मधेश के सारे मुद्दे शहीदों की शहादत के व्यापार पर सिमट गई : श्वेता दीप्ति
श्वेता दीप्ति, काठमांडू | अन्ततः राजपा नेपाल औपचारिक तौर पर पंजीकृत पार्टी बन गई । और इसके साथ ही तीसरे चरण के चुनाव में भाग लेने की सम्भावना भी बलवती हो चुकी है । लोकतंत्र के चुनावी पर्व में शामिल होने का हक सभी को है, इन्हें भी है । परन्तु मधेश के हक और अधिकार के लिए इन्होंने पहले और दूसरे चरण के चुनाव का बहिष्कार किया और मधेश की जनता के चहेते भी बने । परन्तु वर्तमान परिवेश में लग रहा है कि इनकी राजनीतिक रणनीति बदल रही है । क्योंकि एक एक कर मधेश से सम्बन्धित सभी महत्तवपूर्ण मुद्दे पीछे छूटते जा रहे हैं । आज जिस शर्त पर चुनाव में हिस्सा लेने के लिए राजपा तैयार है अगर यही निर्णय लेना था तो इन्हें पहले ले लेना चाहिए था कम से कम पहले के चुनाव में हिस्सा लेने के अवसर से तो ये वंचित नहीं होते और जिस तरह ससफो ने नाममात्र की सीट हासिल की ये भी कर लेते । परन्तु आज सारे मुद्दे सिमट कर शहीदों की शहादत के व्यापार पर सिमट गई । क्या आन्दोलन शहीद बनाने के लिए हुआ था ? क्या मरने वाले की चाहत सिर्फ यह थी कि वो मरें और शहीद कहलाएँ ? क्या सरकार की ओर से शहीद घोषणा और घायलों का उपचार और क्षतिपूर्ति ही आन्दोलन का उद्देश्य था ? अगर हाँ, तब तो जो निर्णय लिया जा रहा है वह सही है, और अगर नहीं तो इन्हें पुनर्विचार करना होगा ।
हमेशा से यह सुनने में आता रहा कि सरकार तक अपनी बात पहुँचाने के लिए संसद में बने रहना आवश्यक है, बावजूद इसके कोई उपलब्धि सामने नहीं है । अभी की परिस्थितियों में इन्हें समझना होगा कि संसद से अधिक सडक महत्तवपूर्ण है । आपसी मतभेदों को दरकिनार करते हुए एकजुट होकर जनता के साथ और जनता के पास इन्हें जाना होगा । पहाड की हवा नहीं, मधेश की तपिश में तपना होगा । अब तक मधेश की चंद जनता ही जान रही है कि वो विभेद का शिकार हैं अगर इन्हें आवाज मजबूत करनी है तो मधेश की समग्र जनता को सचेत और जागरुक करना होगा । छोड दीजिए माँगने की आदत, जगाइए मधेश की जनता को, एक दिन परिणाम आपके सामने होगा । अगर सदियों से चले आ रहे राजतंत्र को तथाकथित दस वर्षों के जनआन्दोलन ने खत्म किया तो कुछ वर्षों का इंतजार और सही और जिस दिन मधेश की सम्पूर्ण जनता विभेद के सच को समझने लगेगी उस दिन निर्णय स्वतः हो जाएगा । बशर्ते आप समर्थन की राजनीति छोडें और जनता के बीच जायँ । संविधान संशोधन तो क्या संविधान पुनर्लेखन के लिए सरकार तैयार होगी ।
मधेश की माँग को विखण्डनवाद से जोड़कर देश को जिस तरह से दो भागों में मुख्य दलों ने बाँट दिया है, इससे आज उन्हें सुखद अनुभूति हो रही होगी और फिलहाल वो इसी मद में तीसरे चरण के चुनाव को भी जीतने के प्रयास में है । कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर परिणाम उनके पक्ष में होता है क्योंकि जिस मधेश के अधिकार के लिए लड़ाई है वहीं की जनता बिक जाती है । यह सत्य कटु अवश्य है पर पर्दे के पीछे यही खेल जारी है । आज अचानक दो नम्बर प्रदेश का पिछड़ापन इन्हें नजर आने लगा है । परन्तु मधेश की भावनाएँ आज भी इनके लिए महज खेल है जिससे जरुरत होने पर ये खेलते रहना चाहते हैं । इस सच को बताने के लिए मधेश के नेतृत्व को मधेश की धरती पर जाना चाहिए । बंद का आन्दोलन नहीं, जागरुकता जगाने का आन्दोलन कीजिए, चेतना फैलाइए जिस दिन मधेश की समग्र जनता की भावनाओं में सैलाब आएगा उस दिन किनारा भी मिलेगा । सत्ता सुख की राजनीति करनी है तो वर्तमान राह सही है, पर एक नया मधेश देखना है तो चाहे कितना भी वक्त लगे सत्ता से हटकर सोचें, राह जरुर मिलेगी । नया नेपाल की कल्पना मधेश ने भी की थी और नेपाल के राजनीतिक परिवर्तन के हर आन्दोलन में उस समुदाय का साथ दिया जो आज उनकी माँग को आयातीत कह रहे हैं और जिनकी राष्ट्रीयता को सवाल के कटघरे में खड़ा कर रहे हैं । आज नये मधेश की परिकल्पना सामने लानी होगी फिर वह दिन दूर नहीं जिस दिन हर नागरिक जीवित सोच के साथ आगे आएगा और अपने अधिकार को प्राप्त करेगा बस आपके मजबूत मनोबल की आवश्यकता है ।