Thu. Jan 16th, 2025

लड़की को आजादी है पर बहु को नही, IIT से पीएचडी कर रही मंजुला फाँसी पर मिली

डॉ शिल्पा जैन सुराणा | मंजुला देवक, २८ साल की एक प्रतिभावान लड़की, पढाई में अव्वल, इंजीनियर की टॉपर, आईआईटी जैसे नामी संस्थान से पीएचडी कर रही थी। २९ मई को अपने हॉस्टल के कमरे में फाँसी के फंदे पर झूलती मिली। उसको जानने वाला हर कोई सन्न था कि ये लड़की खुदखुशी कैसे कर सकती है ? 
पर हकीकत ये है कि मंजुला इकलौती लड़की नही है जिसने खुदखुशी की, ऐसी कई मंजुला है, जिनकी जान हमारा समाज ले लेता है उनके सपनो की बलि लेकर। मंजुला के भी कई सपने थे वो भी अपना नाम बनाना चाहती थी अपनी एक पहचान बनाना चाहती थी, उसके शोध पत्र कई राष्ट्रीय   और अंतराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे। मंजुला की शादी २४  वर्ष की उम्र में ही हो गयी, यही से शुरू हुआ एक लड़की के सपनो और समाज की प्रथाओं की कशमकश।
हमारे समाज में एक लड़की को तो फिर भी आजादी है, पर एक बहु को नही । मंजुला के ससुराल वाले और पति नही चाहते थे कि मंजुला अपनी पढाई जारी रखे, वे चाहते थे कि मंजुला सिर्फ एक बीवी और बहू के फ़र्ज़ निभाए । मंजुला कश्मकश में थी, अपने सपनो को टूटता हुआ देखना उसके लिए आसान नही था, उसने कोशिश की, पर नाकाम रही, और इसका अंत उसकी मौत के साथ हुआ |



मंजुला चली गयी, पर साथ में सवाल छोड़ गयी, क्यों हमारा समाज अपना दोगला रवैया नही छोड़ता, क्या एक लड़की की प्रतिभा उसकी शादी के साथ ही खत्म ही जाती है, लोग कहेंगे कि मंजुला को अपने पति को तलाक दे देना चाहिए था, पर शायद ये कोई नही जानता कि कोई भी महिला तलाकशुदा होने का ठप्पा ले कर नही जीना चाहती, उस पर भी वो ये सोच रही थी कि अगर उसने ये कदम उठाया तो उसके परिवार की इज्जत का क्या होगा। कहना आसान है,पर सहना मुश्किल है।
हमारा समाज गर्व करता है अपनी संस्कृति पर अपनी सभ्यता पर, पर भूल जाता है कि उसके नियम कायदों की बलि पर हमेशा एक स्त्री को ही क्यों चढ़ना पड़ता है, क्यों हमेशा एक स्त्री से ही ये आशा की जाती है कि वो अपने सपनो को भूल जाये, क्यों हमेशा उसे ये एहसास दिलाया जाता है कि सबकी खुश रखना ही उसका कर्तव्य है, उसके अपने सपनो का कोई मूल्य नही।




अपने ख्वाबो की मरता हुआ देखना सबसे बड़ा दर्द है, ये दर्द न जाने कितनी लड़किया झेलती है, अंदर ही अंदर घुटती है, कुछ कहना चाहती है पर शायद ये समाज का भय उनको कुछ कहने नही देता, और वो चुप हो जाती है। ये चुप्पी सबसे खतरनाक है।
इसी चुप्पी का परिणाम मंजुला का दुनिया छोड़ के चले जाना है। जागो और बदलो अपनी रूढ़िवादी सोच को, किसी के सपनो को उससे मत छीनो, क्या हुआ वो एक लड़की है, एक बहु है, उसे भी हक़ है अपने सपनो को जीने का, अपनी पहचान बनाने का, उम्मीद है एक दिन वो भी आएगा जब शायद किसी मंजुला को अपने सपनो को फंदे पर नही चढ़ाना पड़ेगा।
डॉ शिल्पा जैन सुराणा
PhD M.Phil M.B.A
वरंगल
तेलंगाना

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