महिला हिंसा पुरुष एवं महिला बीच असमान शक्ति सम्बन्ध का ही परिणाम है : राधा कायस्थ
राधा कायस्थ, काठमांडू, २० दिसिम्बर | महिला हिंसा एक विश्वव्यापी गम्भीर समस्या है, जिसे न्याय, समानता, शान्ति एवं विकास के मार्ग का अवरोधक तत्व के रुप में जाना जाता है । वर्तमान में महिला हिंसा हरेक देश, जात, वर्ग एवं समुदाय में व्याप्त है और विश्व में प्रति–दिन तीन में से एक महिला हिंसा का शिकार होती है । पित्रृसतात्मक सोच, धर्म, संस्कृति, सामाजिक मूल्य, मान्यता प्रथा, एवं परम्परा के आधार पर घर, परिवार, समुदाय, समाज एवं राज्य के विभिन्न स्तरों पर महिला हिंसा देखा जा सकता है । महिलाएं आज सिर्फ शोषण, दमन, उत्पीड़न की ही शिकार नही हैं, बल्कि अपने न्यायपूर्ण एवं आधारभूत मानवाधिकार से भी वंचित हैं । मानवाधिकार का एक महत्वपूर्ण पक्ष महिला अधिकार है । किसी भी देश में महिलाएं पुरुष की तरह समान अधिकार एवं अवसर से सम्पन्न नही हैं, वहां की आधी आबादी स्वतः मानवाधिकार से वंचित हो जाती है । अतः महिला समानता मानवाधिकार का निर्णायक मानदण्ड, मानव सभ्यता की आधारशिला, लोकतांत्रिक एवं समता मूलक समाज का स्वरुप भी है । हमारे समाज में नियम कानून से लेकर समग्र व्यवहार में भी भेदभाव किया जाता है । पुरुष प्रधान मूल्य एवं मान्यताओं पर आधारित असन्तुलित सामाजिक संरचनाओं में महिला की अहम भूमिका है । महिला हिंसा, पुरुष द्वारा महिलाओं को अपने आधिपत्य कायम करने के माध्यम के रुप में प्रयोग होता आ रहा है । फलस्वरुप महिला हिंसा पुरुष एवं महिला बीच असमान शक्ति सम्बन्ध का ही परिणाम है ।
महिलाओं के साथ होने वाली किसी भी तरह की हिंसा का नकारात्मक दूरगामी असर पीड़ित के मानसिक, शारीरिक स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ता, बल्कि इसका असर व्यक्ति, समाज और परिवार पर भी पड़ता है । इस बात को ध्यान में रखते हुए २० दिसम्बर, १९९३ में हुई संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने महिला हिंसा उन्मूलन सम्बन्धित घोषणा–पत्र पारित करने के साथ–साथ महिला हिंसा को भी परिभाषित की । जिसके अनुसार महिला हिंसा निजी जीवन में लिंग के आधार पर होने वाली हिंसा जन्य कार्य, जिससे महिलाओं की शारीरिक, यौन जन्य या मानसिक क्षति अथवा पीड़ा देना या देने की सम्भावना होती है ।
महिला हिंसा किसी एक जाति, धर्म, संस्कृति, उम्र, वर्ग, क्षेत्र में मात्र सीमित न होकर थोड़े बहुत रुप में हर जगह विद्यमान है । इसीलिए इस समस्या का समाधान के लिए राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय रुप में काफी प्रयास किया गया है । खासकर १९९५ में चीन की राजधानी बेइजिंग में सम्पन्न चौथे विश्व महिला सम्मेलन द्वारा पारित किया गया बेइजिंग घोषणा–पत्र तथा कार्य नीति में उल्लेखित महिला से सम्बन्धित १२ गम्भीर विषयों में भी महिला हिंसा को गम्भीरता के साथ उठाया गया है ।
नेपाल संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्र होते हुए भी महिला हिंसा सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र की साधारणसभा द्वारा पारित घोषणा–पत्र मुताविक हिंसा नियन्त्रण एवं उन्मूलन के लिए अलग–अलग कानून नहीं बनाया गया है । परिणामतः हिंसा पीड़ित महिलाओेंं को विभिन्न कानूनों में कौन–सा सान्दर्भिक होगा खोज करने की आवश्यकता है । महिला संघ–संगठन की पहल एवं मांग के फलस्वरुप देश में घरेलु हिंसा (कुसुर एवं सजा) ऐन, २०६६ पारित होकर लागू किया गया है । इसी तरह नेपाल के नये संविधान के मौलिक हक एवं कर्तव्य अन्तर्गत की धारा १८,२९ एवं ३८ में महिला हिंसा विरुद्ध का प्रावधान रखा गया है । फिर भी दिन–प्रति–दिन महिला हिंसा बढ़ती जा रही है । अतः महिला हिंसा उन्मूलन करने के लिए निम्न उपायों का अवलम्बन करना उपयोगी एवं आवश्यक है ।
1 सम्पत्ति एवं उपदान के साधन पर स्वामित्व एवं नियन्त्रण सम्बन्धित कानूनी व्यवस्था ।
2 नीति निर्माण में महिला की समान सहभागिता की सुनिश्चिता ।
3 आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक रुपान्तरण के साथ राज्य का अग्रगामी पुनर्सरंचना ।
4 धर्म, संस्कृति, प्रथा, परम्परा के नाम पर होनेवाली महिला हिंसा को उन्मूलन करने हेतु जनचेतना कार्यक्रम संचालन ।
5 नेपाल की सन्धि ऐन ९ के तहत व्यवस्था किया गया प्रावधान कार्यान्वित करने की व्यवस्था ।
6 मानवाधिकार का एक महत्वपूर्ण पक्ष महिला अधिकार है, इस मान्यता को स्थापित करने की व्यवस्था ।
7 लोकपाल की व्यवस्था । आदि–इत्यादि ।
(राधा कायस्थ सदभावना पार्टी के केन्द्रीय सदस्य हैं )