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इस देश में मधेशियों को नागरिकता देते समय अनेक बखेड़ा किया जाता है । उन के वशंज या अगींकृत होने के श्रोत खोजे जाते हैं पर रोबोट को तो बिना छानबिन के ही यहां के नेता और अधिकारी गण नागरिकता दे देंगे 



वास्तव में इस देश में गणतंत्र आया ही नहीं है । वह तो जैसे राष्ट्र बैंक से पुराने नोट बदल कर लोग नए नोट ले लेते हैं, उसी तरह पुराने राजा को उन के महल या खंङहर में भेज कर नया राजा राष्ट्रपति के रूप में लाया गया है 

देश में करीब दो सौ पचास साल राज कर के राजतंत्र तो काल के गाल में समा गया । पर उसी काल के गाल से राष्ट्रपति के रूप में महारानी का अवतरण हुआ है जो हवाई जहाज के जमाने में बग्गी में सवार हो कर कार्यक्रम स्थल में पहुंचती हैं और अपने अवाम को घंटो सड़क में खड़ा करवाना अपनी शान समझती है । सार्वजनिक सवारी में चढ़ कर अपने अपने घोसंले पर जाते पिद्दी से इस देश के अवाम गणतंत्र की इस नई नवेली महारानी की ताजपोशी और शान को घंटो तक निहारने के बाद सिर खुजलाते हुए सोचते हैं हाय हमनें देश में गणतंत्र को आने क्यों दिया ? इस को रोका क्यों नहीं ?
राष्ट्रपति महारानी जब भी सिल्क की चमचमाती साड़ी पहन कर अपने हनुमानों के साथ बड़े तामझाम के साथ निकलती है तब उस दिन राजधानी के विभिन्न सड़कों और चौराहे पर बिजली गिरती है वह भी बिन बरसात के । इस आधुनिक महारानी को नित नयी शरारत सूझती है इसी लिए कभी कार पर तो कभी बग्गी पर अपने बेकार के कारवां को ले कर गुजरती है । अब काम तो कुछ है नहीं तो बेकाम में ही सही सरकारी पेट्रोल को फूंक कर अपने काफिले को ले कर आए दिन राजमार्ग से बिल्ली की तरह गुजरती है । अब बिल्ली रास्ता का दे तो लोग अपने आप रुक जाते है पर जब महारानी और उन का काफिला अगर रास्ता काट रहा तो जबरदस्ती रुकना पड़ता है क्या करें ?
बिल्ली के भाग्य से जब छींका टूटता है तब उस के पौ बारह हो जाते हैं । यही हाल महारानी जी का भी है । कूछ किए धरे बिना ही पति के त्याग और लगानी से तर माल खाने को मिल रहा है । उधर पतिदेव स्वर्ग से धरती में अपनी पत्नी के मोज मस्ती को देख कर आहें भर रहे हैं । यह दुनिया रोबोट और जेट युग में पहुंच गई है पर महारानी जी अभी भी बग्गी में ही चढ़ना चाहती हैं । पुराने जमानें मे जब कार या हवाई जहाज नहीं था तब राजा, महाराजा बग्गी में ही सवार हो कर घूमा फिरा करते थे । अब खुद को घोषित राष्ट्रपति और अघोषित महारानी मानते हुए और दुनिया भी मानें इस के लिए कथित महारानी जी ने सैर के लिए बग्गी का चुनाव किया । अब बग्गी में तो महारानी जी अकेली ही चढ़ती है पर उन के सुरक्षा के लिए हजारों के तादाद में लावा, लश्कर भी साथ चलता है ।
महारानी जी का मन है अब बग्गी चढ़ कर मन भर गया तो कहेगी की अब और कुछ चढेंÞ । हो सकता है कल उन्हे टाँगा और बैल गाड़ी में चढ़ने का मन हो जाए । अब तो गाँव में भी ताँगा और बैल गाड़ी का चलना बहुत कम हो गया है । कल को महारानी जी लखनउ के नवाब की तरह कहें कि मेरे कमरें में लाख रुपएं तोला का अत्तर जलाया जाए । तब तो जलाना ही पडेÞगा महारानी जी का हुक्म जो है । महारानी जी भी वह जिनका अपना राजनीतिक दल ही बहुमत के साथ सत्ता में है । तब तो माशाअल्लाह पांचो उगंली घी में और सर कड़ाही में है महारानी जी का । इसी लिए तो अपना ही नहीं अपनी बेटियों का भी जूता देश के सेना के जवानों से उठवाती है । महारानी जी जो न करवाएं वह कम है । आखिर पांच साल के लिए महारानी जो बनी हैं ।
