Fri. Mar 29th, 2024

बलिदानी दुर्गानन्द की, मस्ती खसानन्द की : कैलाश महतो

durganand-jha-janakpur



 

कैलाश महतो,परासी, १५ माघ | भारतीय ट्रेनों में सफर करने बाले लोग यह भलिभांति जानते हैं कि वहाँ भिख कैसे माँगी जाती है । भिख माँगने के लिए भिखारी लोग भी दादागिरी कैसे करते हैं । भारतीय उन ट्रेनों में यात्रा कर रहे यात्रियों से भिख माँगने बाले बहुत ऐसे भी भिखारी होते हैं जो पहले अपने तरफ से यात्रियों को कुछ पढने को देते हैं या कोई गीत सुनाते हैं और फिर भिख माँगते हैं । यात्री अगर उन्हें पैसे देने से इंकार करते हैं तो वे उन्हें गालियाँ और धम्कियाँ तक देकर पैसे वसुलते हैं ।

 

नेपाल की राजनीति को गौर से देखें तो क्या यह स्पष्ट नहीं होता कि हम और नेपाली राज दोनों तकरीबन वही कर रहे हैं ? नेपाली राजनीतिज्ञ हमेशा भारत को गालियाँ देकर उससे पैसे, सरकार और सीमा रक्षा माँगते हैं, वहीं हम और हमारे मधेशी नेतृत्व भारत और नेपाल दोनों से पहले भिख माँगते हैं । वे भिख देने से इंकार करता है तो धम्की देकर अपनी बातों को मनवाने की कोशिश करते आ रहें हैं  भारत नेपाल के साथ ठीक वैसा ही करता है जैसा हम और हमारे मधेशी राजनीतिज्ञ के साथ नेपाल करता है ।

जैसे हम ट्रेनों में रहे भिखारियों से नहीं उलझना ही अपना इज्जत समझते हैं, ठीक उसी तरह भारत नेपालियों से, और नेपाली राज कभी कभार मधेशी राजनीतिज्ञों से नहीं उलझना ही अपना इज्जत और सुरक्षा समझता है । भारत चाहता है कि नेपाली उसके करीब ही नहीं आये और नेपाली चाहता है कि मधेशी उससे दुर ही रहे । इसी मनोविज्ञान के आधार पर भारत नेपाल को कुछ न कुछ देता रहता है और नेपाली राज मधेशी राजनीतज्ञों को । जब कुछ मिल जाता है तो दोनों कुछ दिनों के लिए शान्त हो जाते हैं या खुश होकर उनकी प्रशंसा में लग जाते हैं । फिर घटा तो कोई न कोई मुद्दा उठाकर उनके विरोध में नारे लगाने और गालियाँ देने लग जाते हैं । यह सिलसिला दशकोेंं से चलता आ रहा है ।

 

नेपाल को बचाने और उसे बनाने से लेकर नेपाल के हर एक परिवर्तन में अहम् भूमिका में रहे मधेश और मधेशियों के साथ नेपाली राज्य द्वारा भिखारी, दास और गुलाम के स्तर पर मानवताहीन व्यवहार होता रहा है । नेपाली शासक मधेशियों को कायर, डरपोक और स्तरहीन प्राणी ही समझते रहे हैं । उसने जब जब अपने अधिकारों की बात की, उसे देशद्रोही और भारतपरस्त का उपनाम दिया जाता रहा है ।
वि.सं. १९८७ में जन्में दुर्गानन्द झा नेपाल का प्रथम शहीद होने के बावजुद उन्हें शहीद का सम्मान नेपालियों ने देना उचित नहीं समझा । वि.सं.२०१७ में राजा महेन्द्र द्वारा नेपाली काँगे्रस के नेतृत्व में रहे प्रजातान्त्रिक सरकार को बर्खास्त करने के बाद नेपाली काँगे्रस और उसके नीतियों पर आधारित प्रजातन्त्र के लिए मधेश का नव यूवा दुर्गानन्द झा ने देश के पूर्वाञ्चल भ्रमण में रहे राजा महेन्द्र के उपर जनकपुर में बम प्रहार किया था । ९ माघ २०१८ के दिन हुए उस बम आक्रमण में भाग्य से बचे राजा महेन्द्र ने तत्कालिन काँगे्रस के ५९ नेताओं को गिरफ्तार कर यातना दे रहे थे । अपने योद्धा साथियों को पकडे जाने और अनाहक यातना दिए जाने की खबर सुन शेर दिल का साहसी वह मधेशी यूवा भारत का निर्वासित जीवन छोडकर अपने द्वारा किए गए साहसपूर्ण कार्य को सहर्ष स्वीकारने तथा निर्दोष अपने मित्रों को पंचायती यातनाओं से मुक्त कराने हेतु पंचायती सरकार के सामने अपने आपको सुपूर्द किया था ।

