Thu. Mar 28th, 2024

राजपा ९०% मधेश की जनता की प्रतिनिधित्व नहीं करती : महाजन यादव

महाजन यादव, केन्द्रीय सदस्य (संघीय समाजवादी फोरम नेपाल)

संघीय समाजवादी फोरम नेपाल की ५वीं केन्द्रीय कार्य समिति की बैठक सम्पन्न हो गई है । चुनावी समीक्षा, भावी रणनीति तथा सम–सामयिक राजनीतिक विषयों में बैठक केन्द्रित रही । जब बैठक जारी थी, तो उस समय दो समाचारों ने प्राथमिकता पाई थीं । उनमें से एक था– पार्टी के भीतर रहे पहाडी और मधेशी सदस्यों के बीच चुनावी परिणाम को लेकर विवाद । दूसरा था– पार्टी अध्यक्ष उपेन्द्र यादव राजपा के प्रति आक्रामक रुप में प्रस्तुत होना । कुछ भी हो, हिमालिनी डटकम के लिए लिलानाथ गौतम ने ऐसे ही सम–सामयिक सन्दर्भों को लेकर फोरम नेपाल के केन्द्रीय सदस्य महाजन यादव से बातचीत की । प्रस्तुत है, बातचीत का मुख्य अंश –



० संघीय समाजवादी फोरम नेपाल की ५वीं केन्द्रीय कार्य समिति की बैठक कौन–कौन–से विषयों में केन्द्रित रहा ?
– बैठक मुख्यतः चार मुद्दों में केन्द्रित रहा । उनमें से पहला मुद्दा था– प्रथम और दूसरे चरण में सम्पन्न स्थानीय निर्वाचन की समीक्षा । दूसरा था– असोज २ गते होने वाले तीसरे चरण के निर्वाचन और पार्टी की रणनीति । तीसरा था– विभिन्न पार्टियों से संघीय समाजवादी फोरम नेपाल में प्रवेश करने वाले नेता÷कार्यकर्ता और उनकी जिम्मेदारी का अनुमोदन करना । और चौथा था– समसामयिक राजनीतिक मुद्दा । इन सभी विषयों में पार्टी के भीतर गम्भीर रुप से विमर्श किया गया ।
० प्रथम चरण के निर्वाचन में फोरम नेपाल ने कहीं भी जीत हासिल नहीं की । इसके बारे में क्या ख्याल है आपका ?
– बैठक का मानना है कि इसके पीछे मुख्यतः दो कारण हैं । पहला कारण यह है कि उम्मेदवारी पंजीकरण के सिर्फ दो दिन पहले संघीय समाजवादी फोरम नेपाल ने चुनाव में शामिल होने का निर्णय लिया । दो दिन की अवधि में हिमाल तथा पहाड़ जैसे विकट और दुर्गम जिलों में उपर्युक्त उम्मेदवार चयन करना नामुमकिन था । चुनावी प्रचार–प्रसार के लिए भी हमारे पास समय नहीं था । दूसरा कारण है– कांग्रेस–एमाले द्वारा किया गया मधेश विरोधी गलत प्रचार । उन लोगों ने संघीय समाजवादी फोरम नेपाल और उपेन्द्र यादव को राष्ट्रीयता विरोधी करार देते हुए विखण्डनकारी बता कर स्थानीय लोगों को भड़काया । पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को मधेशी बताते हुए वोट न देने को कहा । कांग्रेस–एमाले के नश्लवादी चरित्र के कारण ही स्थानीय जनता भ्रमित हो गईं । नश्लवादियों का कहना था कि संघीय समाजवादी फोरम नेपाल को वोट देने वाले सभी मतदाताओं को पहाड छोड़ कर मधेश में जाना होगा । ऐसे हीं विविध कारणों से प्रथम चरण के निर्वाचन में अपेक्षाकृत नतिजा हासिल नहीं हो सका । लेकिन दूसरे चरण के निर्वाचन में कुछ सफलता अवश्य मिली है । चुनावी नतीजा के अनुसार संघीय समाजवादी फोरम नेपाल समस्त देश में चौथी राजनीतिक शक्ति के रुप में स्थापित हुई है ।
फोरम नेपाल का मानना है– मधेश के मुद्दों को लेकर जितनी भी राजनीतिक पाटियां सक्रिय हैं, उन सभी के बीच चुनावी सहकार होना चाहिए । अगर फोरम नेपाल, राजपा नेपाल, लोकतान्त्रिक फोरम लगायत मधेश केन्द्रित राजनीतिक शक्तियों के बीच चुनावी तालमेल होता, तो मधेश विरोधी कांग्रेस–एमाले वहां चुनाव नहीं जीत पाती । दुःख की बात यह है कि ऐसा नहीं हो पाया । इसी कारण दूसरे चरण के चुनाव में भी तराई÷मधेश के अधिकांश इलाकों में कांग्रेस–एमाले के प्रतिनिधि ही जीते । अगर राजपा चुनाव में शामिल हो गए होते, तो तराई–मधेश की अधिकांश जनता कांग्रेस–एमाले को वोट नहीं देती ।


