तब मेरा भ्रम टूट गया : डा. उषा शॉ
हिमालिनी अंक सितम्बर २०१८ | नेपाल यात्रा मेरे लिए बहुत ही सुखद रहा । मै रक्सौल होते हुए वीरगंज तक पहुँची हूं । उस समय ऐसा लगता था कि आज मैं ठीक–ठाक पहुँच पाती हूं या नहीं । सड़क की हालत बहुत बुरी हैं, साथ में यहां जो घोड़ा–गाड़ी चलती है, उसका उलटना स्वभाविक हो जाता है । अगर रोड ठीक हो जाए तो सब ठीक–ठाक रहेगा । मेरे खयाल से यहाँ के जनजीवन के लिए भी बहुत ही दुरुह है ।
मैं मेरठ में भी शिरकत कर चुकी हूं । वहां इतने विराट रूप में नेपाली भाषा और साहित्य के बारे में मुझे ज्ञान नहीं था । मुझे ऐसा लगता था कि नेपाल एक औद्योगिक शहर है । यहाँ के लोग ज्यादा से ज्यादा बिजनेश करते हैं, साहित्य, काव्य संस्कार और संस्कृति पर शायद इनका ध्यान कम होगा । लेकिन मेरी यह धारणा पूर्णत बदल चुकी है । और मैंने यहाँ आकर यह अनुभव किया कि यहां के लोग बडे ही रुझान रखते हैं कि साहित्य के प्रति । बहुत अच्छी–अच्छी रचनाए इन्होंने लिखी है, जो नेपाल के जनजीवन से संबंधित है, जो यहां की बेटियों से सम्बन्धित है, विशेषतः । मैं नेपाल के साहित्यकार के बारे में ज्यादा तो नहीं जानती थी । लेकिन नेपाली साहित्यकारों से मिलने के बाद यहाँ के साहित्यकार बसन्त चौधरी, भानुभक्त आचार्य के बारे में बहुत कुछ सुना है ।
नेपाल मेरी पहली यात्रा है । मैं राजनीतिज्ञ तो नहीं हूं, लेकिन भारत और नेपाल के बीच में जो प्रगाढ मैत्री है, उसके बीच में अगर कोई नकारात्मक सोच रखते हैं तो मैं समझती हूं कि यहां के लोग और भारत के लोग मिलकर इसे सकारात्मक रूप में बदलना चाहिए ।