उनकी उम्र की तुलना में बहुत ही कम वजन के हैं, राष्ट्रीय जनसंख्या तथा स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक ।
– ५ फीसदी से अधिक बच्चे प्रत्येक वर्ष विकलांग होते हैं, नेपाल डिजएबल्ड ऐंड हेल्पलेस अपलिफ्टमेंट एसोसिएसन के मुताबिक ।
– ५८.०८ फीसदी बच्चे चाइल्ड ट्रैफिकिंग के शिकार हुए थे सन् २०१२ में, नेपाल पुलिस की महिला तथा बाल–बालिका सेल के मुताबिक ।
– १,३८,०१५ बच्चों की शादी १० वर्ष से कम उम्र में हो चुकी थी, राष्ट्रीय जनगणना २०११ के मुताबिक । इनमें से १,१५,१५० बालिकाएं हैं, तो २२,८६५ बालक ।
– १३,६३,१०७ बच्चों की शादी १० से १४ वर्ष तक की उम्र में हुई थी, इनमें से ११,१,२१३ बालिकाएं हैं, तो २,६१२२३ बालक, राष्ट्रीय जनगणना २०११ के मुताबिक ।
– ४१.०४ फीसदी बच्चे शारीरिक हिंसा के शिकार हैं, जिनकी उम्र समूह १० से १४ वर्ष हैं और १२.२६ फीसदी १५ से १९ वर्ष हैं ।
– करीब ३१ लाख ४० हजार बच्चे (कुल जनसंख्या के ४०.४ फीसदी) श्रमिक हैं देश में ५ से १७ वर्ष तक की उम्र के । इनमें से १६ लाख (५१ फीसदी) बाल श्रम के समूह अन्तर्गत हैं ।
नेपाल में बच्चों की सकल विद्यालय भर्ती की स्थिति
– प्राथमिक स्तर में ५८.६ फीसदी दाखिला होते है
– लोअर सेकेंडरी स्तर में ७७.७ फीसदी दाखिला होते हैं
– सेकेंडरी स्तर में ५८.६ फीसदी दाखिला होते हैं
– हायर सेकेंडरी स्तर में १६.४ फीसदी दाखिला होते है
स्रोत ः बंच्चों की मौजूदा दशा– २०१३ वार्षिक प्रतिवेदन, नेपाल सरकार ।
दुनियाभर में बच्चों की मौजूदा दशा
– १६७ लाख बच्चे रोजाना काल के गाल में समा जाते हैं दुनियाभर में, जिनमें से ज्यादातर का निधन उन बीमारियों से होता है, जिनका इलाज मुमकिन है और उन्हें बचाया जा सकता है ।
– २३२ करोड बच्चों का वजन कम है, यानी वे कुपोषण का शिकार हैं पाँच वर्ष से कम उम्र समूह में दुनिया भर में और आधिकारिक तौर पर इनका कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं होता ।
– २० लाख से ज्यादा संख्या है १० से १९ वर्ष के उम्र समूह में एचआईवी से पीड़ितो की संख्या दुनियाभर में, जिसमें करिब ५६ फीसदी बालिकाएं हैं ।
– हर वर्ष १४ मिलियन बच्चों की शादी १८ वर्ष से कम उम्र में होती हैं । इनमें से ४६ फीसदी सिर्फ सार्क देशों में होती है ।
– हर ३ बच्चों में १ बच्चे की शादी होती है ।
– दक्षिण एशिया में हर २ बालिकाओं में १ बालिका की शादी होती है ।
– बंगलादेश में ६५ फीसदी, भारत में ४७ फीसदी, नेपाल में ४१ फीसदी (१० फीसदी की शादी १५ वर्ष से कम उम्र में होती है) और अफगानिस्तान में ४० फीसदी बच्चों की शादी होती हैं ।
स्रोतः युनिसेफ २०१६
निराशाजनक हो सकती है तसवीर
बच्चों की दशा को सुधारने के लिए यदि दुनियाभर में पर्याप्त और समुचित प्रयास नहीं किए गए, तो वर्ष २०३० तक उनकी दशा बेहद खराब हालत में पहुँच सकती है । यूनिसेफ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में जो आंकड़े दर्शाये हैं, वे इस लिहाज से भयावह हैं ।
– १६.७ करोड बच्चे दुनियाभर में घनघोर गरीबी में जीने को होंगे अभिशप्त ।
– ६.९३ है पाँच वर्ष से कम उम्र समूह के वर्ष २०१६ से २०३० के बीच ।
– ६ करोड़ बच्चे, जो प्राथमिक स्कूल में जाने की उम्र के होंगे, स्कूलों से बाहर होंगे यानी अनेक कारणों से वे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हो सकते हैं ।
स्रोत ः यूनिसेफ २०१६