० तीसरे चरण के चुनाव के बारे में आप क्या कहते हैं ?
– तीसरे चरण के चुनाव कराने के लिए राजपा नेपाल को भी सहमति में लाना होगा । अगर विगत की तरह ही राजपा नेपाल तीसरे चरण में भी शामिल नहीं होती है, तो यह सोचनीय होगा । क्योंकि राजपा के कुछ केन्द्रीय नेता तो चुनाव बहिष्कार करेंगे, लेकिन स्थानीय नेता÷कार्यकर्ताओं चुनाव में शामिल हो जाएंगे । राजपा के ही कार्यकर्ता स्वतन्त्र उम्मेदवारी भी देंगे । दूसरे चरण के निर्वाचन से साफ हो गया है । ऐसी अवस्था में अगर राजपा चुनाव में शामिल नहीं होता है, तो पार्टीगत रुप में दीर्घकालीन क्षति हो सकती है । जहां तक फोरम नेपाल का सवाल है, इस सम्बन्ध में हम लोग रणनीति बना रहे हैं ।
० राजपा का मानना है कि चुनाव से पहले संविधान संशोधन करना होगा । लेकिन संविधान संशोधन होगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है । ऐसी अवस्था आप क्या कहना चाहते हैं ?
– संविधान संशोधन की मांगें सिर्फ राजपा की ही नहीं है, हमारी भी है । लेकिन एक सच को मानना होगा– संविधान संशोधन के लिए संसद में दो–तिहाई सांसदों की सहमति आवश्यक है । इसके लिए नेकपा एमाले का समर्थन अपरिहार्य है । लेकिन एमाले अभी तक संविधान संशोधन के लिए तैयार नहीं है । नकली राष्ट्रवाद के नाम में एमाले मधेश विरोधी नीति अख्तियार कर रही है । कांग्रेस–माओवादी भी अप्रत्यक्ष रुप में एमाले को ही सहयोग कर रही है । सच में कहा जाए तो संविधान संशोधन के लिए तीनों दल ईमानदार नहीं हैं । वे लोग चाहते हैं कि किसी भी तरह मधेश के मुद्दे और मधेशवादी पार्टियां कमजोर हो जाए । ऐसी ही रणनीति बनाने में तीनों पार्टियां लगी हैं और ‘तिकड़मबाजी’ का खेल, खेल रहे हैं । ऐसी अवस्था में मधेशवादी पार्टियों के साथ ऐसा कोई भी जादू का छड़ी नहीं है, ता कि वे लोग संविधान संशोधन कर सके । इसीलिए हम ने कहा है कि चुनाव का सदुपयोग होना चाहिए । अगर नहीं किया गया तो मधेश विरोधी कांग्रेस–एमाले–माओवादी ही वहाँ चुनाव जीत जाएगी । अगर उन्हें रोकना है तो हमें भी चुनाव में शामिल होना चाहिए । लेकिन दुःख की बात, राजपा के कुछ नेता फोरम नेपाल को पराजित करने के अभियान में लगे हुए हैं । खुद चुनाव बहिष्कार करते हैं, लेकिन मधेश के मुद्दे को ही लेकर चलने वाली दूसरी पार्टी को हराना चाहते हैं, यह कैसी रणनीति है ? ऐसा करने से मधेश का मुद्दा बिसर्जन हो सकता है, मधेशी जनता को धोखा हो सकता है । हम चाहते है कि राजपा ऐसी घिनौनी हरकत न करें । दूसरी बात, चुनाव भी लड़ाई का एक मोर्चा है । चुनाव में शामिल होकर स्थानीय निकाय जब हमारे कब्जा में आ जाएगा, तब ही हम शक्तिशाली बन सकते हैं । उसके बाद ही मधेश के मुद्दों को आगे बढ़ा सकते हैं । एक बात मैं और कहना चाहूंगा कि मधेश के सभी मुद्दे फिलहाल सम्बोधन होने वाला भी नहीं है । इसके लिए दीर्घकालीन संघर्ष जारी रखना होगा ।
० राजपा नेपाल और संघीय समाजवादी नेपाल के बीच एकता होने की सम्भावना है ?
– हम सभी को एक सच स्वीकार करना होगा कि संघीय समाजवादी पार्टी हिमाल, पहाड़ तथा तराई÷मधेश में बसने वाले और उत्पीडन में रहे सभी जाति–समुदायों के अधिकार के लिए वकालत करती आ रही है । जबकि राजपा नेपाल तराई÷मधेश की ९० प्रतिशत जनता की भी प्रतिनिधित्व नहीं करती है । राजपा के नेता गण दक्षिणपन्थी नजर आते हैं । दक्षिणी सीमा क्षेत्र के बासियों के प्रति उन लोगों की कुछ अलग ही धारणा है । मधेश के आदिवासी जनजाति, थारु अपनी मिट्टी के प्रति विशेष श्रद्धा रखते हैं । इसीलिए वे लोग यहीं लड़ कर अपना अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं । हम भी उनके साथ हैं । इस तरह देखा जाए, तो राजपा और संघीय समाजवादी फोरम नेपाल के बीच कुछ नीतिगत मत–भिन्नता भी है ।
दूसरी बात, कुछ महीने पहले तक संयुक्त मधेशी मोर्चा के माध्यम से मधेशवादी पार्टियों के सहकार हुआ था । लेकिन अचानक राजपा ने मोर्चा के संयोजक उपेन्द्र यादव को षड़यन्त्रपूर्वक हटाने की घोषणा की । यह राजपा की बहुत बड़ी भूल थी । जबकि उपेन्द्र यादव ने मधेश–मुद्दा, मधेशी मोर्चा और मधेशवादी दलों को विरोध नहीं किया था । हम लोग मधेश के अधिकार के प्रति अभी भी प्रतिबद्ध हैं । लेकिन ६ दल मिलकर उपेन्द्र यादव को मोर्चा से हटा दिया । क्या नियत है, समझ में नहीं आ रहा है । उनका आरोप है कि प्रथम चरण के निर्वाचन में उपेन्द्र यादव क्यों शामिल हुए ? राजपा को समझना चाहिए कि प्रथम चरण में जहाँ–जहाँ निर्वाचन हुआ, उन क्षेत्रों में हमारी पार्टी का संगठन बना हुआ है । जहाँ पार्टी क्रियाशील है, वहां चुनाव में शामिल होना हमारा फर्ज बनता है ।
० दूसरे चरण में भी तो राजपा शामिल नहीं हुए थे ?
– दूसरे चरण के चुनाव में राजपा शामिल होने लगा था । लेकिन निर्वाचन आयोग में दल दर्ता और चुनाव चिन्ह नहीं मिलने की वजह से चुनाव में शामिल नहीं हुई । सरकार ने संविधान संशोधन के लिए जो प्रतिबद्धता व्यक्त की थी, वह भी पूरी नहीं हो पायी । इसी वजह से राजपा चुनाव में शामिल नहीं हो सकी ।
जहां तक पार्टी एकता सम्बन्धी प्रसंग है, तत्काल यह सम्भव नहीं है । राजपा के नेता भी एकता नहीं चाहते हैं । मधेशी जनता भी चाहती हैं कि तराई÷मधेश में राजपा और संघीय समाजवादी फोरम दो अलग–अलग शक्तिशाली पार्टियों के रुप में रहे । दोनों दलों के बीच सद्भाव कायम रहे, एक ही रथ के दो पहिये बने । दूसरी बात, पार्टी एकीकरण हो जाने पर व्यवस्थापन में भी समस्या उत्पन्न हो सकती है, जो अभी हम लोग राजपा के अन्दर देख रहे हैं ।



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