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दबा की मनमानी मुल्य, डाक्टर से लेकर फोर्मेसी कर्मचारी तक मालामाल : विजेता

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विजेता, काठमांडौ, २५ पौष । सरकारी अस्पतालों के फार्मेसियों (औषधालय) द्वारा दबा की बिक्री मुल्य मनमानी ढंग से निर्धारण किया जा रहा है । यद्यपि औषधालय ने विमारों को उचित मूल्य में दबा उपलब्ध करवाने का खोलखा दाबा करना नहीं छोडा है ।
अपना स्वयम का औषधालय संचालन करनेवाली सरकारी अस्पतालों ने दबाओं का मुल्य निर्धारण फरक—फरक तरिका से करती आ रही है । जिस वजह से उपभोक्ता पीडित है ।
सरकारी अस्पतालों द्वरा चलाया जाने बाला फार्मेसि विमारों को सर्वसुलभ मूल्य  में दबा उपलब्ध करवाने का मान्यता जहा एक तरफ विश्वव्यापी है । वहीं दूसरी तरफ फार्मेसियों के फरक फरक मुल्य के कारण विमारों में अविश्वास उत्पन्न होने के साथ ही कई अवस्था में मुल्य को लेकर बिक्री कक्ष में ही मारपिट की नौबत तक आ जाती है ।
मुल्य निर्धारण के सम्बन्ध में त्रिबि शिक्षण अस्पताल ने बिक्री मुल्य तथा खरिद मुल्य के बिच का मुल्य रखकर औषधजन्य वस्तुओं की कीमत तय करती आ रही है । वहीं कान्ती बाल अस्पताल ने दबा का मूल्य निर्धारण करते वक्त गत वर्ष बिक्री मुल्य के ५ प्रतिशत छुट के साथ निर्धारण किया है | वहीं सर्जिकल वस्तुओं के हक में खरिद मुल्य में २० प्रतिशत जोेडकर बिक्री मुलय का निर्धारण करता है बताया गया है | इसी प्रकार मनमोहन कार्डियो थोरासिक तथा मास्कुलार केन्द्र के फार्मेसियों ने भी दबाओं की बिक्री एवम् खरिद मुल्य के बीच का मुल्य राखकर बिक्री करता आ रहा है ।
निजामती कर्मचारी अस्पताल के फार्मेसि ने दबाओं की बिक्री मुल्य में १० प्रतिशत घटाकर मुल्य का निर्धारण करता है । तो वहीं पाटन अस्पताल की फार्मेसि क’छ दबाओं के खरिद मुल्य में १६ प्रतिशत जोडकर बिक्री मुल्य निर्धारण करती है ।
सरकारी नियम का माने तो नेपाल सरकार स्वास्थय मन्त्रालय ने अस्पताल फार्मेसि संचालन निर्देशिका २०७२ मार्फत ओषधजन्य वस्तुओं की बिक्री मुल्य निर्धारण करते समय खरिद मुल्य के २० प्रतिशत मुल्य राखने का प्रावधान निर्धारण किया है । यद्यपि उक्त निर्देशिका अनुरुप मानव अंग प्रत्यारोपण केन्द्र के अतिरिक्त अन्य अस्पताल फार्मेसियों ने निर्धारित मापदण्ड से अधिक पैसा लेता आ रहा है ।
मनमानी की हद
इस सन्दर्भ में टिचिगं अस्पताल के फार्मेसि इन्चार्ज सुनिता रंजित कहती हैं—सरकार द्वारा लागु किया गया दबा की बिक्री मुल्य सम्बन्धी नियम कोइ भी सरकारी अस्पताल ने न तो माना है नाहीं लागु किया है ।
रंजित ने तो इतना तक कह डाला कि अस्पताल बचाने के लिए दबा अच्छी श्रोत है, सरकार द्वारा इतनी ही प्रतिशत के साथ बेचने का नियम लागु करना ही गलत है ।
