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स्थानीय निर्वाचन जनता के लिए नशीला एवं मदहोस करने बाला अफीम है : कैलाश महतो

कैलाश महतो, पराशी, 1मई 2022। निर्वाचन लोकतंत्र का आत्मा है । निर्वाचन लोकतन्त्र का गहना है, सुगन्ध और उसका चमत्कार है । लोकतन्त्र में चुनाव को अस्वीकार नहीं किया का सकता । इसके बिना लोकतन्त्र का कोई अस्तित्व और आधार नहीं होता । क्योंकि चुनाव से लोक को सुरक्षा, समुन्नत्ति, अमनचैन और समृद्धि मिलती है, मिलनी चाहिए ।
अब्राहम लिंकन ने प्रजातन्त्र को परिभाषित करते हुए इसलिए “जनता के द्वारा, जनता के लिए और जनता पर किये जाने बाला शासन पद्धति” कहा है कि इसमें हर जगह जनता होती है । प्रजातन्त्र में भले ही जनता अपना प्रतिनिधि के रुप में किसी सुझबुझ बाले व्यक्ति को संसद और विधान सभा में भेजती है, मगर वह जन प्रतिनिधि जन-भावना के अधीन होता है । अमेरिका के क्यालिफोर्निया में स्थानीय स्तर में जन प्रतिनिधि के रुप में निर्वाचित एक नेपाली नेता कहते हैं कि अमेरिका और यूरोप में राजनीतिक पदों पर रहे कोई भी जन प्रतिनिधि किसी प्रकार के तलब या भत्ता का सुविधा नहीं ले सकता । वह जन-भावना के विपरीत कोई काम या व्यवहार नहीं कर सकता । राजनीति उनके लिए केवल सेवा है, जिसके बदले उसे जनता से सम्मान सुरक्षा प्राप्त होता है ।
सन् २०२० के राष्ट्रपतीय चुनाव में भले ही अमेरिका को तकरीबन १४ अरब डॉलर खर्च करने पडे, मगर वहाँ की जनता आजतक किसी राजनीतिक दल या नेता पर भ्रष्टाचार को लेकर कोई भारी असन्तुष्टी नहीं दिखाई है । कारण, चुनाव का राष्ट्रीय खर्चा सरकार उठाती है और अपने पसन्दीदे पार्टी और उम्मीदवारों को वहाँ की आम जनता और सहयोगी संस्था, समूह, निकाय और उद्योगी व्यापारी करते हैं । २०२० के राष्ट्रपति निर्वाचन में जो बाइडन और डोनाल्ड ट्रम्प को वहाँ के जनता और सहयोगियों ने क्रमशः एक अरब और आधा अरब से (९३.७३ और ५९.२३ अरब) ज्यादा अमेरिकी डॉलर का सहयोग किये थे
अमेरिका में सहयोग करने बाले लोग अपने अपने पार्टी और नेताओं को जब सहयोग करते हैं, तो उनके जेहन में बस यही बात होती है कि उनके नेता उन्हें और उनके देश को मजबूत, सुरक्षित और शक्तिशाली बनाये रखें । वहाँ के सहयोगियों में व्यक्तिगत लाभ, लालच या उद्देश्य न्यून होता है । देश की मजबूती और सुरक्षा ही उनका प्राथमिक लालच और चाहत होती हैं । वहाँ की जनता और सहयोगी हमारे देश के सहयोगियों के विपरीत खुल्ले रुप में अपने पसन्द के उम्मीदवारों को आर्थिक सहयोग करते हैं । विल क्लिन्टन और बाराक ओबामा उसी के परिणाम रहे कि मध्यम वर्ग और गरीब आर्थिक हैसियत के होने के बावजूद वे दोनों नेताओं ने अमेरिका जैसे महंगे चुनावी खर्च बाले शक्तिशाली देश के दो दो कार्यकाल के राष्ट्रपति बनने के अवसर पाया और अमेरिकी शान, ताकत और समृद्धि को उच्च किया ।
अमेरिकी चुनाव से एक सत्य तथ्य यह जाहिर है कि चुनाव के लगभग सारे खर्च अपने देश को मजबूत और सुरक्षित रखने के लिए जब नेता को वहाँ की जनता और देश प्रेमी अन्य निकाय करते हैं तो नेता का न तो हिम्मत हो सकता, न  नैतिकता साथ देता है कि वह कोई आर्थिक या सामाजिक भ्रष्टाचार कर सके । उसी का परिणाम है कि दो कार्यकाल तक राष्ट्रपति रहने के बाद भी जीविका और परिवार चलाने के लिए बाराक ओबामा, उनकी धर्म पत्नी और दो बेटियाँ भी किसी रेस्टोरेंट या होटल में काम कर रहे हैं, और विल क्लिन्टन आज क्लास छ: के क्लास टिचर हैं ।
द्रष्टव्य : अपने दूसरे कार्यकाल से बाहर होने के बाद विल क्लिन्टन ने न्यूयॉर्क में महज दश लाख डॉलर का घर खरीना चाहा था । यह खबर अमरीकी जनता में सनसनीखेजपूर्ण समाचार बन गया । जनता ने तुरंत उनपर सवाल खडा कर दिया था कि वह घर खरीदने के लिए उनके रकम‌ का श्रोत क्या है । घर खरीदने से पहले उन्होंने उस रकम का विश्वस्त पारिवारिक श्रोत दिखाया, सरकार के जाँच में सही सावित होने बाद ही वे घर खरीद पाये ।
हां, यह जरुरी नहीं कि राजनीतिक शासन होने बाले विश्व के सारे देशों में अमेरिका, यूरोप और एशियन तथा अफ्रीकन कुछ लोकतान्त्रिक देशों के तरह ही लोकतान्त्रिक चुनावों से ही देश और जनता की सेवा और विकास संभव है । रुस, चीन, भियतनाम और उत्तर कोरिया जैसे गैर लोकतान्त्रिक देश भी हैं, जहाँ पर लोकतान्त्रिक देशों के तरह आवधिक निर्वाचन नहीं होते हैं । वहाँ की शासन व्यवस्था तानाशाही ही है । मगर उनका विकास, सुरक्षा और शक्ति किसी अमेरिका, यूरोप और लोकतान्त्रिक मुल्कों से कम नहीं हैं । क्योंकि शासक में जब देशभक्ति और मजबूत देश के शासक बनने का शुरुर चढता है, लालसा बढता है, तो स्वाभावत: और स्वाभाविक रुप से उसका देश विकास करता है, उसका आर्थिक, शैक्षिक और सामरिक शक्तियों में इजाफा होता है । सम्पन्न देशों के शासक और जनता दोनों सम्पन्न और शक्तिशाली होते हैं । उन देशों और उनकी शासन व्यवस्था न केवल उन मुल्कों सीमित में होता है, बल्कि सारे विश्व में होने का विश्व राजनीतिक प्रमाण है ।
देश की विकास, उन्नति और सुरक्षा देश के राजनीति, राजनीतिक पार्टियां, राजनीतिज्ञ, नेता, शासक, बौद्धिक समाज और यूवा शक्तियों के हाथों में होती हैं । देश का शासन व्यवस्था उनके द्वारा बनाये गये संसद, सांसद, निर्वाचन प्रणाली और‌ उनके मानसिकताओं पर निर्भर करता है । नेपाली राज्य और शासन प्रणालियों में उपर उल्लेखित किसी भी प्रणाली, समूह या निकाय को देश हित का नहीं कहा जा सकता । देश के सारे के सारे निकाय और प्रणाली असफल और भ्रष्ट हैं । यहाँ तक कि जनता की अन्तिम आशा और विश्वास की आधार न्यायालय समेत भ्रष्ट, क्रूर और असफल है । इस अवस्था में देश की बौद्धिक जगत, क्रान्तिकारी यूवा, भविष्य खोजकर्ता युवा समाज और जिम्मेवार राजनीतिक चिन्तकों जैसे संवेदनशील समूहों और क्षेत्रों को संवेदनशील होना जरुरी है ।
देश के उपरोक्त समूहों, क्षेत्रों और निकायों को यह समझने में अब देर नहीं करनी चाहिए कि नेपाल की राजनीति, अर्थ नीति, समाज नीति, अवसर नीति और सम्पूर्ण रुप में राष्ट्र और सरकार नीति असफल होने के कारण सिर्फ और सिर्फ मौजूदा राजनीति और निर्वाचन प्रणाली हैं । क्योंकि शासक वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था, संसद और सांसद वर्तमान चुनाव प्रणाली, बनने/बनाये जाने बाले सरकारें, मौजूदा संसद और सरकार तथा उसके मन्त्री मौजूदा भ्रष्ट राजनीतिक दलों के उपज हैं । नेपाल के वर्तमान निर्वाचन प्रणाली अत्ति महंगा और भ्रष्ट हैं । तो जाहिर सी बात है कि जब निर्वाचन और उसका प्रणाली ही महंगा और भ्रष्ट हैं तो उससे निर्मित संसद, सांसद, सरकार और मन्त्री मण्डल स्वाभाविक रुप से भ्रष्ट, कामचोर, लुटेरे और अहंकारी होंगे । नेपाल को अगर सफल, विकसित, सुरक्षित और मजबूत राष्ट्र बनाना हैं तो भ्रष्ट सरकार और भ्रष्टाचार इत्तर के सारे वर्ग और समुदायों को मौजूदा असफल और भ्रष्ट निर्वाचन प्रणाली के विरुद्ध शान्तिपूर्ण जनविद्रोह कर इसे पूर्ण समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली में बदलने के साथ साथ महत्वपूर्ण इन बदलावों समेत के लिए आन्दोलन करना होगा :
१. पूर्ण समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली कायम की जानी चाहिए ।

