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जानिए कब और कैसे मनाए जन्‍माष्‍टमी : आचार्य राधाकान्त शास्त्री

आचार्य राधाकान्त शास्त्री | हर बार जन्‍माष्‍टमी दो दिन पड़ती है. ब्राह्मणों , गृहस्थों के घरों और मंदिरों में 2 सितंबर को जन्‍माष्‍टमी मनाई जाएगी, कारण की ये लोग भगवान के आगमन के पूर्व ही भगवान को आने के लिए व्रत करते हैं ,जबकि वैष्‍णव सम्‍प्रदाय के लोग भगवान के जन्म हो जाने पर जन्मोत्सव मानते हैं, अतः वैष्णव मत मानने वाले लोग 3 सितंबर को जन्‍माष्‍टमी का त्‍योहार मनाएंगे।
भगवान श्रीकृष्‍ण को माखन अति प्रिय है,मान्‍यता है कि‍ भादो माह के मध्य रात्रि में अष्टमी तिथि और  रोहिणी नक्षत्र संयोग पर श्री कृष्ण का प्राकाट्य हुआ था । अर्थात  उसी समय  श्रीकृष्‍ण का जन्‍म हुआ था । तब से उसी मुहूर्त में प्रतिवर्ष, श्री कृष्ण का जन्म व्रत मनाया जाता है।
दशावतार में श्रीकृष्‍ण को भगवान विष्‍णु का आठवां अवतार माना जाता है । हम सब के प्‍यारे नटखट नंदलाल, राधा के श्‍याम और भक्‍तों के भगवान श्रीकृष्‍ण  के जन्‍मदिन 2 सितंबर को इस बार श्रीकृष्‍ण की 5245वीं जयंती है। मान्‍यता है कि भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्‍म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को हुआ था । हालांकि 3 सितंबर को अष्टमी तिथि दिन में 3:29 तक और रोहिणी नक्षत्र सायं 5:34 तक ही है अतः इस बार कृष्‍ण का जन्म 2 सितंबर रविवार को ही होगा, और गृहस्थ सम्प्रदाय के लोग भगवान को आने के लिए व्रत करेंगे जबकि वैष्णव सम्प्रदाय के लोग भगवान के आ जाने के बाद 3 सितंबर को व्रत करेंगे । जन्माष्टमी की तारीख को लेकर लोगों में काफी असमंजस हैं किन्तु ध्यान रहे कि हर बार जन्‍माष्‍टमी दो दिन पड़ती है क्‍योंकि यह त्‍योहार 2 सितंबर और 3 सितंबर दोनों ही दिन मनाया जाएगा ।
वैष्‍णव कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी 3 सितंबर को है। अब सवाल उठता है कि व्रत किस दिन रखें ? जवाब है 2 सितंबर यानी कि पहले दिन वाली जन्माष्टमी मंदिरों गृहस्थों और ब्राह्मणों के घर पर मनाई जाएगी, जबकि 3 सितंबर यानी कि दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग मनाते हैं ।
जन्‍माष्‍टमी का महत्‍व :- श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का पूरे भारत वर्ष ही नही विदेशों में भी विशेष महत्‍व है। यह हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु ने अपने विशेषावतार में श्रीकृष्‍ण के रूप में आठवां अवतार लिया था । देश के सभी राज्यों में अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं, इस दिन क्‍या बच्‍चे क्‍या बूढ़े सभी अपने आराध्‍य के आगमन जन्‍म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्‍ण की महिमा का गुणगान करते हैं। दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं। वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्‍कूलों में श्रीकृष्‍ण लीला का मंचन होता है।
जन्‍माष्‍टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त :-
इस बार अष्टमी 2 सितंबर को दिन में 5 बजकर 8 मिनट पर ही लग जा रही है और 3 तारीख की दिन के  3 :29 पर समाप्त हो जाएगी,
जबकि रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 2 सितंबर की रात 6 बजकर 29 मिनट.
रोहिणी नक्षत्र समाप्‍त: 3 सितंबर की शाम5 :34 मिनट.