वहीं कान्ति बाल अस्पताल के फार्मेसि इन्चार्ज सुजन नेपाल ने खरिद मुल्य अर्थात एम आर पी उल्लेख किया गया  एम आर पी ही रखकर बेचते है बताया । अन्य औषध ५ प्रतिशत छुट सहित बेचने की बात भी बताया । उन्होने सरकार द्वारा निर्धारण कियागया २० प्रतिशत मुल्य रखना तो चाहिये बताते हुये कहा कि यद्यपि उक्त नियम अभीतक हमने लागु नहीं किया है । सुजन बताते हैं कि बोर्ड न होने की वजह से भी सरकारी नियम लागु नहीं हो पा रही है ।
टिचिगं की फार्मेसि इन्चार्ज रंजित बताती हैं बाहर के फार्मेसियों द्वारा दबाओं में १५ प्रतिशत छुट उपलब्ध करबाया जाता है तो वही टिचिगें की फार्मेसि उक्त दबा का २० से ३० प्रतिशत तक छुट उपलब्ध करवाती है । रंजित बताती है पारासिटामोल के १० चक्की का खरिद मुल्य १० रुपया पडता है । लेकिन उक्त दबा को अस्पताल के फार्मेसि ७ रुपैया २० पैसा में उपलब्ध करवाती है ।
आपको बता दे उक्त खरिद मुल्य खुदरा बिक्री का है । अस्पताल से टेण्डर द्वारा खरिदने पर उक्त दबा का मोल तीन रुपया से भी कम पडता है ।
फरक फरक मोल का फण्डा
औषधजन्य वस्तु खरिद के लिए अस्पताल टेण्डर का आह्वाहन करती है । टिचिगं की फर्मेसि इन्चार्ज सुनिता रंजित कहती हैं खरीद ऐन अनुसार अस्पताल टेण्डर मार्फत दबाओं का खरिद करता है वही कान्ति बाल अस्पताल लगायत के अस्पतालों ने भी दबाओं का खरिद टेण्डर मार्फत करते हैं । अलग अलग मुल्य में खरिद करने तथा आपने अलग नियम लागु करते हुये दबा बिक्री करने के कारण प्रत्येक फार्मेसि का औषध मुल्य फरक होता है । अस्पताल भितर के फार्मेसियों मे भी दबाओं की बिक्री के छुट प्रतिशत में भी एक रुपता नहीं है । इस सब मे सब से बडा हाथ डाक्टरों का होता हैं । एमआर तथा औषध कम्पनी के साथ सीधा सम्बन्ध होने के कारण टेण्डर से लेकर दबा का खरिद व बिक्री में प्रत्यक्ष नहीं दिखते हुये भी डाक्टरों की संलग्नता रहता है ।
यद्यपि टिचिगं ने उक्त बात को अस्वीकार किया लेकिन कान्ति बाल अस्पताल के सुजन बताते हैं । हमें दबा डाक्टरों के निर्दैशन में रखना पडता है । वे जो दबा प्रिस्क्रिप्सन में लिखते हैं वहीं हमे फर्मेसि मे भी रखना पडता है । फार्मेसियों पर डाक्टरों का दबदबा का ये प्रमाण है । डाक्टरो कों उपलब्ध करबाने बाले कमिसन के विषय में यद्यपि फर्मेसि स्वयम भी मौन है ।
डाक्टर से लेकर फोर्मेसि के कर्मचारियों भी मालामाल है । लेकिन गरीब जनता जो सरकारी अस्पताल के अधिन में महज इस वजह से जाते हैं कि उन्हे सस्ता व सुलभ उपचार के साथ दबा उपलब्ध हों । यद्यपि ऐसे पीडितों के लिए अस्पताल वा फर्मेसि की रवैया लज्जाजनक है ।
बहरहाल इस समस्या को सामाधान करने के लिए सरकार द्वारा ही दबाओं की खरिद तथा बिक्री मोल का निर्धारण करना व उसका अनुगमन करना कारगर होने की बात विज्ञ बताते हैं ।

 



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