२. समानुपातिक अवस्था से नीचे पडने बाले वर्ग और समुदायों के लिए आरक्षण की स्पष्ट व्यवस्था होनी चाहिए ।
३. स्थानीय निर्वाचनों को दल विहीन पद्धति में परिवर्तन किया जाना चाहिए ।
४. राजनीति, सरकार, राजनीतिक तथा कुटनीतिक निकायों के साथ साथ राज्य के हरेक अंग और निकायों में देश में मौजूद हरेक जात, वर्ग, समूह और समुदायों को उनके जनसंख्या के अनुपात में समानुपातिक प्रतिनिधित्व करना/करवाना चाहिए ।
५. संसद और सरकार अलग अलग निकाय होने चाहिए । सरकार चलाने के लिए सांसद का नहीं, देश में विद्यमान सम्बन्धित स्वतन्त्र विशेषज्ञों को मन्त्री बनाने का प्रणाली लागू होनी चाहिए ।
६. पार्टी अध्यक्ष पद के साथ ही देश के सर्वोच्च व श्रेष्ठ संवैधानिक और राजनीतिक पदों के लिए दो कार्यकाल की समयावधि कानुनी रुप से निर्धारण होने चाहिए । 
७. राजनीतिक पार्टी के नेता, नेतृत्व, संवैधानिक और राजनीतिक पदों के व्यक्ति तथा उनके घरायसी करीबी नातेदारों समेत को विदेश के किसी भी बैंक में खाता खोलने पर कानुनी प्रतिबन्ध लगायी जानी चाहिए ।
८. उद्योगपतियों, व्यापारियों, तस्करों, ठेकेदारों, रिटायर्ड सरकारी अधिकारियों, गुण्डों, मवालियों जैसे तत्वों को कानुनी रुप में ही राजनीति से दूर रखने की प्रावधान बननी चाहिए ।
आसन्न स्थानीय निर्वाचन जनता के लिए नशीला एवं मदहोस करने बाला अफीम है । ऐसे महंगे और भ्रष्ट चुनावों से निर्वाचित जनप्रतिनिधि आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, जातीय, साम्प्रदायिक और अवसरीय भ्रष्टाचार, गुण्डागर्दी, दोहन और अत्याचार के आलावा जनहित, विकास और सेवा का काम नहीं कर सकते । कारण यह कि पार्टियों से उन्होंने करोड़ों की टिकट खरीदने की समाचारीय खबर है । जनता को करोडो रुपये का दारु पियालेंगे, मांस मछली बाले भोज खिलायेंगे, हरेक भोट को पैसे से खरीद करेंगे । तो जब कोई दश बीस करोड रुपये खर्च कर चुनाव जितेगा, वह विकास नहीं, देश और समाज को विकास के नाम पर विनास करेगा । खर्च के रकम के कम से कम पाँच सात गुणा अधिक पैसे सरकारी बजेट से कमायेंगे । यही सत्य तथ्य तय है । दूसरा तीसरा कुछ नहीं ।

