नवरात्र पूजन विधि एवं मुहूर्त : आचार्य राधाकान्त शास्त्री*
*7 अक्टूबर गुरुवार को प्रातः स्नान आदि से पवित्र होकर पंचगव्य पान कर प्रोक्षण कर, प्रातः काल के तुला लग्न में-*
*7:15 से 9:15 तक*
अथवा
*धनु लग्न अभिजित मुहूर्त में – मध्याह्न 11:25 से 1:35 बजे तक, में अपने सुविधानुसार कलश स्थापना पूजन कर सकते हैं।*
पूजन के लिए अपने सुविधा सामर्थ्य के अनुसार पूजन सामग्री तैयार कर लें और *आसन पर बैठ कर जलपात्र में गंगा जल पुष्प हल्दी से गंगा के आवाहन, आचमन, पवित्री, त्रि गायत्री जप, भूमि शुद्धि, भूमि पूजन तिलक धारण, दिशा शुद्धि, दीप प्रज्वलन, स्वस्तिवाचन, गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ, संकल्प, गणेश पूजन, कर कलश स्थापित करें , प्रधान वेदी या माता जी के सामने भूमि पर एक पीतल के परात या बड़े थाल में घी रोली सिंदूर से स्वस्तिक बना कर उसपर पान का पत्ता सुपारी स्थापित करें और उस पर नदी की मिट्टी बालू भरें। एवं मध्य में कुमकुम और जौ से अष्टदल बनाकर भूमि का पूजन कर सप्तधान्य रख कर कलश स्थापित करें, फिर कलश में जल, गंगाजल, चंदन, सर्वऔषधि, दूर्वा, पंचपल्लव, कुशा की पवित्री, सप्तमृतिका, सुपारी, पंचरत्न, द्रव्य आदि डाल कर कलश में वस्त्र लपेटें, फिर ढकना में चावल भर कर उस पर लाल वस्त्र में नारियल लपेट कर स्थापित करें, और वरुण देव का आवाहन पूजन करें।*
*पुनः कलश के चारो ओर 9 दुर्गा के नाम से परात में जौ बोयें एवं उनका पूजन करें, तदन्तर बेदी न हो तो कलश के ऊपर ही या बगल में छोटी चौकी या पीढ़ा पर क्रमशः पंचदेवता, नवग्रह , पंचलोकपाल, पार्थिवेश्वर, शालिग्राम, दशदिक्पाल,षोडश मातृका, सप्तघृत मातृका, अन्नपूर्णा आदि की आवाहन स्थापन एवं यथा विधि पूजन करें।*
*पुनः सामने कलश के पीछे वेदी पर या चौकी पर माता जी का मूर्ति या फोटो स्थापित कर वेदी सहित सविध सम्पूर्ण षोडशोपचार पूजन करें। एवं आरती कर नैवेद्य प्रसाद ग्रहण करें।*
*पुनः पुस्तक एवं माला पूजन कर विविध मंत्रों से जप, सम्पुट पाठ एवं जप करें,एवं सायं काल मे भी सभी देवी देवताओं का पूजन आरती कर नैवेद्य प्रसाद ग्रहण करें।*