रंग लाया मेयर सरावगी का अडान, गंडक कोविड अस्पताल शुरू
रेयाज आलम, बीरगंज, जेठ ३ गते शनिवार। पर्सा में कोवीड अस्पताल कायम हुआ। लंबी जदोजहद और खेल चाल के बावजूद गंडक अस्पताल कोविड अस्पताल के रूप में कायम हुआ। पिछले एक महीने से नारायणी अस्पताल में अवस्थित अस्थायी कोरोना अस्पताल अन्यत्र स्थापित करके नारायणी अस्पताल को पूर्वरत रूप में संचालित करने की मांग हो रही थी। ग़ौरतलब है कि नारायणी अस्पताल को बंद करके कोविड अस्पताल के रूप में संचालित करने के बाद गरीब लोगों को इलाज के लिए प्राइबेट अस्पताल में महंगा इलाज कराने की बाध्यता हो गई थी। नारायणी अस्पताल बन्द होने से डायलिसिस के आभाव में तीन मरीजो की मृत्यु हो गई है।
कोरोना महामारी आने के बाद से बीरगंज में अलग कोविड अस्पताल बनाने की मांग हो रही थी। बीरगंज म.न.पा के मेयर बिजय सरावगी ने अग्रसरता लेते हुए बीरगंज हेल्थ केअर अस्पताल को भाड़ा में लेकर कोविड अस्पताल बनाने का प्रयास किया लेकिन अंतिम समय मे प्रदेश सरकार ने उक्त अस्पताल बस्ती के पास होने का कहकर अड़ंगा लगा दिया, जबकि नारायणी अस्पताल उससे भी घनी आबादी में है उसमें कोरोना अस्पताल बनने का कोई विरोध नहीं किया।
सोशल मीडिया में प्राइवेट अस्पताल के मालिकों ने अपने अस्पताल को कोविड अस्पताल निशुल्क देने की बात करकर लोकप्रियता बटोरी, उसी को आधार बनाकर बीरगंज म.न.पा ने अस्पताल देने वालों के लिए सूचना निकाली जिसमे गंडक अस्पताल के अलावा सभी पीछे हट गए। महानगरपालिका के पास मात्र गंडक अस्पताल का प्रस्ताव आया और गंडक अस्पताल से समझौता पत्र तैयार किया गया। चुकी कोरोना का इलाज केंद्र सरकार करवा रही है इसके लिए केंद्र से इजाजत के लिए पत्र भेजा गया।
केंद्र से इजाजत के संबंध में कोई जबाब नही आने पर मेयर सरावगी ने दूसरा अत्यंत भावुक करने वाला पत्र भेजा, जिसमे बीरगंज में कोरोना संकट की भयावहता का सविस्तार से उल्लेख किया गया था। इसके बावजूद भी केंद्र से कोई जबाब नही आया, उल्टे सोशल मीडिया में मेयर के ऊपर अवांछनीय आरोप तक लगाए गए, ऐसे आरोप किसी का मनोबल गिरा सकते है, लेकिन मेयर सरावगी अपने मान-अपमान और जान का प्रवाह किए बगैर अपने कर्तव्य को महानगर के सीमित संसाधनों से पूरा करने में पूरी तन्मयता से लगे रहे।
इधर बीरगंज में कोरोना मरीज दिन-प्रतिदिन बढ़ते रहे और बीरगंज केंद्र से इजाजत के इन्तजार करता रहा। लोगो मे आक्रोश गुस्सा और डर बढ़ते गया। एक तरफ मेयर सरावगी डटे रहे तो दूसरी तरफ इस मुद्दे को भुनाने में नेता-सांसद लगे रहे। कोई स्वास्थ्य मंत्री को ज्ञापन देकर कहता मैंने करा दिया पत्र जा रहा है तो कोई बारा, कभी पथलैया, कभी नारायणी अस्पताल के आखा बिभाग के लिए ज्ञापन देकर भ्रमित करते रहे।
नतीजा ये हुआ कि कोरोना मरीज इतने ज्यादा हो गए कि नारायणी अस्पताल में भी रखने को जगह नही बचा। मेयर सरावगी बार-बार चीखते रहे कि मात्र गंडक अस्पताल से नही होगा, हमे सारे प्राइबेट अस्पताल लेकर हजार बेड का इन्तजाम करना होगा। खैर अभी गंडक अस्पताल शुरू होने से कुछ समय तक राहत मिल सकती है लेकिन कुछ दिनों में अन्य अस्पताल भी लेने होंगे और उस समय भी राजनीतिक हित साधने का अंदेशा बना हुआ है। इस महामारी में मेयर सरावगी बीरगंज का अभिभावकत्व ग्रहण करके एक नायक के रूप में स्थापित हो रहे है और स्थापित नेता अपनी साख गवा रहे है।
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