संभव हो तो स्वतन्त्र उम्मीदवारों को ही जितायें क्योंकि : 

१. वो स्वतन्त्र है । किसी पार्टी या नेता के दबाब में नहीं रहेगा ।
२. उसने पैसे तिरकर टिकट नहीं लिये हैं, जिससे आशा यह किया जा सकता है कि वह टिकट खरीदार विजित धन प्रतिनिधियों से कम आर्थिक बदमाशी करें ।
३. पार्टियों द्वारा उसके जिला या क्षेत्रों में किये जाने बाले कार्यक्रमों के लिए आर्थिक जिम्मेवारी या अनावश्यक चन्दा सहयोग से सरकारी बजेटों को बचायेगा ।
४. राजनीतिक पार्टी के दबाव में पालिकाओं में पार्टियों के कारिन्दा, कार्यकर्ता, उसके आसेपासे जैसे उछृंखल समूहों के भर्ती केन्द्र होने से पालिका बचा रहे ।
५. स्वतन्त्र विजित जनप्रतिनधि पार्टी विहीन होने के कारण पार्टी के नाम पर समाज को पारिवारिक, सामाजिक व सामुदायिक टकरावों को मत्थर कर आपसी सद्भाव, प्रेम और सामञ्जस्यता कायम कर सके ।
६. स्वतन्त्र उम्मीदवार अपने छवि, चरित्र, कौशल, क्षमता और योग्यता पर चुनाव लडेगा, न कि किसी पार्टी और उसके नेता के भ्रष्ट छवि,चरित्र, क्षमता, ताकत य योग्यता पर । अगर वो विजित होता है तो पार्टियों के सडेगले और भ्रष्ट निर्देशन का गुलाम और दास नहीं होगा । 
७. स्वतन्त्र विजित उम्मीदवार स्वतन्त्र होने के नाते उसका अन्य पार्टियों के गलत पार्टीगत प्रतिस्पर्धा और रस्साकस्सी से दूर रहने का संभावना मजबूत रहेगा । उस अवस्था में पार्टीगत और अनावश्यक लूटगत प्रतिस्पर्धा से बचकर ज्यादा समय बजेट के सदुपयोगिता, समाज सेवा और विकास के कामों पर लगाने का संभावना रहेगा ।

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