किसी दिन हो सकता है महारानी जो को ठेले में चाट या गोलगप्पे खाने का मन हो जाए वह भी असन या न्यूरोड पर । तब तो आफत ही आ जाएगी । महारानी जी के लिए सारी सड़क खाली करवा कर वहां सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की जाएगी । देश के सर्व साधारण जन और उनकी टूटीफूटी सवारी गयी तेल लेने । बेचारे घंटो तक सड़क में बौखलाए खडेÞ रहेंगे और कुछ तो महारानी जी चाट या गोलगप्पा खाते देख मुँह मे पानी भर कर आहें भरे और कहें “हाय क्या किस्मत पायी हैं इसने ।” हमें चबाने को चने नहीं और यह सरेआम खा रही मालपुवा । आखिर में महारानी हैं क्यों न खाएं भई ?
इसी के लिए तो दोबारा राष्ट्रपति यानि की महारानी बनी है बेचारी । पांच साल बाद तो घर का वही बासी और रुखा, सूखा खाना ही है । अभी तो मौज कर लेने दो इन को । बेचारी को न जाने कितने पापड़ बेलने पड़े होंगे इस के लिए । अभी इन को अपने सारे शौक पूरी कर लेने दो । किसी दिन महारानी जी कहेगीं कि मैं राष्ट्रपति भवन में रहते, रहते बोर हो जाती हूँ । मुझे बोलने और खेलने के लिए एक साथी चाहिए जोे रोबोट भी हो तो चलेगा । हो सकता है महारानी जी यूएन कि रोबोट सोफिया को ही बुला कर नेपाल का नागरिकता दिलवा कर अपना दोस्त बना कर राष्ट्रपति भवन में ही रख लें ।
आखिर में इस देश में मधेशियों को नागरिकता देते समय अनेक बखेड़ा किया जाता है । उन के वशंज या अगींकृत होने के श्रोत खोजे जाते हैं पर रोबोट को तो बिना छानबिन के ही यहां के नेता और अधिकारी गण नागरिकता दे देंगे । ईंसान के प्रति नहीं मशीन के प्रति यह देश और यहां का कानून बहुत ही उदार है । इसी लिए तो जिंदा रहते भ्रष्टाचारी के रूप में मशहूर हुए और इस के बारे में सब जानते हुए भी मरने के बाद उसी नेता का कानफोङू जय, जयकार करने में भी शर्म नहीं मानते । जिंदा इंसान ही खराब होता है मरने के बाद सभी अच्छे और महान हो जाते हैं । इसी लिए सभी को मार देना चाहिए । मरने के बाद तो कोई भी बदमाशी  भ्रष्टाचार नहीं करेगा ।
वास्तव में इस देश में गणतंत्र आया ही नहीं है । वह तो जैसे राष्ट्र बैंक से पुराने नोट बदल कर लोग नए नोट ले लेते हैं, उसी तरह पुराने राजा को उन के महल या खंङहर में भेज कर नया राजा राष्ट्रपति के रूप में लाया गया है । बस फर्क इतना सा है कि वह राजा पुस्तैनी या वशंज था । यह नयां राजा पांच, पांच साल में बदल जाता है वोट और नोट के बदले । जैसे दरवार में पर्दे बदलते हैं उसी तरह । गणतंत्र के राष्ट्रपति के शरीर में राजा का ही प्रेत बैठा हुआ है जो अपनी झूठी आन, बान और शान दिखा कर कब्र में दफन हो चुके राजतंत्र को चिढ़ा रहा है । क्योंकि राजतंत्र के उसी कब्र के उपर गणतंत्र का नाग फन उठाए खड़ा है देश के अवाम को डसने के लिए ।



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