निशीथ काल पूजन का समय: 2 सितंबर रविवार को रात 11 बजकर 48 मिनट से रात 12 बजकर 48 मिनट तक किया जाएगा । जबकि श्री कृष्ण के जन्म के बाद वैष्‍णव कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी 3 सितंबर को किया जाएगा ।
जो भक्‍त जन्‍माष्‍टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्‍हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए जन्‍माष्‍टमी के दिन सुबह स्‍नान करने के बाद भक्‍त व्रत का संकल्‍प लेते हुए श्री कृष्‍ण के आने के लिए व्रत कर नीशीत काल यानी कि आधी रात को जन्म मान कर पूजा अर्चना करनी होती है ।
जन्‍माष्‍टमी की पूजा विधि
कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के दिन षोडशोपचार पूजा की जाती है, जिसमें 16 चरण शामिल हैं :-
1. ध्‍यान- सबसे पहले भगवान श्री कृष्‍ण की प्रतिमा के आगे उनका ध्‍यान करते हुए मंत्र या नाम मन्त्र से
ॐ श्री कृष्णाय नम:।  ध्‍यानात् ध्‍यानम् समर्पयामि।।
2. आवाह्न- इसके बाद हाथ जोड़कर इस मंत्र से श्रीकृष्‍ण का आवाह्न करें :-
ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्।
स-भूमिं…. या नाम मन्त्र से
आगच्छ श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव।।
ॐ श्री क्लीं कृष्णाय नम:। बंधु-बांधव सहित श्री बालकृष्णम आवाहयामि।।
3. आसन- अब श्रीकृष्‍ण को आसन देते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें :-
ॐ विचित्र रत्न-खचितं दिव्या-स्तरण-सन्युक्तम्।
स्वर्ण-सिन्हासन चारू गृहिश्व भगवन् कृष्ण पूजितः।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आसनम् समर्पयामि।।
4. पाद्य- आसन देने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण के पांव धोने के लिए उन्‍हें पंचपात्र से जल समर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें :-
एतावानस्य … या
ॐ श्री कृष्णाय नम:। पादोयो पाद्यम् समर्पयामि।।
5. अर्घ्‍य- अब श्रीकृष्‍ण को इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए अर्घ्‍य दें :-
ॐ पालनकर्ता नमस्ते-स्तु गृहाण करूणाकरः।।
अर्घ्य च फ़लं संयुक्तं गन्धमाल्या-क्षतैयुतम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। अर्घ्यम् समर्पयामि।।
6. आचमन- अब श्रीकृष्‍ण को आचमन के लिए जल देते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें :-
नम: सत्याय शुद्धाय नित्याय ज्ञान रूपिणे।।
गृहाणाचमनं कृष्ण सर्व लोकैक नायक।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आचमनीयं समर्पयामि।।
7. स्‍नान- अब भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को कटोरे या किसी अन्‍य पात्र में रखकर स्‍नान कराएं. सबसे पहले पानी से स्‍नान कराएं और उसके बाद दूध, दही, मक्‍खन, घी और शहद से स्‍नान कराएं. अंत में साफ पानी से एक बार और स्‍नान कराएं। स्‍नान कराते वक्‍त इस मंत्र का उच्‍चारण करें :-
गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा।
सरस्वत्यादि तिर्थानि स्नानार्थं प्रतिगृहृताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। स्नानं समर्पयामि।।
8. वस्‍त्र- अब भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को किसी साफ और सूखे कपड़े से पोंछकर नए वस्‍त्र पहनाएं. फिर उन्‍हें पालने में रखें और इस मंत्र का उच्‍चारण करें :-
शति-वातोष्ण-सन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहा-लंकारणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।।
9. यज्ञोपवीत- इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्‍ण को यज्ञोपवीत समर्पित करें:
नव-भिस्तन्तु-भिर्यक्तं त्रिगुणं देवता मयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। यज्ञोपवीतम् समर्पयामि।।
10. चंदन: अब श्रीकृष्‍ण को चंदन अर्पित करते हुए यह मंत्र पढ़ें:
ॐ श्रीखण्ड-चन्दनं दिव्यं गंधाढ़्यं सुमनोहरम्।
विलेपन श्री कृष्ण चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। चंदनम् समर्पयामि।।
11. गंध: इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए श्रीकृष्‍ण को धूप-अगरबत्ती दिखाएं:
वनस्पति रसोद भूतो गन्धाढ़्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोयं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। गंधम् समर्पयामि।।
12. दीपक: अब श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को घी का दीपक दिखाएं:
साज्यं त्रिवर्ति सम्युकतं वह्निना योजितुम् मया।
गृहाण मंगल दीपं,त्रैलोक्य तिमिरापहम्।।
भक्तया दीपं प्रयश्र्चामि देवाय परमात्मने।
त्राहि मां नरकात् घोरात् दीपं ज्योतिर्नमोस्तुते।।
ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् बाहू राजन्य: कृत:।
उरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शूद्रो अजायत।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। दीपं समर्पयामि॥
13. नैवैद्य: अब श्रीकृष्‍ण को भागे लगाते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च
आहारो भक्ष्य- भोज्यं च नैवैद्यं प्रति- गृह्यताम।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। नैवद्यं समर्पयामि।।
14. ताम्‍बूल: अब पान के पत्ते को पलट कर उस पर लौंग-इलायची, सुपारी और कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनाकर श्रीकृष्‍ण को समर्पित करें. साथ ही इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
ॐ पूंगीफ़लं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्।
एला-चूर्णादि संयुक्तं ताम्बुलं प्रतिगृहृताम।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ताम्बुलं समर्पयामि।।
15. दक्षिणा: अब अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार श्रीकृष्‍ण को दक्षिणा या भेंट दें और इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
हिरण्य गर्भ गर्भस्थ हेमबीज विभावसो:।
अनन्त पुण्य फलदा अथ: शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। दक्षिणां समर्पयामि।।
16. आरती: आखिरी में घी के दीपक से श्रीकृष्‍ण की विभिन्न प्रकार की आरती करें,
जैसे…..
आरती कुंज बिहारी की….
ॐ जय जगदीश हरे…
इत्यादि …
 अखंड ब्रह्मांड के नियंता श्री कृष्ण , अपने दिए वचन :- यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ! अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम !!
के अनुसार हम सब के बीच पधार कर ,
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
के अनुसार हम सबकी नैया को पार करें।
आचार्य राधाकान्त शास्त्री
आचार्य राधाकान्त शास्त्री

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