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सरकार देश को युद्ध की ओर धकेलने में जुटी है : अनिल झा

अनिल झा, नेपाल सद्भावना पार्टी के अध्यक्ष हैं



मधेश आंदोलन का जो आग्रह है, सरकार व कथित बड़ी पार्टियां उसे शीघ्रातिशीघ्र पूरी करे । जब तक यह पूरी नहीं होगी, तब तक देश में राजनीतिक स्थिरता, शांति और विकास संभव नहीं है । स्व.गजेन्द्र बाबू कहा करते थे —‘जब तक शोषित इनसान रहेगा, धरती पर तूफान रहेगा ।’

सतारुढ़ दल के शीर्ष नेताओं ने घनीभूत रूप में संविधान संशोधन सम्बन्धित बातें भी की थीं । लेकिन धीरे–धीरे संशोधन सम्बन्धित मसलों को हल्का या डाइल्यूट किया जा रहा है । हमारे वोट से प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचंड जी ने सप्तरी में ५ मधेशी सपूतों को मरबाया, जबकि एमाले को प्रोटेक्ट किया । फिलहाल संविधान संशोधन की बात को धीरे–धीरे खटाई में डालते चुनाव सम्बंधित बात को प्रमुखता से उठायी जा रहीे हैं ।

अनिल झा, काठमांडू , २६ मार्च | सन् २०१६, जनवरी के अंतिम सप्ताह में मधेश आंदोलन स्थगन हो जाने के बाद तकरीबन १४ महीने की अवधि में मधेश ने यह अपेक्षा रखी थी कि सरकार मधेशियों की जायज मांगों को लेकर संविधान संशोधन करेगी । सतारुढ़ दल के शीर्ष नेताओं ने घनीभूत रूप में संविधान संशोधन सम्बन्धित बातें भी की थीं । लेकिन धीरे–धीरे संशोधन सम्बन्धित मसलों को हल्का या डाइल्यूट किया जा रहा है । हमारे वोट से प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचंड जी ने सप्तरी में ५ मधेशी सपूतों को मरबाया, जबकि एमाले को प्रोटेक्ट किया । फिलहाल संविधान संशोधन की बात को धीरे–धीरे खटाई में डालते चुनाव सम्बंधित बात को प्रमुखता से उठायी जा रहीे हैं । एक ओर मतदान बैलेट छपबाया जा रहा है, तो दूसरी झूठ–मूठ वार्गेनिंग चल रहा है । शायद वे संविधान को संशोधन करना नहीं चाहतें हैं । वे चाहतें है कि देश को किसी भी तरह से चुनाव में धकेल दिया जाए, जिससे मधेशवादी की राजनीति सदा के लिए समाप्त हो जाए । ये लोग परेशानी में पड़ जाए और बाध्य होकर चुनाव में जाना पडे । मधेश की राजनीति की जो ताकत है वह फिर से एक बार बैलेट के जरिये यह प्रमाणित हो जाए कि इनके पास कुछ भी शक्ति नहीं है । इसी षड़यन्त्र में राज्य व कथित बडे दल लगे हुए हैं । इसके साथ ही जाने–अनजाने में यहां के और भी कई सहयोगी इस षड़यन्त्र में सहभागी होते जा रहे हैं । लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि जब देश में एक समुदाय विशेष को दरकिनार होना पडेगा या कर दिया जाएगा, तो वैसी स्थिति देश के लिए बहुत ही खतरनाक सिद्ध हो सकती है । मैं देख रहा हूँ कि सरकार व कथित बडे दल देश को युद्ध की ओर धकेलने में जुटे हुए हैं, जो देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण व खतरनाक विषय है ।
जहां तक सवाल चुनाव का है तो, मेरे ख्याल से सरकार अगर चाहेगी तो चुनाव करवा लेगी, चाहे एक बार में हो या सौ बार में हो । लेकिन सवाल यह है कि लोग कितने मरेंगे, कितने जेल जाएंगे, कितने विकलांग होंगे । चुनाव में कितने लोग मतदान करने जाएंगे, मतदान में कितनी बैधता होगी, सेना, पुलिस वोट डालेगी कि जनता वोट डालेगी । ये बातें विदित नहीं हैं । इसी प्रकार चुनाव का जो साइड इफेक्टस होगा, वह कितना हैवी होगा, देश झेल पाएगी कि नहीं, ये बाद की बात है । लेकिन मैं मानता हूँ कि अगर कोई अपने को रष्ट्रवादी मानता है तथा देश के प्रति स्नेह, सम्मान, अखंडता व अक्षुण्णता रखने की बात करना चाहता है, तो उन्हें मधेशवादी दलों को, मधेशी जनता को व मधेशवादी विद्यार्थियों को छोड़कर नहीं जाना चाहिए था ।
अब रहा सवाल हमारी भागीदारी की, तो सरकार द्वारा की गयी क्रिया के ऊपर हम अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे, अपनी रणनीति व नीति बनाएंगे, अपना कार्यक्रम बनाएंगे और यहां तक कि हम अपने हिसाब से चलेंगे । अगर लगेगा कि चुनाव में भाग लेना चाहिए, तो नोमिनेशन करेंगे । लगेगा चुनाव को रोकना पडे, तो रोकने के प्रयास करेंगे । रोक नहीं सकेंगे, तो नहीं होने देंगे । समग्रतः कहा जा सकता है कि प्रतिद्वन्द्वी को या शत्रु को देखकर ही रणनीतियां बनाई जाएंगी ।
अंत में मैं बल देकर कहना चाहता हूँ कि मधेश केन्द्रित दलों की जो मांगें हैं, मधेश आंदोलन का जो आग्रह है, सरकार व कथित बड़ी पार्टियां उसे शीघ्रातिशीघ्र पूरी करे । जब तक यह पूरी नहीं होगी, तब तक देश में राजनीतिक स्थिरता, शांति और विकास संभव नहीं है । स्व.गजेन्द्र बाबू कहा करते थे —‘जब तक शोषित इनसान रहेगा, धरती पर तूफान रहेगा ।’

(अनिल झा, नेपाल सद्भावना पार्टी के अध्यक्ष हैं ।)



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