बैंक को माफिया से मुक्त कराना बडी चुनौती:
विजयनाथ भट्टर्राई
समग्र बैंक और वित्तीय क्षेत्र का विश्लेषण किया जाए तो यह स्थायित्व ही दिखता है। ३/४ बैंकों और वित्तीय संस्थाओं में कुछ समस्या अवश्य ही देखा गया है। खास कर किसी संस्था में संस्थागत सुशासन की कमी के कारण यह समस्या आया है। कुछ दिन पहले तक तरलता की समस्या जो कि काफी अधिक थी अब उसमें कमी आ गई है। जिन बैंक और वित्तीय संस्थाओं में सुशासन की समस्या देखी गई है ऐसे संस्थाओं के प्रति नेपाल राष्ट्र बैंक को कर्डाई करनी चाहिए। और राष्ट्र बैंक ने कुछ कडे कदम उठाए भी हैं। इसके अलावा मुझे यह लगता है कि कुछ बैंकों की व्यवस्थापन भी ठीक नहीं होने के कारण यह समस्या आया है। उदाहरण के लिए विभोर विकास बैंक को लिया जा सकता है। अन्य बैंक तरलता व्यवस्थापन नहीं करने के कारण समस्याग्रस्त हो गई है।
राष्ट्र बैंक का मुख्य उद्देश्य वित्तीय स्थायित्व देना है। विगत में राष्ट्र बैंक द्वारा उठाए गए कुछ कदम पर प्रश्न चिन्ह भी लगाया जा सकता है। गोपनीयता और संवेदनशीलता ना रहने की स्थिति में इसका नकारात्मक असर भी देखने को मिलता है। जैसे कि राष्ट्र बैंक द्वारा वाणिज्य बैंकों को दिया गया रकम वापस लेने की खबर पहले ही लीक हो गई थी। राष्ट्र बैंक कभी भी खुद ही निवेश नहीं करता बल्कि उसके कर्मचारियों के नाम पर रहे बचत रकम का निवेश करना है। ऐसी खबरें मीडिया में लीक होने के कारण बैंको और वित्तीय संस्थाओं से एक एक दिन में करोडों रूपये का निकासा होने से भारी समस्या का सामना करना पडा था। नेपाल टेलीकाँम और नेपाली सेना जैसे बैंको के बडे ग्राहक भी बैंक से अपन जमा पूंजी निकालने में पीछे नहीं रहे।
केन्द्रीय बैंक और वित्तीय संस्थाओं का संबंध अत्यन्त ही निकट का होता है। वित्तीय संस्थाओं को आने वाली समस्या का हल करने का दायित्व भी केन्द्रीय बैंक का ही होता है। बैंको और वित्तीय क्षेत्र में आने वाली समस्या को समझन ही केन्द्रीय बैंक का मुख्य काम है। समस्या को समझे बिना पर्ूवाग्रही ढंग से किसी के खिलाफ भी डण्डा चलाना ठीक नीति नहीं है। इससे आम जनता में बैंकों के प्रति नकारात्मक असर पडता है। वैसे एक बात यह भी सच है कि नेपाल में कई बैंक ऐसे हैं जो कि माफियाओं द्वारा संचालित है। मै जब गवर्नर था उस समय भी इन माफियाओं का जाल इस कदर मजबूत था कि मुझे दो वर्षें तक उससे दूर रखा गया था। पिछले समय में कुछ ऐसी घटनाएं हर्ुइ जिससे यह साबित होता प्रतीत हुआ कि यहां न्याय भी खरीदा और बेचा जा सकता है। इससे माफिया का मनोबल और अधिक बढता गया।
केन्द्रीय बैंक की यह जिम्मेवारी है कि ऐसे माफिया की पहचान कर उसके खिलाफ कार्रवाही की जानी चाहिए। कार्रवाही करने के लिए केन्द्रीय बैंक के पास ऐन कानून भी है। ऐसा करने से जोखिम कम होगा। लेकिन केन्द्रीय बैंक द्वारा माफिया के खिलाफ कार्रवाही करने के बजाय प्रतिष्ठित बैंक और बैर्ंकर्स को ही धमकाया जाता है। ऐसा करने से केन्द्रीय बैंक से अन्य बैंक तथा वित्तीय संस्थाओं के बीच रहे संबंध पर भी असर होता है।
खास कहा जाए तो केन्द्रीय बैंक के द्वारा सुधारात्मक कार्रवाही किया जाना चाहिए। वह निर्देशन देता है। उसके द्वारा दिए गए निर्देशानुसार बैंको में सुधार भी हुआ है। जो संस्था तहस नहस हो गया हो उसमें यदि सुधार की गुंजायश नही है तो उसे छोड देना ही बेहतर होता है। नेपाल बिकास बैंक, गोरखा बिकास बैंक और घरेलु तथा साना उद्योग बैंक और अभी मनकामना बिकास बैंक इसका ताजा उदाहरण है। ऐसा नहीं है कि आज तक कभी इस तरह के मामले में सुधार ही नहीं हुआ है। ििि