तत्कालिन राजा और उनके निरंकुश पंचायती शासन के सामने बम प्रहार का सारा जिम्मेबारी उन्होंने ली । राजा महेन्द्र द्वारा उन्हें उनके ब्राम्हण होने के कारण मृत्यु दण्ड से बचाने हेतु उनके द्वारा हुए उस अपराध को किसी दूसरे पर लगाने का सुझाव जब आया तो उन्होंने राजा को चुनौती देते हुए कहा था कि महेन्द्र के हर क्रुरता को वे सहने को तैयार हैं ।

राजा महेन्द्र ने उन्हें जब यह कहा कि वे अपने अपराध के लिए क्षमा माँग सकते हैं तो जबाव में दुर्गानन्द ने कहा था, “मैंने कोई अपराध ही नहीं किया है । उन्होंने आगे कहा कि अगर वे अपराधी हैं तो उनसे बडा अपराधी राजा महेन्द्र और उनकी शासन व्यवस्था रही है जिसने प्रजातन्त्र के लिए आवाज उठाने बाले कई निर्दोष लोगों की हत्या की थी । अपराधों के उस राजा और उनके शासन को माफी माँगनी चाहिए न की मुझे ।” प्रजातन्त्र के लिए लडने बाले दुर्गानन्द झा सहित पकडे गये अरबिन्द कुमार ठाकुर और दलसिंह लामा को भी मृत्यु दण्ड की सजा मिली थी । मगर अरबिन्द और दलसिंह के उपर का फैसला बदलकर जन्मकैद कर दी गयी । मगर दुर्गानन्द झा ने अपना हिम्मत खोया नहीं । राजा से आँख में आँख मिलाकर मृत्यु दण्ड को हँसते हँसते स्वीकार किया और देश, जनता एवं प्रजातन्त्र के नाम पर अपनी शहादत दी ।
सन् १९९० में नेपाल में पंचायती व्यवस्था की खात्मा और प्रजातन्त्र की पूनर्बहाली पश्चात् सन् १९९३ में राजा महेन्द्र के स्थान पर प्रजातान्त्रिक आन्दोलन का प्रथम शहीद दुर्गानन्द झा की मूर्ति स्थापना करने की जब बात उठी तो तत्कालिन राजा बीरेन्द्र सहित नेपाली काँग्रेस लगायत सारे प्रजातान्त्रिक पार्टियों ने इंकार कर दिया । आजतक उन्हें सम्मान देना नेपाली राज आवश्यक नहीं समझता है ।
अनेक आन्दोलनों से लेकर अपराधिक घटनों में मारे गये लोगों तक को शहीद का दर्जा और सम्मान मिला । लेकिन प्रजातन्त्र के लिए शहादत देने बाले प्रथम शहीद दुर्गानन्द झा लगायत मधेश आन्दोलनों में अपनी कुर्बानी देने बाले मधेशी शहीदों का न तो नेपाली राज्य द्वारा सम्मान दी जाती है, न मधेशी राजनीतिक नेतृत्वों द्वारा ही । किसी भी मन्त्रालय, विभाग, सरकारी तथा गैर–सरकारी कार्यालय या संस्थानों में मधेशी शहीदों का एक तस्वीर तक टाँगने की फूर्सद और आवश्यकता न सरकार समझती है, न मधेशी मन्त्री और अधिकारी । वे यह जानकर नहीं लगाते कि उनके मालिक कहीं नाराज न हो जाये ।
प्रजातन्त्र के लिए बलिदानी दुर्गानन्द ने दी, मगर ऐशो आराम और शान शौकत की मस्ती खसानन्द की बन गयी । खसों के तलबे तथा हुकूमतों को ही अपना मन्दिर समझने बाले मधेशी राजनीतिज्ञ दुर्गानन्द झा तथा बाँकी शहीदों के अनुयायी बनना नीचता समझता है । यही कारण है कि शहीद दिवस के अवसर पर माघ ५ गते (२०७३) के दिन लहान में श्रद्धाञ्जली सभा में उमरे लाखों की भीड को देखकर मधेशी मोर्चा अपने आदरणीय मधेश के प्रधानमन्त्री और खसभैयों से विलौना करने चले गये ये कहते हुए कि हमें सि.के से बचाओ । नहीं तो हम तो गये सनम, तेरी भी बारी है मधेश में अब खत्म ।
अब देखना यह है कि मधेशी मोर्चा को खस भैया लोग कितना बचा पाता है और धम्की पर धम्की देने बाले नेपाली आयाम संसद से सडक तक क्या करती है । मधेशी हर सितम को सहने को तैयार है । साथ ही सारे विभेद और गुलामी को भी छोडने को तैयार है ।
शहीद दुर्गानन्द झा के प्रति श्रद्धापूर्ण हार्दिक श्रद्धाञ्जली… ।



About Author

यह भी पढें   पुल से छलांग लगाने वाले १७ में से एक युवक लापता
आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: