Thu. Apr 18th, 2024

मधेश–थरुहट आन्दोलन- आयोग का प्रतिवेदन सार्वजनिक करो

सर्वोच्च अदालत के पूर्व न्यायधीश माननीय गिरीश चन्द्र लाल जी के नेतृत्व मे प्रधानमन्त्री को अपना अनुसन्धानात्मक प्रतिवेदन जमा किया जा चुका है । ७०९ पृष्ठ के प्रतिवेदन मे ३२६४ उजुरी दर्ता किया गया है । इसी सन्दर्भ मे प्रधानमन्त्री को समाजिक संजाल पर उक्त प्रतिवेदन सार्वजनिक करने के लिए दिनरात प्रश्न किया जा रहा है । परंतु आज तक प्रधानमंत्री की तरफ से कोई जवाब सार्वजनिक नहीं किया गया है ।




पहले और दूसरे मधेश आन्दोलन के दौरान दर्जनों मधेशियों की हत्या की गयी थी नेपाल सरकार के द्वारा । सैकड़ों की संख्या में मधेशी जख्मी हुए । या ये कहें कि नेपाल सरकार की क्रुरता का शिकार हुई थी मधेशी जनता । उस वक्त मधेश आन्दोलन में हुए मानव अधिकार उल्लंघन घटनाओं का राष्ट्रीय स्तर पर न तो सही ढंग से अनुगमन किया गया नही तो दस्तावेजीकरण ही किया गया । यद्यपि यूएन से संचालित “ओएचसिएचआर” ने मधेश आन्दोलन से सम्बन्धित घटनाओं का अनुगमन और प्रतिवेदन भी सार्वजनिक किया था । परंतु“ओएचसिएचआर”के द्वारा किए गए सिफारिस को नेपाल सरकार द्वारा लागु नही किया गया ।
बिसं २०७२ मे हुए महीनाें के मधेश आन्दोलन में एकबार फिर नेपाल सरकार द्वारा मधेशी और थारुओ पर बर्बर दमन हुआ । सर और सीने पर गोली दागी गयी । सैकड़ाें मधेशी एकबार फिर से लहुलुहान हुए । आन्दोलन के दौरान दण्डहीनता ने केवल चरमसीमा ही पार नहीं किया बल्कि थारुओं का आन्दोलन उत्कर्ष पर जिस वक्त पहँुचा था उसी दौरान पश्चिम मधेश के टिकापुर में नेपाल प्रहरी के एसपी आदि की मौत हुई । यह अति निन्दनीय घटना है नेपाल के इतिहास में ।
परंतु पिछले समय से पाठ सीख चुके मधेशवादी दलो नें अपनी प्रमुख मांग में मधेश आन्दोलन के दौरान हुई घटनाओ का उच्च स्तरीय जाँच की मांग रखी थी नेपाल सरकार के समक्ष । उसी तहत सरकार और तत्कालीन मधेशी मोर्चा के बीच हुए तीन बुदे तमसुक तहत एक छानबीन आयोग गठन करने की सहमति हुई और २०७२ साल श्रावण से ले कर तराई, मधेश और थरुहट आदि क्षेत्रों में विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा आन्दोलन के क्रम में हुई हिंसा, हत्या, आगजनी, तोड़फोड़ आदि घटनाओं के सत्य तथ्यों की जाँच कर प्रतिवेदन पेश करने के लिए आयोग गठन किया था । सर्वोच्च अदालत के पूर्व न्यायधीश माननीय गिरीश चन्द्र लाल जी के नेतृत्व मे प्रधानमन्त्री को अपना अनुसन्धानात्मक प्रतिवेदन जमा किया जा चुका है । ७०९ पृष्ठ के प्रतिवेदन मे ३२६४ उजुरी दर्ता किया गया है । इसी सन्दर्भ मे प्रधानमन्त्री को समाजिक संजाल पर उक्त प्रतिवेदन सार्वजनिक करने के लिए दिनरात प्रश्न किया जा रहा है । परंतु आज तक प्रधानमंत्री की तरफ से कोई जवाब सार्वजनिक नहीं किया गया है ।
हालाँकि नेपाल में बात–बात पर आयोग गठन करने की बात अत्यन्त ही मामुली है । परंतु उसका कोई फायदा नहीं होता और न ही इसे लागु किया जाता है और बात जब मधेश और मधेशियाें से सम्बन्धित हो तो सरकार की नकारात्मकता देखने लायक ही होती है । प्रजातन्त्र की लड़ाइ में राज्य द्वारा कई बार अपने ही नागरिकाें पर दमन कर आयोग बनाकर प्रतिवेदन को दफनाने का नजीर स्थापित है । मल्लिक आयोग हो या फिर रायमाझी आयोग किसी को कुछ पता नही है इन आयोग के प्रतिवेदन के बारे में । परंतु पहले के नेपाली समाज और अब के समाज में बहुत अन्तर है । मानव अधिकार के बारे में कल तक जो नागरिक अनभिज्ञ थे वो अब मानव आधिकार के बारे मे बहुत ही संवेदनशील हो चुके हैं । और मधेश में जिस तरह खून की नदी बहाया है नेपाली राज्य ने इसने तो मधेशीयों को सिर्फ प्रताडि़त नहीं किया है बल्कि मानव अधिकार उल्लंघन के बिषय को ले कर सजग कर दिया है । अन्तराष्ट्रीय समुदाय को भी अनुभव करवा दिया है कि मधेशी का कैसे कत्लेआम किया है काठमाण्डौ ने । जिस को बया करता है, बार–बार अन्तराष्ट्रीय समुदाय द्वारा नेपाल सरकार को बार–बार प्रश्न करना या कहें तो ध्यानाकर्षन करवाना । कुछ ही दिन पहले संयुक्त राष्ट्र संघीय मानव अधिकारसम्बन्धी ‘र्यापोर्टर’ ने मधेश आन्दोलन के दौरान हुई घटनाआें की जाँच हुई या नही कह कर अपनी चिन्ता प्रकट की थी । लाल आयोग के प्रगति विवरण भी मांगा था । पिछले महीने अमेरिका स्थित ह्युमन राइट्स वाच भी विज्ञप्ति जारी कर आयोग के प्रतिवेदन के बारे मे नेपाल सरकार से अपडेट माँग चुकी है ।
खुशी की बात यह है कि इसबार सिर्फ अन्तराष्ट्रीय मानव अधिकारवादी संस्था ही नहीं राष्ट्रीय स्तर मे सक्रिय रहे संस्थाओ द्वारा भी लाल आयोग को सार्वजनिक करने का दबाब दिया जा रहा है । इसी सन्दर्भ मे लेखक से बिशेष संबाद के दौरान इनसेक के अध्यक्ष सुबोध राज प्याकुरेल ने कहा कि,‘ नेपाल मानव अधिकार से सम्बन्धित विभिन्न कानुनों का पक्षधर राष्ट्र है । लाल आयोग ने पीडि़तों के परिपुरण के बारे मे भी सिफारिश किया होगा, मै विश्वास करता हुँ । इस आयोग के प्रतिवेदन को अविलंब सार्वजनिक कर लागु भी करना चाहिए सरकार को’ । इसी तरह तराई मानव अधिकार रक्षक संजाल (थर्ड एलायन्स) ने भी विज्ञप्ति जारी कर आयोग को प्रतिवेदन यथा सम्भव सार्वजनिक करने के लिए नेपाल सरकार को कहा है ।
इस आयोग में दर्ता हुए ३२६४ याचिका यह साबित करती है कि हजारों नेपाली नागरिक प्रभावित हुए हैं आन्दोलन के दौरान । नेपाल में दण्डहीनता का आयतन बढ़ा है । बिसं २०४६ और २०६४ पश्चात गठित मल्लिक और रायमाझी आयोग के प्रतिवेदन को अगर लागु किया गया होता तो दण्डहीनता का ग्राफ इतना नही बढ़ा होता । लाल आयोग प्रतिवेदन सार्वजनिक कर लागु करने का कुछ कारण इस तरह है, पहला, इससे आधिकारिक रूप में स्थापित होगा कि मधेश आन्दोलन के दौरान विभिन्न दृश्यो में मानव अधिकार का चरम उल्लंघन हुआ था । दूसरा, टिकापुर घटना की पहेली को सुलझाई जा सकती है, आमजन में । तीसरा, नेपाल मानव अधिकार जैसे गंभीर विषय पर संवेदनशील है । चौथा, नेपाल के संविधान तहत पाए गए सूचना के हक को प्रत्याभूत कर पाएगा । पाँचवा, राज्य और नागरिक के बीच बढेÞ फासलाें में कमी आ सकती है अगर आयोग का प्रतिवेदन लागु होता है । छठा, अगर सरकार इस प्रतिवेदन को अन्तर्आत्मा से लागु करती है तो पीड़क को को सजा दे पाती है और आन्दोलन के कारक तत्वो को निर्मुल कर पाता है इससे देश शान्ति के पथ पर अग्रसर हो सकने की सम्भावना में बढ़ोतरी होगी ।
देश अभी राजनीतिक परिवर्तन के गलियाराें में भटक रही है । परंतु छानबीन आयोग गठन करने की आवाज उठाने वाले मधेशवादी दल और मधेशी जनता को नही भटकना चाहिए । कुछ समय के लिए अपनी सारी उर्जा लाल आयोग लागु करवाने में लगानी चाहिए । मधेश के हरेक कसबो में इस आयोग के प्रतिवेदन को सार्वजनिक करवाने के लिए मुहिम चलाना होगा । काठमाण्डौ में विराजमान अहंकारी एवं असंवेदनशील सत्ता के खिलाडि़यों को सबक सिखाना होगा और साथ में नेपाल के मानव अधिकारवादी, नागरिक समाज और पत्रकारो को भी खुल कर बोलना होगा ।



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